सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ को वेदों की पà¥à¤°à¤¥à¤® पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ धौलपà¥à¤° से हà¥à¤ˆ थी
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Manmohan Kumar AryaDate
31-Mar-2016Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
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UmeshUpload Date
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सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ मथà¥à¤°à¤¾ में अपने विदà¥à¤¯à¤¾ गà¥à¤°à¥ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी से अपनी शिकà¥à¤·à¤¾ पूरà¥à¤£ कर सनॠ1863 में आगरा पधारे थे और यहां लगà¤à¤— डेढ़ वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ किया था। गà¥à¤°à¥ जी से विदाई के अवसर पर गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¤°à¤£ के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी के जीवनी लेखक पं. लेखराम जी ने लिखा है कि ‘तीन वरà¥à¤· के समय में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दयाननà¥à¤¦ जी को वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ के अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€, महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, वेदानà¥à¤¤à¤¸à¥‚तà¥à¤° और इससे अतिरिकà¥à¤¤ à¤à¥€ जो कà¥à¤› विदà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥‹à¤· उनके पास था, वह सब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सौंप दिया था और ऋषिकृत गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जो बातें निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ की हà¥à¤ˆà¤‚ थीं, वे सà¤à¥€ उनके मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• में डाल दीं। उनका विचार था कि हमारे शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में से हमारे काम को यदि कà¥à¤› करेगा तो दयाननà¥à¤¦ ही करेगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर विदà¥à¤¯à¤¾ समापà¥à¤¤à¤¿ की सफलता की गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ मांगी। दयाननà¥à¤¦ ने निवेदन किया कि जो आपकी आजà¥à¤žà¤¾ हो मैं उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हूं। तब दंडी जी ने कहा कि (1) देश का उपकार करो, (2) सतà¥à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का उदà¥à¤§à¤¾à¤° करो (3) मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की विदà¥à¤¯à¤¾ को मिटाओ और (4) वैदिक धरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करो। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी ने अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• कà¥à¤·à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करते हà¥à¤ और बहà¥à¤¤ विनय पूरà¥à¤µà¤• इसको सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया और वहां से विदा हो गये। गà¥à¤°à¥ जी ने आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ दिया और चलते हà¥à¤ à¤à¤• अमूलà¥à¤¯ बात और à¤à¥€ कह दी कि मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤•à¥ƒà¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में परमेशà¥à¤µà¤° और ऋषियों की निनà¥à¤¦à¤¾ है और ऋषिकृत गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में नहीं, इस कसौटी को हाथ से न छोड़ना।’
इसी गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ बाद का यह वरà¥à¤£à¤¨ à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ है कि ‘सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के पास à¤à¤• गीता और विषà¥à¤£à¥-सहसà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• थी वह मनà¥à¤¦à¤¿à¤° लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ के पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ को दे दी। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी बैशाख मास के अनà¥à¤¤ संवतॠ1920 तदनà¥à¤¸à¤¾à¤° अपà¥à¤°à¥ˆà¤² सनॠ1863 में दो वरà¥à¤· 6 मास तक मथà¥à¤°à¤¾ में शिकà¥à¤·à¤¾ पाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ आगरे की ओर पधार गये। चूंकि गरà¥à¤®à¥€ हो गई थी, इसलिये अपना लिहाफ à¤à¥€ वहां मथà¥à¤°à¤¾ के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में छोड़ गये। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ का दूसरा पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ घासीराम à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के साथ आगरे गया था।’
