दूध का दूध पानी का पानी !


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23-Jan-2016Category
शंका समाधानLanguage
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-0 MBTop Articles in this Category
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6 दिसंबर 1956 को माननीय डा. अंबेडकर जी का देहावसान हà¥à¤† । कानपà¥à¤° के वैदिक गवेषक पंडित शिवपूजन सिंह जी का चरà¥à¤šà¤¿à¤¤ 'à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ति निवारण' सोलह पृषà¥à¤ ीय लेख 'सारà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤• ' मासिक के जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ-अगसà¥à¤¤ 1951अंक में उनके देहावसान के पांच वरà¥à¤· तीन माह पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤† । डा. अंबेडकर जी इस मासिक से à¤à¤²à¥€à¤à¤¾à¤‚ति परिचित थे और तà¤à¥€ यह चरà¥à¤šà¤¿à¤¤ अंक à¤à¥€ उनकी सेवा में.à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾ दिया गया था । लेख डा. अंबेडकर के वेदादि विषयक विचारों की समीकà¥à¤·à¤¾ में 54 पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• उदà¥à¤§à¤°à¤£à¥‹à¤‚ के साथ लिखा गया था। इसकी पà¥à¤°à¤¤à¤¿ विदरà¥à¤ के वाशिम जनपद के आरà¥à¤¯ समाज कारंजा के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤‚थालय में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ है।
आशा थी कि अंबेडकर जी जैसे पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤¶à¤¾à¤²à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ या तो इसका उतà¥à¤¤à¤° देते या फिर अपनी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ बताये गये अकाटà¥à¤¯ तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की रोशनी में संपादित करते। लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं किया। à¤à¤¸à¤¾ इसलिये कि जो जातिगत à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ और अपमान उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लगातार सहा उसकी वेदना और विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¸à¤¾ करने से रोक दिया।
डा. अंबेडकर जी की दोनों पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ - अछूत कौन और कैसे तथा शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ की खोज - पर लेख शंका समाधान शैली में लिखा गया था पर डा. कà¥à¤¶à¤²à¤¦à¥‡à¤µ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ जी ने इसे सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ और सरलता हेतॠसंवाद शैली में रà¥à¤ªà¤¾à¤‚तरित किया है जिसे यहां पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया जा रहा है। इस लेख को सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखित 'ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका' के आलोक में पà¥à¤•à¤° सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का निरà¥à¤£à¤¯ सहरà¥à¤· लिया जा सकता है ।
1 - ' अछूत कौन और कैसे '
डा. अंबेडकर- आरà¥à¤¯ लोग निरà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¦ रूप से दो हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ और दो संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में विà¤à¤•à¥à¤¤ थे,जिनमें से à¤à¤• ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€à¤¯ आरà¥à¤¯ और दूसरे यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€à¤¯ आरà¥à¤¯ , जिनके बीच बहà¥à¤¤ बड़ी सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• खाई थी।ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€à¤¯ आरà¥à¤¯ यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ में विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ करते थे,अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦à¥€à¤¯ जादू-टोना में।
पंडित शिवपूजन सिंह- दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ केवल आपके और आप जैसे कà¥à¤› मसà¥à¤¤à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ की उपज है।यह केवल कपोल कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ या कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ विलास है।इसके पीछे कोई à¤à¤¸à¤¾ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ नहीं है। कोई à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¥€ इसका समरà¥à¤¥à¤¨ नहीं करता।अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ में किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का जादू टोना नहीं है।
