The Arya Samaj | Article : 1853 से 1857 तक सवामी दयाननद

वैसे तो इतिहास के अनदर सवामी जी के संदरभ में अंगरेजो, वामपंथियों और पोराणिको ने काफी तथय छिपा यधपि सवामी जी अपनी आतमकथा में भी 1856 से 1858 के बीच के कारयों की कोई चरचा नहीं करते। महरषि दयाननद ने अनेक सथानों की यातरा की। उनहोंने हरिदवार में कंभ के अवसर पर पाखणड खणडिनी पताका फहराने के बाद उततर भारत में करांति की अलख जगाई इस विषय पर आज क 90 साल के बजरग ने सवामी जी के बारे में जानकारी उपलबध कराई जिसे सनकर सवामी जी के परति मन में शरदधा की हिलोरे और अधिक उठने लगी

1855 हरिदवार कमभ के बाद मेरठ होते ह सवामी जी को दिलली पहंचना था लेकिन इस बीच घटी क घटना का उललेख करना चाहूगा सवामी जी जब मजफफरनगर के पास पहंचे तो उनहें बड़ी तेज पयास लगी| नजदीक कोई कआ बावड़ी मिल जाये इस उददेशय से वो खेतों से गजर रहे थे तभी अचानक उनकी नजर खेत में काम कर रहे  à¤¦à¥‹ किसानों पर पड़ी जिनमे क का रंग गोरा और दसरे का शयाम वरण (काला ) था किनत दोनों हसते गाते अपने काम में वयसत थे यह सोचकर इनके पास जरूर पीने योगय जल का परबंध होगा सवामी ने करीब जाकर पकारा उनहोंने सवामी जी को ककर परणाम किया अभिवादन की ओपचारिकता के बाद सवामी जी ने पीने के लि जल मागा तो उनहोंने करवे (मिटटी का बना क पातर ) से पानी पिलाया इसके बाद उस लमबे गोरे किसान ने पानी पिया और फिर उस शयाम वरण के किसान ने| पेड़ की छाया में बैठ सवामी जी ने उनके अलग-अलग शारीरिक रंग देखकर उनसे उनकी जाति पूछ ली हालाकि सवामी जी जाति परथा में विशवास नहीं करते थे किनत उनका आपसी मधर वयवहार देखकर जिजञाषा वश पूछा था, गोरे वयकति ने खद का जातिगत परिचय जाट और शयाम वरण वाले ने खद को भंगी बताकर  कराया| सवामी जी ने बनावटी शंका परकट करते ह कहा – फिर आप दोनों क करवे से पानी कयों पी रहे हो? इस पर गोरे से दिखने वाले वयकति(किसान) ने कहा सवामी जी में किसान हू और ये मेरा मजदूर हम तो कई बार अपने बैलो के साथ भी पानी पी लेते है वो तो पश है और हम दोनों मानव है फिर आपस में जातिगत भेदभाव कैसा!! तब उसके उततर से खश हो सवामी जी ने कहा था जैसा सतयारथ परकाश में उललेखित है कि जाट जी जैसे सब हो तो देश का भला हो|

गर विरजाननद जी के शिषय 33 वरषीय गोल मख वाले सवामी दयाननद सारे भारत में साधओं और करांतिकारी योदधा राजा नवाबों के उतसाहवरधक संयोजक थे। करांति परारमभ के लि ३ मई निशचित की थी। मेरठ पहच सवामी जी ने सैनिक छावनी के करीब जहा आज ओघड नाथ का परसिदध मंदिर है वहां पयाऊ लगा वहां से गजरते सैनिको को देश भकति के गीत सना उनके अनदर देश परेम की भावना जागरत करते  à¤‰à¤¨à¤¹à¥‡à¤‚ पानी पिलाते सवामी दयाननद जन सामानय से जंगलों वनों में गजराती हरयाणवी मिशरित सामानय हिनदी भी बोलते à¤¥à¥‡ जब कोई सैनिक सवामी जी से उनका नाम पूछता तो सवामी जी मसकरा देते या बदला हआ नाम बता देते कयोंकि वो ईसट इंडिया कमपनी के सामने तब तक खलकर नहीं आना चाहते थे हालाकि सा नहीं था की सवामी जी अपने शरीर से जीवन से बेहद लगाव कर मरतय से डरते थे किनत जिस परोपकार, देश सेवा और समाज के लिये शरीर की रकषा करते थे, वह उपकार रह जाता। इस कारण रोज वहां से गजरते सैनिको ने सवामी को ओघडनाथ नाम दे दिया ततपशचात सवामी वहां से राजा नाहर सिंह के निवेदन पतर पर मेरठ छावनी में करांति की अलख जगा मथरा चले गये पर पाखंडीओं ने उस जगह पर शिव की मूरति रख ओघडनाथ मंदिर का नाम दे अपना पाखंड चमकाना शरू कर दिया जिसका आज देशों विदेशो तक नाम हैं|

मथरा सभाओं में सवामी दयाननद, राव तलाराम और à¤°à¤¾à¤œà¤¾ नाहरसिंह भी सममिलित होते थे। तीरथ सथानों, परवों और मेलों पर साधू के वेश में लोगों को गपत संदेश के लि भेजते थे। भारतीय सेनाओं में भी कमाल परचार à¤”र देश परेम जागृत था। यदयपि 1857 की करानति सफल नहीं हई। परनत सवामी जी का परयास नहीं रका। वे निरनतर देश के कोने-कोने में घूमकर राषटरपरेम और वैदिक संसकृति का परचार करते रहे। उनके बलिदान के बाद उनके अनयायियों ने इस देश की आजादी में परमख भूमिका निभाई।

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