आगरा में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी ने अपà¥à¤°à¥ˆà¤²-मई 1863 से सितमà¥à¤¬à¤°-अकà¥à¤¤à¥‚बर सनॠ1864 तक पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ किया। यहां वरà¥à¤£à¤¨ है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के पास आगरा में महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ और कà¥à¤› अनà¥à¤¯ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ थी। सायंकाल और पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•à¤¾à¤² समाधि लगाते थे। आगरा पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ में ही ‘वेदों की खोज में धौलपà¥à¤° की ओर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨’ शीरà¥à¤·à¤• से पृषà¥à¤ 51 (जीवन चरित संसà¥à¤•à¤°à¤£ 1985) वरà¥à¤£à¤¨ है कि ‘à¤à¤• दिन सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने पंडित सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤²à¤¾à¤² जी से कहा कि कहीं से वेद की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लानी चाहिà¤à¥¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लाल जी बड़ी खोज करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ पंडित चेतोलाल जी और कालिदास जी से कà¥à¤› पतà¥à¤°à¥‡ वेद के लाये। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने उन पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को देखकर कहा कि यह थोड़े हैं, इनसे कà¥à¤› काम न निकलेगा। हम बाहर जाकर कहीं से मांग लावेंगे। आगरा में ठहरने की अवसà¥à¤¥à¤¾ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी समय समय पर पतà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अथवा सà¥à¤µà¤¯à¤‚ मिलकर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजाननà¥à¤¦ जी से अपने सनà¥à¤¦à¥‡à¤¹ निवृतà¥à¤¤ कर लिया करते थे।’ इस वरà¥à¤£à¤¨ से यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होता है कि आगरा में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ तक सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के पास चार वेद वा इनकी मूल संहितायें नहीं थी। इसके बाद जीवन चरित में ‘धौलपà¥à¤° में 15 दिन रहकर लशà¥à¤•à¤° की ओर’ शीरà¥à¤·à¤• के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त वरà¥à¤£à¤¨ है कि ‘सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी कारà¥à¤¤à¤¿à¤• बदि संवतॠ1921 तदनà¥à¤¸à¤¾à¤° 1864 ईसà¥à¤µà¥€ को आगरा से वेद की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की खोज में धौलपà¥à¤° पधारे और वहां 15 दिन तक निवास किया फिर गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° चले गये।’
धौलपà¥à¤° में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के 15 दिवसीय पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ का विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ विवरण उपलबà¥à¤§ नहीं है। वह यहां कहां रहे, किस-किससे मिले और यहां उनकी अनà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ गतिविधियां थी? पूरà¥à¤µ विवरणों में संकेत है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ वेदों की खोज में यहां आये थे परनà¥à¤¤à¥ इनको यहां वेद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ या नहीं, इसका उलà¥à¤²à¥‡à¤– उपलबà¥à¤§ विवरण में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होता। यहां से सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी 2 नवमà¥à¤¬à¤°, सनॠ1864 को गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° आते हैं जहां महाराज जियाजी राव जी की ओर से à¤à¤¾à¤—वत-कथा की बड़े पैमाने पर आयोजन की तैयारी चल रही थी जो कि 4 फरवरी, 1865 से आरमà¥à¤ होकर 11 फरवरी, 1865 को समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆà¥¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी धौलपà¥à¤° से चलकर 2 महीने 23 दिनों बाद गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° 24 जनवरी, 1865 को गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° पहà¥à¤‚चे थे। इसका अरà¥à¤¥ है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी आगरा से धौलपà¥à¤° 16-17 अकà¥à¤¤à¥‚बर, 1864 को आये होंगे। गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° आने से पूरà¥à¤µ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने आबू परà¥à¤µà¤¤ पर जाकर अपने योग गà¥à¤°à¥à¤“ं से à¤à¥‡à¤‚ट की थी। गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° से सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी करौली (राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨) पधारे थे। जीवन चरित में ‘करौली में कई मास रहकर जयपà¥à¤° को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨’ शीरà¥à¤·à¤• के अनà¥à¤°à¥à¤¤à¤—त जानकारी दी गई है कि गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° से सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी करौली में पधारे और राजा साहब से धरà¥à¤®à¤µà¤¿à¤·à¤¯ पर वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª होता रहा और पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ कà¥à¤› शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ हà¥à¤ और यहां पर कई मास ठहर कर वेदों का उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤¨à¤ƒ अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ किया, फिर वहां से जयपà¥à¤° चले गये। यहां करौली में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने वेदों का पà¥à¤¨à¤ƒ अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ किया, इससे संकेत मिलता है कि वह यहां आने से