डा. अंबेडकर- ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ में आरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µà¤¤à¤¾ इंदà¥à¤° का सामना उसके शतà¥à¤°à¥ अहि-वृतà¥à¤° (सांप देवता) से होता है,जो कालांतर में नाग देवता के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤§à¥à¤¦ हà¥à¤†à¥¤
पं. शिवपूजन सिंह- वैदिक और लौकिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में आकाश पाताल का अंतर है।यहाठइंदà¥à¤° का अरà¥à¤¥ सूरà¥à¤¯ और वृतà¥à¤° का अरà¥à¤¥ मेघ है।यह संघरà¥à¤· आरà¥à¤¯ देवता और और नाग देवता का न होकर सूरà¥à¤¯ और मेघ के बीच में होने वाला संघरà¥à¤· है।वैदिक शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के विषय में.निरà¥à¤•à¥à¤¤ का ही मत मानà¥à¤¯ होता है।वैदिक निरूकà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ से अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž होने के कारण ही आपको à¤à¥à¤°à¤® हà¥à¤† है।
डा. अंबेडकर- महामहोपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ डा. काणे का मत है कि गाय की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ के कारण ही वाजसनेही संहिता में गोमांस à¤à¤•à¥à¤·à¤£ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की गयी है।
पं. शिवपूजन सिंह- शà¥à¤°à¥€ काणे जी ने वाजसनेही संहिता का कोई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ और संदरà¥à¤ नहीं दिया है और न ही आपने यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ पà¥à¤¨à¥‡ का कषà¥à¤Ÿ उठाया है।आप जब यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ करेंगे तब आपको सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ गोवध निषेध के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मिलेंगे।
डा. अंबेडकर- ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ से ही यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि ततà¥à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ आरà¥à¤¯ गोहतà¥à¤¯à¤¾ करते थे और गोमांस खाते थे।
पं. शिवपूजन सिंह- कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥à¤¯ और पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर गोमांस à¤à¤•à¥à¤·à¤£ का दोषारोपण करते हैं , किंतॠबहà¥à¤¤ से पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने इस मत का खंडन किया है।वेद में गोमांस à¤à¤•à¥à¤·à¤£ विरोध करने वाले 22 विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के मेरे पास स-संदरà¥à¤ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ हैं।ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ से गोहतà¥à¤¯à¤¾ और गोमास à¤à¤•à¥à¤·à¤£ का आप जो विधान कह रहे हैं , वह वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ और लौकिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के अंतर से अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž होने के कारण कह रहे हैं । जैसे वेद में 'उकà¥à¤·' बलवरà¥à¤§à¤• औषधि का नाम है जबकि लौकिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में à¤à¤²à¥‡ ही उसका अरà¥à¤¥ 'बैल' कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो ।
डा. अंबेडकर- बिना मांस के मधà¥à¤ªà¤°à¥à¤• नहीं हो सकता । मधà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में मांस और विशेष रूप से गोमांस का à¤à¤• आवशà¥à¤¯à¤• अंश होता है ।
पं. शिवपूजन सिंह- आपका यह विधान वेदों पर नहीं अपितॠगृहà¥à¤¯à¤¸à¥‚तà¥à¤°à¥‹à¤‚ पर आधारित है । गृहसूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के वचन वेद विरूधà¥à¤¦ होने से माननीय नहीं हैं । वेद को सà¥à¤µà¤¤: पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मानने वाले महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°," दही में घी या शहद मिलाना मधà¥à¤ªà¤°à¥à¤• कहलाता है । उसका परिमाण 12 तोले दही में चार तोले शहद या चार तोले घी का मिलाना है ।"
