पति-पतनी सदपदेश गरहण करें


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07-Jun-2014Category
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हे दमपती। तम दोनों (जैसे) à¤à¥‚ख से वयाकल साथ रहने वाले दो पश (फरररेष) घास के मैदान में आशरय लेते हैं वैसे ही राग, दवेष, काम-दाह से पीडि़त हये आधयातमिक à¤à¥‹à¤œà¤¨ के लिये जंगलों में सथित महातमाओं का सतसंग करो। जैसे दो घनी मितर (परायोग शवातरया इव) वयापार वं वयवहार में धन या सफलता परापत होने पर (शासरेथ:) किसी सिदध महातमा के पास शरदधा से आशीरवाद लेने जाते हैं वैसे ही तम सतरी-परष सनतान धन की परापति होने पर गृहसथ धरम के उपदेश करने वाले परोहित के पास जाकर मारगदरशन लो। (दूतेन हि) जैसे दूत राजा को सनदेश पहचाकर उसके कृपा पातर बनते हैं, वैसे ही (यशसा जनेष सथ:) तम लोगों में अपनी यश-कीरति से परिय बनो (महिषा इव) जैसे à¤à¥ˆà¤‚से (अव पानात) पानी के तालाब में जाकर बाहर आना नहीं चाहतीं वैसे ही तम दोनों जञानामृत के पान से कà¤à¥€ पृथक मत होवो।
गृहसथ आशरम राषटर-निरमाण का कारखाना है जहा सयोगय बचचों का निरमाण कर उनहें राषटर की सेवा करने के लिये à¤à¥‡à¤œ दिया जाता है। जिस कारखाने में अचछी मशीनें और कारय करने वाले कशल शरमिक हों उसका उतपादन सà¤à¥€ लोगों की पसनद होता है। ठीक इसी à¤à¤¾à¤¤à¤¿ मनसमृति में कहे अनसार जितेनदरिय सतरी-परषों को ही अकषय सख के लिये गृहसथ आशरम में परवेश करना चाहिये। शरीराम जैसे मरयादा परषोततम बनाने के लिये कौशलया जैसी माता, परदयमर जैसे वीर, पराकरमी और सनदर पतर को परापत करने के लिये देवी रकमिणी और शरीकृषण के समान १२ वरष बरहमचरय वरत का पालन और शिवाजी सदृश शूरवीर योदधा के लिये माता जीजाबाई जैसी वीरांगना होनी चाहिये। सनतान अपने माता-पिता की ही छाया-परति होती है जिसे अपने अनसार ढालने के लिये माता-पिता को सवयं उस सांचे में ढलना होगा।
योगय सनतान के अतिरिकत परषारथ चतषटय-धरम, अरथ, काम, मोकष की परापति के लिये गृहसथाशरम की मरयादा में पति-पतनी बंधते है। इसलिये इस आशरम में à¤à¥€ संयमित जीवनचरया से ही इस उददेशय की परापति हो सकती है। वेद इन मरयादाओं का पालन करने के लिये दमपती को उपदेश और दिशा निरदेश दे रहा है। हे दमपती। तम दोनों जैसे à¤à¥‚ख-पयास से वयाकल दो पश घास के मैदान में जाकर अपनी बà¤à¤•à¤·à¤¾ को शानत करते हैं वैसे ही तम उषटारेव फरवरेष शरयेथे जो तमहारी जञान-पिपासा को शानत कर सके अथवा वासनाओं से पीड़ित होने पर शानति परापति के लिये जंगलों में सथित सनतजनों के चरणारविनद में जाकर मन की सख-शानति परापत करो। पहले लोग तीरथों में साध-महातमाओं के दरशनारथ जाते थे, उसक पीछे à¤à¥€ यही परयोजन था। यदयपि आज इन तीरथों का रूप विकृत हो गया है।
परायोगेव शवातरया शासरेथ: जैसे दो वयापारी किसी वयापार या अनय कारय में धन लगाते हैं और उसमें सफलता परापत कर लेने के पशचात किसी सिदध परष के पास शरदधानवित हो आशीरवाद लेने के लिये जाते हैं इसी à¤à¤¾à¤¤à¤¿ तम दोनों जब à¤à¥€ पतरधन की परापति अथवा अनय शठअवसर पर गृहसथ धरम का उपदेश करने वाले अपने कलगर या परोहित के पास अवशय जाओं और सनतान का पालन-पोषण के से करें तथा उसे किस परकार सशिकषित वं चरितरावान बनाये, इस विषय में मारगदरशन परापत करो। सनतान को उतपनन करना सरल है परनत उतपनन हो जाने के पशचात उसे सशिकषा, सतसंग, सदाचार, संयम की दिनचारय में चलाना और विदवान बनाना इतना सरल नहीं है। माता-पिता की इचछा तो रहती है कि हमारे पतर-पतरियां सदाचारी और परषारथी बने परनत इसके लिये पहले उनहें अपने जीवन में ांकना होगा। बालक कचचा घड़ा होता है। कचचे घड़े को तोड़कर जिस आकृति कमà¤à¤•à¤¾à¤° के चकर पर साकार हो उठती है। घड़े को पका देने क पशचात बह टूट जायेगा परनत मनोनकूल वातावरण में ढलने का साहस नहीं कर पायेगा।
दूतेव षठो यशसा जनेष जिस à¤à¤¾à¤¤à¤¿ राजा के दूत दूर-दूर के गोपनीय समाचार राजा तक पहचा कर परशंसा और परसकार परापत करते हैं वैसे ही जिस समाज में तम रहते हो, उनके परिय बनों। दूसरों का परिय बनने का उपाय यही है कि उनसे मधर समà¤à¤¾à¤·à¤£, उनके द:खों में हाथ बटाना और आपततिकाल में उनकी सहायता बिना किसी सवारथ के करना, उनकी सविधाओं का का मान ही धन है। कीरतिरयसय स जीवति जिसके गणों का गौरव-गान लोग करते हैं उसी का जीवन सफल है। नि:सवारथ परेम सबके अपना बना लेता है।
मापसथातं महिषेवावपानात-जैसे à¤à¥ˆà¤‚से पानी में परविषट होकर वहीं जगाली करती रहती हैं, बाहर निकलने का नाम ही नहीं लेती वैसे ही हे सतरीपरषो। आप जञानामृत के सरोवर में डबकी लगाने के लिये सिदध परषों वं आधयातमिक परवचन जहा होते हैं, वहा अवशय ही जाओं। सतसंगति की महिमा सà¤à¥€ ने गायी हैं।
जाडयं धियों हरति सिंचति वाचि सतयं मानोननतिं दिशति पापमपा करोति। चेत: परसादयति दिकष तनोति कीरति सतसंगति: कथप किं न करोति पंसाम।।
सतसंगति से बदधि की जड़ता दूर होती है। पाप-पंक धल जाता है। वाणी में सतय का वयवहार होने लगता है। मान-सममान की परापति और पाप-à¤à¤¾à¤µ दूर होता है। सतसंगति में जाने से चितत परसनन रहता है और सà¤à¥€ लोग परशंसा करते हैं। सतसंगति परषों के लिये कया नहीं करती अरथात सà¤à¥€ सदगणों को देन वाली है। मलयाचल में सथित चनदन-वन में ककाषठà¤à¥€ चनदन-गनध अपने तन में बसा लेते हैं। कांच सवरणाà¤à¥‚षणों में जड़ा हआ मरकतमणि के समान सशोà¤à¤¿à¤¤ होता है। इसी à¤à¤¾à¤¤à¤¿ सतसंग से मूरख à¤à¥€ विदवान बन जाता है।
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