शकला जी अभी अभी खाने की टेबल पर बैठे ही थे। कि अचानक कॉल  à¤¸à¥‡ फोन के साथ में हाथ भी डोल गया। रिसीव करते ही बडी तेज आवाज कान टकराई कि सरकार ने जयोतिश,काले इलम के माहिर बाबाओ के लि ढेरो नौकरी के आवेदन निकाले है। ना कद की परवाह ना डिगरी का कछ लेना देना बस भविषय बताना आना चाहि, और काले इलम के माहिर बाबाओ के लि तो आरकषण भी है और सनो वेतनमान सनोगें तो करसी से नीचे गिर जाओगे!! शकला जी ने सखे होटो पर सांप की तरह जीभ फेरकर पूछा, कितना

शरीमति शकला चिडिया की तरह चहककर बोली परे दो लाख रूपये हर महीने!

अबकी बार तो सनकर शकला जी सनन रह गये फोन को मेज पर पटककर रोजगार समाचार लेकर आये अखबार के ऊपर बडे-बडे अकषरो में छपा था

 à¤†à¤µà¤¶à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है, 

नदी को परवत की पेड़ को भूमी की, भैस को घास की बचचे को मां की नंगे को कपडे की, कतते को पटटे की, बैल को सींग की, मालिक को नौकर की, भगवान को भकत की, गधे को चंदन की, बंदरो को आभूशण की,, नेताओ को घोटाले की,, जयोतिश को मरखो की, आवशयकता किसे नहीं है। सबको आवशयकता है।

शकला जी ने सारा अखबार दो मिनट में देख डाला किनत वो शरीमति की बतायी खबर हाथ नही आयी तो सोचने बैठ गये,कि हो भी सकता है दो साल पहले की ही तो बात है जब बिहार के क परसिदध नेता ने सपेरो को देश का भविषय बताकर सपेरो के लि आरकषण की मांग कर डाली थी। किनत उस समय सरकार डर गयी थी कि यदि इनहें आरकषण दिया तो रोज-रोज हमारे काम में ही सरकारी बीन बजाकर सरकारी नींद में बाधा उतपनन करेगें

तभी अचानक फिर फोन की घंटी बज उठी, सनो अब तम जलदी से काला इलम और सीख लो, हम फिर सरकार पर वशीकरण कर उलटा सरकार को हम ही वेतन दिया करेगें अबकी बार तो शकला जी और सोच में डूब गये कि कया योगय शरीमति पायी और कया अयोगय सरकार!

 

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