डा. अंबेडकर- अतिथि के लिये गोहतà¥à¤¯à¤¾ की बात इतनी सामानà¥à¤¯ हो गयी थी कि अतिथि का नाम ही 'गोघà¥à¤¨' , अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ गौ की हतà¥à¤¯à¤¾ करना पड़ गया था ।
प. शिवपूजन सिंह- 'गोघà¥à¤¨' का अरà¥à¤¥ गौ की हतà¥à¤¯à¤¾ करने वाला नहीं है । यह शबà¥à¤¦ 'गौ' और 'हन' के योग से बना है। गौ के अनेक अरà¥à¤¥ हैं , यथा - वाणी , जल , सà¥à¤–विशेष , नेतà¥à¤° आदि। धातà¥à¤ªà¤¾à¤ में महरà¥à¤·à¤¿ पाणिनि 'हन' का अरà¥à¤¥ 'गति' और 'हिंसा' बतलाते हैं।गति के अरà¥à¤¥ हैं - जà¥à¤žà¤¾à¤¨ , गमन , और पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ । पà¥à¤°à¤¾à¤¯: सà¤à¥€ सà¤à¥à¤¯ देशों में जब किसी के घर अतिथि आता है तो उसके सà¥à¤µà¤¾à¤—त करने के लिये गृहपति घर से बाहर आते हà¥à¤¯à¥‡ कà¥à¤› गति करता है , चलता है,उससे मधà¥à¤° वाणी में बोलता है , फिर जल से उसका सतà¥à¤•à¤¾à¤° करता है और यथासंà¤à¤µ उसके सà¥à¤– के लिये अनà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¯ सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करता है और यह जानने के लिये कि पà¥à¤°à¤¿à¤¯ अतिथि इन सतà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होता है नहीं , गृहपति की आंखें à¤à¥€ उस ओर टकटकी लगाये रहती हैं । 'गोघà¥à¤¨' का अरà¥à¤¥ हà¥à¤† - ' गौ: पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¯à¤¤à¥‡ दीयते यसà¥à¤®à¥ˆ: स गोघà¥à¤¨: ' = जिसके लिये गौदान की जाती है , वह अतिथि 'गोघà¥à¤¨' कहलाता है ।
डा. अंबेडकर- हिंदू बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ हो या अबà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, न केवल मांसाहारी थे, किंतॠगोमांसहारी à¤à¥€ थे।
प. शिवपूजन सिंह- आपका कथन à¤à¥à¤°à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤£ है, वेद में गोमांस à¤à¤•à¥à¤·à¤£ की बात तो जाने दीजिये मांस à¤à¤•à¥à¤·à¤£ का à¤à¥€ विधान नहीं है ।
डा. अंबेडकर- मनॠने गोहतà¥à¤¯à¤¾ के विरोध में कोई कानून नहीं बनाया । उसने तो विशेष अवसरों पर 'गो-मांसाहार' अनिवारà¥à¤¯ ठहराया है ।
पं. शिवपूजन सिंह- मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में कहीं à¤à¥€ मांसà¤à¤•à¥à¤·à¤£ का वरà¥à¤£à¤¨ नहीं है । जो है वो पà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ है । आपने à¤à¥€ इस बात का कोई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ नहीं दिया कि मनॠजी ने कहां पर गोमांस अनिवारà¥à¤¯ ठहराया है। मनॠ( 5/51 ) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हतà¥à¤¯à¤¾ की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ देनेवाला , अंगों को काटने वाला , मारनेवाला , कà¥à¤°à¤¯ और विकà¥à¤°à¤¯ करने वाला , पकाने वाला , परोसने वाला और खानेवाला इन सबको घातक कहा गया है ।
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2- ' शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ की खोज '
डा. अंबेडकर- पà¥à¤°à¥‚ष सूकà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ ने अपनी सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ सिधà¥à¤¦à¤¿ के लिये पà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ किया है।कोल बà¥à¤• का कथन है कि पà¥à¤°à¥‚ष सूकà¥à¤¤ छंद और शैली में शेष ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है। अनà¥à¤¯ à¤à¥€ अनेक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का मत है कि पà¥à¤°à¥‚ष सूकà¥à¤¤ बाद का बना हà¥à¤† है।
पं. शिवपूजन सिंह- आपने जो पà¥à¤°à¥‚ष सूकà¥à¤¤ पर आकà¥à¤·à¥‡à¤ª किया है वह आपकी वेद अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ को पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करता है।आधिà¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से चारों वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¥‚षों का समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ - 'संगठित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯'- 'à¤à¤• पà¥à¤°à¥‚ष' रूप है।इस समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ पà¥à¤°à¥‚ष या राषà¥à¤Ÿà¥à¤° पà¥à¤°à¥‚ष के यथारà¥à¤¥ परिचय के लिये पà¥à¤°à¥à¤· सूकà¥à¤¤ के मà¥à¤–à¥à¤¯ मंतà¥à¤° ' बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹Sसà¥à¤¯ मà¥à¤–मासीतà¥...' (यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ 31/11) पर विचार करना चाहिये।
