मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ को जलाना à¤à¤• अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ व सनातन संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की उपेकà¥à¤·à¤¾ है !
Author
Prakash AryaDate
06-Mar-2016Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
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amitUpload Date
19-Mar-2016Download PDF
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जे à¤à¤¨ यू परिसर में मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ को जलाना à¤à¤• दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤£ और अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ का परिचायक है। महरà¥à¤·à¤¿ मनॠविषà¥à¤¦à¥à¤§ सनातन धरà¥à¤® के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ थे जिसमें ऊंच नींच, जाति पांत, सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€, पà¥à¤°à¥‚ष, देष काल के à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ का लेषमातà¥à¤° à¤à¥€ कहीं कोई à¤à¤¾à¤µ नहीं रहता है। अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ के कारण ही यह हो रहा है। वासà¥à¤¤à¤µ में जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° आज समाज सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से दूर होकर समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ को धरà¥à¤® मान रहा है, उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सà¥à¤¨à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ और सनातन धरà¥à¤® की मूल à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ व आसà¥à¤¥à¤¾ को कà¥à¤·à¤¤à¤¿ पहà¥à¤‚चाने वालों ने मनॠके लिठजाति वाचक और महिला विरोधी शबà¥à¤¦ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया है।
वासà¥à¤¤à¤µ में मनॠका पूरा विचार वेेद जो ईषà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है, उस पर आधारित है, जिसमें मानव मानव के बीच किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की विषमता का à¤à¤• à¤à¥€ शबà¥à¤¦ नहीं है। मनॠने ही नारी जाति के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में यह सनà¥à¤¦à¥‡à¤· समाज को दिया था ‘‘यतà¥à¤° नारà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¥ पूजà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥‡ रमनà¥à¤¤à¥‡ ततà¥à¤° देवताः’’ सनातन संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के पोषक मनॠकà¤à¥€ à¤à¥€ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की बातों का समरà¥à¤¥à¤¨ नहीं कर सकते। नारी का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में पà¥à¤°à¥‚षों से à¤à¥€ अधिक देते हà¥à¤ वैदिक विचारधारा मंे लिखा गया ‘‘मातृमान पितृमान आचारà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨’’ माता को पहला सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दिया। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° मानव निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में माता का ही निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कहते हà¥à¤ लिखा माता निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤¤à¤¿’’। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¤¨à¤• और महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ विचारों से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤, आचारà¥à¤¯ मनॠनारी जाति के विरूदà¥à¤§ कैसे लिख सकते हैं ? यह दोष जानबूà¤à¤•à¤° उन लोगों ने जो सनातन धरà¥à¤® को बदनाम करना चाहते थे, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मनॠके विचारों में à¤à¤¸à¥€ मिलावट की है। मनॠके संबंध में विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ लेखक डाॅ. सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤° कà¥à¤²à¤ªà¤¤à¤¿ गà¥à¤°à¥‚कà¥à¤² कांगड़ी हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखी गई ‘‘विषà¥à¤¦à¥à¤§ मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿’’ को पढ़कर देखा जा सकता है और मनॠके नारी जाति के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¤¨à¤• à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को पढ़ा जा सकता है ताकि à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚ति का सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ निराकरण हो जावेगा।
वासà¥à¤¤à¤µ में नारी जाति की गरिमा को महतà¥à¤µ देने का जो विचार रखते हैं वह सराहनीय है किनà¥à¤¤à¥ विरोध करना है तो उनका करो जिनमें नारी को पशॠतà¥à¤²à¥à¤¯ बताया है, नारी को à¤à¥‹à¤— की वसà¥à¤¤à¥ कहा है, और नारी को गà¥à¤²à¤¾à¤® बनाकर रखा है, तब इसे सचà¥à¤šà¤¾ पà¥à¤°à¥‚षारà¥à¤¥ कहा जा सकता है। यह कारà¥à¤¯ 5000 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ यदि किसी ने किया है तो वह महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ हैं, इसकी पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करना है तो महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ कृत सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤· के 13वें, 14 वें समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ को पढ़कर की जा सकती है।
यह धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देने योगà¥à¤¯ बात है कि सनातन संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को दूषित करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ आज से नहीं वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से हो रहा हे और इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के कई षड़यनà¥à¤¤à¥à¤° पकड़े गठयह à¤à¥€ उसी दà¥à¤·à¥à¤•à¥ƒà¤¤à¥à¤¯ का परिणाम है। पहले किसी à¤à¥€ विचार व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पढ़े, समà¤à¥‡ फिर उसके संबंध में निरà¥à¤£à¤¯ लेना उचित होगा। सà¥à¤¨à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ बातों पर या अधूरे जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से किसी के संबंध में सही निरà¥à¤£à¤¯ नहीं लिया जा सकता है।
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