हिनदी-दिवस और हिनदसतान


Author
Pradumn Varni AryaDate
14-Sep-2014Category
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HindiTotal Views
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SaurabhUpload Date
19-Sep-2014Download PDF
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à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरष क सा राषटर है जो विशव का सबसे बड़ा गणराजय माना जाता है। और इसे समपरà¤à¤¤à¤µ समपनन कहा जाता है। तथा विशव के सबसे बड़े संविधान का गौरव à¤à¥€ परापत है। इसको अनय कई नामों से à¤à¥€ पकारा जाता है जिनमें से क है हिनदसतान, जिसकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनदी है। और इसकी सनातन आरय जाति सवयं को हिनद कहने पर गरव करती है। लेकिन-हाय री! वयवसथा, आज हिनदी ;आरय à¤à¤¾à¤·à¤¾ अपने सदिनों की बाट जोह रही है। आज केवल उतसव मनाने के लि हिनदी को पहचाना जा रहा है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के संविधान में हिनदी को राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ का दरजा परापत है। लेकिन कारयपरणाली अंगरेजी में ही चलायमान है जबकि-संविधान में केवल 15 वरषों के लि राजकीय औपचारिकताओं को पूरा करने के लि सहायिका के रप में ठहराया गया था। लेकिन आज क सहायिका ने राजरानी पर आधिपतय जमा अधिषठातरी बन बैठी है। और आरयवरत की आतमा को तिल-तिल कर जीने के लि विवश कर दिया गया है। जबकि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति की अपनी क विशिषटता है। यहा का उतकृषट साहितय माता, मातृà¤à¥‚मि और मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ की शरेषठता की कामना करता है। गाधी जी ने बालक की परारमà¤à¤¿à¤• शिकषा का वरणन करते ह कहा कि- “बालक की परारमà¤à¤¿à¤• शिकषा उसकी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ में ही होनी चाहि।“ महान साहितयकार à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥‡à¤¨à¤¦ हरिशचंदर ने कहा कि- निज à¤à¤¾à¤·à¤¾ उननति अहो, सबै उननति के मूल। बिन निज à¤à¤¾à¤·à¤¾ जञान के, मिटै न हिय के शूल।। अरथात किसी à¤à¥€ राषटर की तब तक समपूरण उननति नहीं हो सकती जब तक उसमें निज à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पूरण विलय न हो।
यदि हमें अपने संविधान का सममान और रकषा à¤à¥€ करनी है तो हमें परथम हिनदी की रकषा à¤à¥€ करनी है। और लारड मैकाले की उस घोषणा को असतय सिदध करना होगा कि- “ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समपूरण जञान à¤à¤£à¤¡à¤¾à¤° यूरोप के क पसतकालय के बराबर à¤à¥€ नहीं है।“ कहा जाता है कि जापान में तब तक किसी शबद को परयोग नहीं किया जाता जब तक कि उसका रपानतरण उनकी अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ जापानी में नहीं हो जाता। हम अनेक à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• उननतियों का अनसरण तो करते है, बराबरी चाहते है लेकिन मौलिकताओं पर धयान नही देते है। वरतमान में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के परधानमनतरी आदरणीय नरेनदर
मोदी जी ने जापान के साथ अनेक विकास के मददों पर समौते कि जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ की दशा वं दिशा को बदलना चाहते है। वहीं हमें अपने सममान अपने राषटर और अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ की à¤à¥€ रकषा करनी है। नई सरकार के गठन के उपरानत संसद में हिनदी à¤à¤¾à¤·à¤¾ वयवहार लागू करने पर कछ राजनैतिकों ने विरोध जताया था। लेकिन राषटर के हित में इस परकार का विरोधाà¤à¤¾à¤¸ नहीं होना चाहि, वासतव में मोदी जी का यह क सराहनीय कदम रहा है कयोंकि à¤à¤¾à¤·à¤¾ ही तो जोड़ती है। इसलि à¤à¤¾à¤·à¤¾ का सममान संरकषण परतयेक नागरिक का करततवय है। कयोंकि समृदध à¤à¤¾à¤·à¤¾ से, समृदध साहितय और समृदध साहितय से ही समृदध राषटर का निरमाण हो सकता है।
आज नहीं अब से ही हम निशचय करें कि हमें हिनदी को ही अपने वयवहार की à¤à¤¾à¤·à¤¾ बना रखनी है। हम हिनदी में ही बात करें, हिनदी में हसताकषर करें, हिनदी का ही साहितय पढ़े, पढां तथा हिनदी में ही अनय सनदेशों को परेषित करें, तà¤à¥€ हिनदी की रकषा हो सकती है, और हमारा ‘हिनदी-दिवस’ मनाना सफल हो सकता है। कयोंकि हिनदी ही हिनद की आतमा है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है- हिनदी आतमा हिनद की लनदन में है बनद। सवतनतरता के बाद à¤à¥€ सवेचछा से परतनतर।। अरथात वरतमान समय में जो सथान हिनदी का होना चाहि था वह अंगरेजी को परापत है और सवतंतरता के 67 वरषों के पशचात à¤à¥€ हम अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ को सवतंतर न करा पा आज à¤à¥€ अंगरेजों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ उनके नियमों में हम अपनी इचछा से बंधते जा रहे है, जो à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¤· तथा उसकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ के लि अचछा नहीं है यदि अब à¤à¥€ हम चेत जा तो वह दिन दूर नहीं जब à¤à¤¾à¤°à¤¤ विशव का शिरोमणी होगा। अतः हमें शरदधा से, सवाà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ से, तथा पूरणरूप से हिनदी को अपना कर इस शठदिवस को शà¤-संवतसर बना देना है, जो वासतव मे अपेकषित है।
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