उकà¥à¤¤ मंतà¥à¤° में कहा गया है कि बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ मà¥à¤– है , कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ , वैशà¥à¤¯ जङà¥à¤˜à¤¾à¤à¤ और शूदà¥à¤° पैर। केवल मà¥à¤– , केवल à¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ , केवल जङà¥à¤˜à¤¾à¤à¤ या केवल पैर पà¥à¤°à¥à¤· नहीं अपितॠमà¥à¤– , à¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ , जङà¥à¤˜à¤¾à¤à¤ और पैर 'इनका समà¥à¤¦à¤¾à¤¯' पà¥à¤°à¥à¤· अवशà¥à¤¯ है।वह समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ à¤à¥€ यदि असंगठित और कà¥à¤°à¤® रहित अवसà¥à¤¥à¤¾ में है तो उसे हम पà¥à¤°à¥‚ष नहीं कहेंगे।उस समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ को पà¥à¤°à¥‚ष तà¤à¥€ कहेंगे जबकि वह समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ à¤à¤• विशेष पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के कà¥à¤°à¤® में हो और à¤à¤• विशेष पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से संगठित हो।
राषà¥à¤Ÿà¥à¤° में मà¥à¤– के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤ªà¤¨à¥à¤¨ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ हैं , à¤à¥à¤œà¤¾à¤“ं के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं , जङà¥à¤˜à¤¾à¤“ं के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤ªà¤¨à¥à¤¨ वैशà¥à¤¯ और पैरों के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤ªà¤¨à¥à¤¨ शूदà¥à¤° हैं । राषà¥à¤Ÿà¥à¤° में चारों वरà¥à¤£ जब शरीर के मà¥à¤– आदि अवयवों की तरह सà¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो जाते हैं तà¤à¥€ इनकी पà¥à¤°à¥‚ष संजà¥à¤žà¤¾ होती है । अवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ या छिनà¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अवसà¥à¤¥à¤¾ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ को वैदिक परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ में पà¥à¤°à¥à¤· शबà¥à¤¦ से नहीं पà¥à¤•à¤¾à¤° सकते ।
आधिà¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से यह सà¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ तथा à¤à¤•à¤¤à¤¾ के सूतà¥à¤° में पिरोया हà¥à¤† जà¥à¤žà¤¾à¤¨, कà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤°, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°- वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯, परिशà¥à¤°à¤®-मजदूरी इनका निदरà¥à¤¶à¤• जनसमà¥à¤¦à¤¾à¤¯ ही 'à¤à¤• पà¥à¤°à¥à¤·' रूप है।
चरà¥à¤šà¤¿à¤¤ मंतà¥à¤° का महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद जी इसपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° अरà¥à¤¥ करते हैं-
"इस पà¥à¤°à¥‚ष की आजà¥à¤žà¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° विदà¥à¤¯à¤¾ आदि उतà¥à¤¤à¤® गà¥à¤£ , सतà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤£ और सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ आदि शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ वरà¥à¤£ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है । इन मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤£ और करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के सहित होने से वह मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में उतà¥à¤¤à¤® कहलाता है और ईशà¥à¤µà¤° ने बल पराकà¥à¤°à¤® आदि पूरà¥à¤µà¥‹à¤•à¥à¤¤ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ वरà¥à¤£ को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया है।इस पà¥à¤°à¥à¤· के उपदेश से खेती , वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° और सब देशों की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को जानना और पशà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ आदि मधà¥à¤¯à¤® गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से वैशà¥à¤¯ वरà¥à¤£ सिधà¥à¤¦ होता है।जैसे पग सबसे नीचे का अंग है वैसे मूरà¥à¤–ता आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से शूदà¥à¤° वरà¥à¤£ सिधà¥à¤¦ होता है।"
