कहते है,इंसान जिस पल में जीता है,सिरफ उसी पल का उततरदायी होता है,अतीत का उततरदातिवय हम पर नहीं पर यदि हम देश धरम के लिये आज कछ गलत करेगें तो भविषय के लिये जरर उततरदातिवय होगें। मिडिया का क धडा भले ही इनदराणी मखरजी के रिसते सलाने में  लगा हो लेकिन कछ लोग अब भी दिलली में ओरंगजेब रोड का नाम बदलकर डॉकटर . पी. जे. अबदल कलाम रोड किये जाने से इतने दखी ह कि देश  के मसलिमों के साथ इसे अनयाय तक बता डाला। कया कोई  इजराइल में हिटलर के नाम की रोड की कलपना कर सकता है, जिसने लाखों बेगनाह यहूदियो को कतल कर दिया था। या जापान में अमेरिकी राषटरपति रजवेलट के नाम से कोई   राजमारग जिसने लाखों जापानियो को परमाण हमला कर मौत की नींद सला दिया था।  पर ये लोग शायद ये भूल गये कि कोई भी देश अपनी तिहासिक इमारत,सडके राजमारग सकूल-कालिज असपताल आदि पर अपने देश  के महापरषों  के नाम   से  इसिलिये बनाते है ताकि हम उनहें आदरश मानकर हमेशा उनके पदचिनहों पर चले। ओरंगजेब  जैसे निरदयी शासक से हम कया सीखे! यही कि उसने अपनी बहन जहांआरा को कैद में डाल  दिया था,सतता के लिये अपने चार भाइयों को कतल कर दिया था,अपने भतीजे सलेमान शिकोह  को जहर दिया था,अपने पिता को कारागार में डाल दिया था,गर तेगबहादर को सली पर चढाया था, वीर शिवाजी के पतर संभा जी की हतया कर दी थी,और तो और यदि   मसलमान औरंगजेब को अपना रहनमा या फरिसता समते हो तो में बता दू  कि उसने दिलली जामा मसजिद के सूफी संत सरमद का सिर कटवा दिया था। 49साल तलवार के दम पर विचारो,शासतरो को दफन करने वाले 700छोटे -बडे हिनदू मनदिरो को तोडने वाले ओरंगजेब को कौन अपना आदरश मानेगा, या तो वो मानेगा जिस के अनदर मजहब का जहर भरा हो या फिर  वो जो  अपनी थोडी सी सनक के लिये अपने परिवार को भी मोत की गरत में धकेल  सकता है। अब में दूसरी और अबदल कलाम का नाम लेते है तो मन में शरदधा .सममान की  क लौ जलती है जो समसत समाज को अशिकषा के अंधियारे से निकालकर शिकषा सभयता का परकाश  दिखाती है। ओरंगजेब ने 49 वरष अतयाचार करके भी मसलिम समाज से इतना सममान ना पा सका जितना अबदल कलाम 5 वरष  राषटरपति रहकर ले गया। देश  के लिये तरककी का रासता खोजा,गरीब परिवार में पैदा हआ,गरीबी में पला बा पर  आधनिक शिकषा से जडकर भारत देश  के सरवोच पद राषटरपति  à¤ªà¤¦ तक पहंचकर कलाम ने दिखा दिया था कि यदि देश  à¤ªà¤°à¥‡à¤® की भावना मन में हो तो भारत की भूमी जाति मजहब को भूलकर पैर चूमती है। पर आज दख होता है कि भारत का कछ मसलमान कलाम और ओरंगजेब को धरम के चशमे से देखकर ओंरगजेब का सडक के बोरड से नाम हटाये जाने पर विरोध करता है तो मे पाकिसतानी मूल के लेखक विचारक तारेक फतेह का वो विचार परभावित करता है कि यह भारत के मसलमान को तय  करना है कि अपनी तरककी के रासते खोजने के लिये ओरंगजेब को आदरश मानना है या दाराशिकोह को ओवेसी के विचारो से परभावित होना है या अबदल कलाम के विचारो को आदरश  à¤®à¤¾à¤¨à¤•à¤° अपना अपनी कौम के तरककी के रासते खोजने है | 

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