पहले गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤°, आबूपरà¥à¤µà¤¤ या धौलपà¥à¤° में à¤à¤• बार वेदों का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ कर चà¥à¤•à¥‡ थे। करौली से पूरà¥à¤µ आबूपरà¥à¤µà¤¤ में वेदों का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करने की समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ अधिक दिखाई देती है, कारण यह कि वहां सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी लगà¤à¤— ढाई माह से अधिक रहे। करौली से चलकर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी जयपà¥à¤°, अजमेर, पà¥à¤·à¥à¤•à¤°, किशनमढ़, जयपà¥à¤°, आगरा, मेरठहोते हà¥à¤ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के कà¥à¤®à¥à¤ के मेले में पहà¥à¤‚चे थे। मेरठमें वरà¥à¤£à¤¨ है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी यहां चारों वेद, चार उपवेद, 6 वेदांग, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤, हरिवंश, वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ रामायण और तीनों वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ को यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ पहनने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ गायतà¥à¤°à¥€ की आजà¥à¤žà¤¾ देते थे और दो समय सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ करने का निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ करते थे और पंचयजà¥à¤ž का उपदेश देते थे। यह à¤à¥€ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर रहा है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी को मेरठआने से पूरà¥à¤µ ही वेदों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¥€ हो चà¥à¤•à¥€ थी।
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी 12 मारà¥à¤š, सनॠ1867 को पधारे थे। शà¥à¤°à¥€ विशà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकराननà¥à¤¦, दिलà¥à¤²à¥€ निवासी शà¥à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गौड़ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ तथा पांच छः अनà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ आपके साथ थे। सपà¥à¤¤à¤¸à¥à¤°à¥‹à¤¤ (वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में सपà¥à¤¤ सरोवर) पर बाड़ा बांध कर और उसमें आठ-दस छपà¥à¤ªà¤° डलवा कर वहां डेरा किया और वहां à¤à¤• पताका गाड़ दी जिसका नाम ‘पाखंड खणà¥à¤¡à¤¿à¤¨à¥€’ रखा। जीवन चरित में हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ काल में देहरादून के दादू पनà¥à¤¥à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ महाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ à¤à¤• घटना का वरà¥à¤£à¤¨ हà¥à¤† है जिसका शीरà¥à¤·à¤• है ‘उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ केवल वेद ही मानà¥à¤¯ थे-सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ महाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€’। घटना इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है कि ‘सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ महाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जो उस समय दादूपंथ में थे, इस कà¥à¤®à¥à¤ पर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी से मिले। उनकी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ की अचà¥à¤›à¥€ योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। वह कहते हैं कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने उस समय रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· की माला, जिसमें à¤à¤•-à¤à¤• बिलà¥à¤²à¥Œà¤° या सà¥à¤«à¤Ÿà¤¿à¤• का दाना पड़ा हà¥à¤† था, पहनी हà¥à¤ˆ थी, परनà¥à¤¤à¥ धारà¥à¤®à¤¿à¤• रूप में नही। हमने वेदों के दरà¥à¤¶à¤¨, वहां सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के पास किये, उससे पहले वेद नहीं देखे थे। हम बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ कि आप वेद का अरà¥à¤¥ जानते हैं। उस समय सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी वेदों के अतिरिकà¥à¤¤ किसी अनà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को (सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£) न मानते थे।’ इस घटना में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के पास चार वेद होने का सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ वरà¥à¤£à¤¨ है जिसे महाननà¥à¤¦ जी ने देखा था।
पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी को वेद कहां से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤? आगरा में उनके पास वेद नहीं थे जिसके लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पं. सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤²à¤¾à¤² जी को लाने को कहा था। न मिलने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा था कि ‘हम बाहर जाकर कहीं से मांग लावेंगे।’ यह घटना ‘वेदों की खोज में धौलपà¥à¤° की ओर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨
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