आपका लिखना कि पà¥à¤°à¥à¤· सूकà¥à¤¤ बहà¥à¤¤ समय बाद जोड़ दिया गया सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ à¤à¥à¤°à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤£ है।मैंने अपनी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• " ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ दशम मणà¥à¤¡à¤² पर पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का कà¥à¤ ाराघात " में संपूरà¥à¤£ पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯ और पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के इस मत का खंडन किया है कि ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ का दशम मणà¥à¤¡à¤² , जिसमें पà¥à¤°à¥‚ष सूकà¥à¤¤ à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है , बाद का बना हूआ है ।
डा. अंबेडकर- शूदà¥à¤° कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के वंशज होने से कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं।ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ में सà¥à¤¦à¤¾à¤¸ , तà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¶à¤¾ , तृपà¥à¤¸à¥, à¤à¤°à¤¤ आदि शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ के नाम आये हैं।
पं. शिवपूजन सिंह- वेदों के सà¤à¥€ शबà¥à¤¦ यौगिक हैं , रूà¥à¤¿ नहीं । आपने ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ से जिन नामों को पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ किया है वो à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• नाम नहीं हैं । वेद में इतिहास नहीं है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वेद सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आदि में दिया गया जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है ।
डा. अंबेडकर- छतà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ शिवाजी शूदà¥à¤° और राजपूत हूणों की संतान हैं (शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ की खोज, दसवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯, पृषà¥à¤ , 77-96)
पं. शिवपूजन सिंह- शिवाजी शूदà¥à¤° नहीं कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ थे।इसके लिये अनेक पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ इतिहासों.में à¤à¤°à¥‡ पड़े हैं । राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ इतिहासजà¥à¤ž महामहोपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ डा. गौरीशंकर हीराचंद ओà¤à¤¾ , डी.लिटॠ, लिखते हैं- ' मराठा जाति दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¥€ हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ की रहने वाली है । उसके पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ राजा छतà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ शिवाजी के वंश का मूल पà¥à¤°à¥à¤· मेवाड़ के सिसौदिया राजवंश से ही था।' कविराज शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤² दास जी लिखते है - ' शिवाजी महाराणा अजय सिंह के वंश में थे। ' यही सिधà¥à¤¦à¤¾à¤‚त डा. बालकृषà¥à¤£ जी , à¤à¤®. à¤. , डी.लिटॠ, à¤à¤«.आर.à¤à¤¸.à¤à¤¸. , का à¤à¥€ था।
इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° राजपूत हूणों की संतान नहीं किंतॠशà¥à¤§à¥à¤¦ कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं । शà¥à¤°à¥€ चिंतामणि विनामक वैदà¥à¤¯ , à¤à¤®.à¤. , शà¥à¤°à¥€ ई. बी. कावेल , शà¥à¤°à¥€ शेरिंग , शà¥à¤°à¥€ वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤° , शà¥à¤°à¥€ हंटर , शà¥à¤°à¥€ कà¥à¤°à¥‚क , पं. नगेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ , à¤à¤®.à¤à¤®.डी.à¤à¤². आदि विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ राजपूतों को शूदà¥à¤° कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ मानते हैं।पà¥à¤°à¤¿à¤µà¥€ कौंसिल ने à¤à¥€ निरà¥à¤£à¤¯ किया है कि जो कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में रहते हैं और राजपूत दोनों à¤à¤• ही शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ के हैं ।
- ' आरà¥à¤¯ समाज और डा. अंबेडकर,
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