वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ ही धरà¥à¤® व इतर विचारधारायें मत-पनà¥à¤¥-समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯â€™
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Manmohan Kumar AryaDate
07-Apr-2016Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
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UmeshUpload Date
19-Apr-2016Download PDF
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धरà¥à¤® शबà¥à¤¦ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ व इसका शबà¥à¤¦ का आरमà¥à¤ वेद à¤à¤µà¤‚ वैदिक साहितà¥à¤¯ से हà¥à¤† व अनà¥à¤¯à¤¤à¥à¤° फैला है। संसार का सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ वेद है। वेद ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जो सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है। यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में इस संसार के रचयिता परमेशà¥à¤µà¤° वा सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ से आदि चार ऋषियों वा मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को मिला था। परमातà¥à¤®à¤¾ ने वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिया और इस बात का कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है कि वेद ही ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है? वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ परमातà¥à¤®à¤¾ ने दिया है, इसका पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ यह है कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का धारक व पालक संसार में à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° ईशà¥à¤µà¤° है, अनà¥à¤¯ कोई नहीं है। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सिखना पड़ता है। यह उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ से सीख सकता है जो पहले से कà¥à¤› सीखे हà¥à¤ होते हैं। अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ होता है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ उनको सिखाने वाला कौन था? इसका उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤• ही है कि वह इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने वाला ईशà¥à¤µà¤° ही था। उसने जà¥à¤žà¤¾à¤¨, विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अपनी सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¤¤à¤¾, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ और सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¤à¤¤à¤¾ से इस समसà¥à¤¤ अननà¥à¤¤ संसार को पूरà¥à¤µ कलà¥à¤ª के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° रचा है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को आंख, नाक, कान, जिहà¥à¤µà¤¾ व तà¥à¤µà¤šà¤¾ आदि जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ उसी ने अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨, विजà¥à¤žà¤¾à¤¨, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ व सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¤à¤¤à¤¾ के गà¥à¤£ से ही बनाकर मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ काल में अब पà¥à¤°à¤¥à¤® उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† तो उसका पालन करने के लिठमाता व पिता तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व शिकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठगà¥à¤°à¥, अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• व आचारà¥à¤¯ संसार में नहीं थे। उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ सà¤à¥€ यà¥à¤µà¤¾ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से शूनà¥à¤¯ थे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बिना पढ़े कोई जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ नहीं हो सकता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जनà¥à¤® से ही कोई à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से यà¥à¤•à¥à¤¤ नहीं होता। à¤à¤¾à¤·à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹ को सीखनी पड़ती है। पहले माता-पिता व बाद में विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ मे आचारà¥à¤¯ व गà¥à¤°à¥ à¤à¤¾à¤·à¤¾ सिखाने के साथ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ पढ़ाते हैं। संसार के आरमà¥à¤ में माता-पिता व आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के न होने के कारण à¤à¤• ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ सतà¥à¤¤à¤¾ ही बचती है जिनसे मनà¥à¤·à¥à¤¯ को à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता व हो सकता है। यह इस कारण से आदि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤¾à¤·à¤¾ व धरà¥à¤®à¤¾à¤§à¤°à¥à¤® का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° से मिलना ही पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ तथà¥à¤¯ है। इसका अनà¥à¤¯ कोई उतà¥à¤¤à¤° नहीं है। ईशà¥à¤µà¤° से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मिलना निरà¥à¤¦à¥‹à¤· उतà¥à¤¤à¤° है तथा अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ व अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ दोषपूरà¥à¤£ हैं जो परीकà¥à¤·à¤¾ करने पर असतà¥à¤¯ व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¹à¥€à¤¨ सिदà¥à¤§ होते हैं। ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€ व सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž सतà¥à¤¤à¤¾ होने के कारण जीवातà¥à¤®à¤¾ की आतà¥à¤®à¤¾ में ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को à¤à¤¾à¤·à¤¾ सहित सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करती है व देती है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में ही निहित होता है, अतः जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के साथ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का मिलना à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ है। आजकल à¤à¥€ समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ करके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के उदाहरण मिलते हैं। बहà¥à¤¤ से लोग इस विदà¥à¤¯à¤¾ को सीख लेते हैं और इसी से अपनी आजीविका चलाते हैं। ईशà¥à¤µà¤° तो जीवातà¥à¤®à¤¾ के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ और सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž है तो वह जीवातà¥à¤®à¤¾ को आतà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥ होने से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं कर सकता? यह सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ समà¥à¤à¤µ है। हम जानते हैं कि माता का गरà¥à¤à¤¸à¥à¤¥ शिशॠमाता के वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° के अनà¥à¤°à¥‚प गà¥à¤£-करà¥à¤®-सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ वाला बनता है। इसका कारण है कि गरà¥à¤ में होते हà¥à¤ जबकि उसका शरीर निरà¥à¤®à¤¾à¤£à¤¾à¤§à¥€à¤¨ होता है वह अपनी माता के आचार, विचार, à¤à¤¾à¤·à¤¾ व à¤à¥‹à¤œà¤¨ आदि से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होता रहता है। जनà¥à¤® के बाद माता की गोद में वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ अनà¥à¤à¤µ करता है और शानà¥à¤¤ रहता है जबकि अनà¥à¤¯ किसी के लेने पर वह पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ रोना आरमà¥à¤ कर देता है। यह à¤à¥€ à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जिससे पता चलता है कि माता के साथ बचà¥à¤šà¥‡ का तादातà¥à¤®à¤¯ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ आतà¥à¤®à¤¾ का आतà¥à¤®à¤¾ के साथ वाला समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ होता है। शरीर से पृथक होने पर à¤à¥€ दोनों आतà¥à¤®à¤¾ से आबदà¥à¤§ रहते हैं। अतः सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° का वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देना सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है।
वेदों की संहितायें, उनके संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ व हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ तथा वेदों के अनेक वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ 4 बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥, 6 दरà¥à¤¶à¤¨, 11 मà¥à¤–à¥à¤¯ उपनिषदें, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿ उपलबà¥à¤§ हैं। इनका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जितना सतà¥à¤¯-सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आवशà¥à¤¯à¤• है वह चार वेदों में सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आदि काल से ही विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषियों से लेकर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ तक ने वेदों को सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का कोष व गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया है। वेद में आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® के साथ सà¤à¥€ à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का à¤à¥€ सूतà¥à¤° रूप में समावेश है। इसका सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° उलà¥à¤²à¥‡à¤– महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने अपनी ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में किया है। अतः वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ वा धरà¥à¤®à¤¾à¤§à¤°à¥à¤® के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सिदà¥à¤§ होते हैं। धरà¥à¤® उस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को ही कहते हैं जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ को अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ व अकरà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ का बोध होता है व जिसका पालन करने से अà¤à¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ व निःशà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸ की सिदà¥à¤§à¤¿ हो। कà¥à¤¯à¤¾ वेदों में व वैदिक साहितà¥à¤¯ में कहीं किसी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ की कोई कमी थी जिसकी देश-देशानà¥à¤¤à¤° के किसी मनà¥à¤·à¥à¤¯ ने अनà¥à¤¸à¤‚धान व खोज की हो जिसने अधूरे वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की हो? जब à¤à¤¸à¤¾ कोई सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ किसी मत व पनà¥à¤¥ में उपलबà¥à¤§ नहीं होता और व वह इसका दावा ही करते हैं तो फिर विशà¥à¤µ के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठकिसी नवीन मत की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ ही नहीं रहती। मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सà¤à¥€ करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ व अकरà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ वेदों व महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के पूरà¥à¤µ काल के वैदिक साहितà¥à¤¯ में सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गपूरà¥à¤£ रूप से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ होने के कारण वेद अपने आप में पूरà¥à¤£ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जाति का धरà¥à¤® है। वेदों की सरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ के कारण मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठकिसी नये मत की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ ही नहीं है। वेद धरà¥à¤® ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥‚रà¥à¤à¥‚त धरà¥à¤® है और सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठयही धरà¥à¤® आचरणीय व करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। हमारे मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, उपनिषदà¥, दरà¥à¤¶à¤¨, रामायण, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ व अनà¥à¤¯ जितने à¤à¥€ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं उनमें धरà¥à¤® शबà¥à¤¦ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— वेद के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के आचरण करने से ही समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ रखता है। वेदों का धरà¥à¤® सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ पूरà¥à¤£ धरà¥à¤® है। यही कारण है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ से महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक और महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के à¤à¥€ बहà¥à¤¤ बाद तक वैदिक धरà¥à¤® ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ सहित विशà¥à¤µ का à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° धरà¥à¤® रहा है। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक अनà¥à¤¯ किसी धरà¥à¤® के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– व विवरण विशà¥à¤µ के साहितà¥à¤¯ में उपलबà¥à¤§ नहीं है।
महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के बाद संसार में अनेक मत-मतानà¥à¤¤à¤° जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रिलीजन, मजहब, समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ व पनà¥à¤¥ à¤à¥€ कह सकते हैं, असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आये। कारणों पर विचार करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के महायà¥à¤¦à¥à¤§ के बाद आलसà¥à¤¯ व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦ के कारण वैदिक धरà¥à¤® व वैदिक सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ विशृंखलित हो गई। समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° जैमिनी ऋषि पर आकर ऋ़षियों की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ à¤à¥€ समापà¥à¤¤ हो गई और वेदों के पारदरà¥à¤¶à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ नगणà¥à¤¯ हो गई। विशà¥à¤µ में वेदों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° बनà¥à¤¦ हो गया। देश के अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ मनमानी करने लगे और सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ से पूरà¥à¤£ नये नये अवैदिक विधान दिखाई देने लगे। अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° बढ़ता गया और कà¥à¤› अचà¥à¤›à¥‡ आशय वाले सजà¥à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ ने देश व विदेश मं समाज के हित की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अपनी-अपनी योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° लोगों को अपने मत में संगठित व दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया। यह सà¤à¥€ लोग वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से परिचित नहीं थे। उन लोगों के समà¥à¤®à¥à¥à¤– वेदों का पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ आचार, विचार व वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° ही अनेकों विकृतियों के साथ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ था। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जो उचित लगा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ किया और उन-उन के नये मत, पनà¥à¤¥, समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ ही पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ होकर विसà¥à¤¤à¤¾à¤° को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤à¥¤ अनेकों पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के चमतà¥à¤•à¤¾à¤° आदि à¤à¥€ इन वेदेतर नये मतों के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने समय-समय पर अपने-अपने मत में मिला लिà¤à¥¤ नये मतों की संखà¥à¤¯à¤¾ समय व सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वृदà¥à¤§à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती रही। यह मत व पनà¥à¤¥ धरà¥à¤® न होकर मत, पनà¥à¤¥, रिलीजन, मजहब व समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ आदि शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आते हैं। à¤à¤¾à¤°à¤¤ से इतर मत व पनà¥à¤¥ जिस à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हैं उन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में धरà¥à¤® नाम का शबà¥à¤¦ à¤à¥€ नहीं है। धरà¥à¤® वेद, वैदिक साहितà¥à¤¯ व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का शबà¥à¤¦ है। अनà¥à¤¯ मतों की अपनी-अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ होने से उनके अपने-अपने शबà¥à¤¦ हैं, उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ से उनको समà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ किया जाना चाहिये। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में यह कà¥à¤› फैशन सा हो गया है कि देशी व विदेशी सà¤à¥€ मतों व पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को धरà¥à¤® मान लिया गया है जिससे यथारà¥à¤¥ व सदधरà¥à¤® वैदिक धरà¥à¤® के बारे में अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ फैल गई हैं। वैदिक धरà¥à¤® जो कि वेद व वेदानà¥à¤•à¥‚ल वैदिक साहितà¥à¤¯ पर आधारित है औरयà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿, तरà¥à¤• व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ पर आधारित जो सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है, वही वैदिक धरà¥à¤® है। इससे इतर देश व विशà¥à¤µ में जितने à¤à¥€ मत व समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ हैं वह धरà¥à¤® न होकर, मत-पनà¥à¤¥-समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯-रिलीजन-मजहब आदि शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में ही आते हैं और उनके लिठउनकी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के उपयà¥à¤•à¥à¤¤ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करना चाहिये।
हमारा इस लेख को लिखने का अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ यही है कि सतà¥à¤¯, सनातन, ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ वेद व इसकी शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं, मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं, सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ व विधानों का पालन ही वैदिक धरà¥à¤® है। इससे इतर, विपरीत, सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ धरà¥à¤® नहीं हैं। जो सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ व मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ वेद, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व पूरà¥à¤£ सतà¥à¤¯ के अनà¥à¤°à¥‚प व अनà¥à¤•à¥‚ल है, वह वैदिक धरà¥à¤® के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त आ जाते हैं। वैदिक मत से इतर मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ वाले सà¤à¥€ संगठन व समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ मत व पनà¥à¤¥ की ही शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आते हैं। अतः सà¥à¤§à¥€ व विजà¥à¤ž लोगों को वेद से इतर मत-पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के लिठधरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— न कर उनके लिठउचित व यथारà¥à¤¥ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करना चाहिये जिससे धरà¥à¤® विषयक यथारà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का सबको जà¥à¤žà¤¾à¤¨ रहे। धरà¥à¤® संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का शबà¥à¤¦ है और इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, दरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषद, रामायण व महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में वेद मत व वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठही हà¥à¤† है। इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को जान व समठकर ही सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को धरà¥à¤® शबà¥à¤¦ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करना चाहिये।
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