आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दलितोदà¥à¤§à¤¾à¤° का पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾à¤¦à¤¾à¤¯à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग
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Rajeev ChoudharyDate
24-Apr-2016Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
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amitUpload Date
27-Apr-2016Download PDF
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शà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¾à¤œ सिंह बेचैन का जनà¥à¤® चमार दलित परिवार में हà¥à¤† था। बचपन में पिता का साया सर से उठगया। माता ने दूसरा विवाह कर लिया। सौतेले पिता ने पà¥à¤¨à¥‡ लिखने में रूचि रखने वाले शà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¾à¤œ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ जला दी। विषम परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में शà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¾à¤œ सिंह ने जीवन में अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ गरीबी को à¤à¥‡à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤, मजदूरी करते करते कविताओं की रचना करना आरमà¥à¤ किया। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶à¤• उनके छोटे से गांव में उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने के लिठआते थे। उनके राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦à¥€, समाज कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ à¤à¤µà¤‚ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ देने वाले à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेकर शà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¾à¤œ सिंह ने कवितायेठलिखना आरमà¥à¤ किया। गांव के à¤à¤• आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥€ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ ने जातिवाद की संकीरà¥à¤£ मानसिकता से ऊपर उठकर उनके पà¥à¤¨à¥‡ लिखने का पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध किया। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेकर पà¥à¤°à¤—ति की सीढियाठचà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ शà¥à¤¯à¥‹à¤°à¤¾à¤œ सिंह को आज साहितà¥à¤¯ जगत में लेखन के लिठसाहितà¥à¤¯ à¤à¥‚षण पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ किया गया है। आप दिलà¥à¤²à¥€ यूनिवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ में हिंदी विà¤à¤¾à¤— में पà¥à¤°à¥‹à¤«à¥‡à¤¸à¤° है। वाणी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आपकी आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ को पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया है।
आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ ने अपनी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ से लेकर आज तक न जाने कितने होनहार लोगों का जीवन निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया हैं। आशा है सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ कि यह कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ चेतना संसार का इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करती रहे।
मेरे बचपनकी कहानी सचमà¥à¤š सकारातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ की कहानी है। मैं जब पांच वरà¥à¤· का था तो पिताजी की मृतà¥à¤¯à¥ हो गई। उसके सदमे में मेरे दादा à¤à¥€ चल बसे। मैं दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ बाबा (दादाजी के à¤à¤¾à¤ˆ) के साथ रहता था। मां का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¹ हà¥à¤†à¥¤ हमारे सौतेले पिता का à¤à¤• बेटा था। उसके साथ हमें पà¥à¤¨à¥‡ सà¥à¤•à¥‚ल à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ थोड़े दिनों बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤•à¥‚ल में जाकर पूछा कि बचà¥à¤šà¥‡ पà¥à¤¾à¤ˆ में कैसे हैं तो अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• ने कहा कि आपके बड़े बेटे (हमारा सौतेला à¤à¤¾à¤ˆ) में तो संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ नहीं है, लेकिन छोटा बचà¥à¤šà¤¾ कà¥à¤› होनहार लगता है। इस पर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दीजिà¤à¥¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• की बात का हमारे पिताजी पर उलà¥à¤Ÿà¤¾ ही असर हà¥à¤†à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमारी किताबें छीनी, पटà¥à¤Ÿà¥€ फोड़ दी। हमारी मां उनसे किताबें लेने की कोशिश करती रहीं, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने किताबें सामने जल रहे चूलà¥à¤¹à¥‡ में जला दीं। फिर कह दिया कि आज से कोई सà¥à¤•à¥‚ल नहीं जाà¤à¤—ा। मेरी आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ ‘मेरा बचपन, मेरे कंधों पर’ में मैंने सबकà¥à¤› बयान किया है। अब इसका दूसरा à¤à¤¾à¤— ‘यà¥à¤¦à¥à¤§à¤°à¤¤’ रहा है।
इस तरह हमारी पà¥à¤¾à¤ˆ रà¥à¤• गई, लेकिन पà¥à¤¨à¥‡ की बेचैनी थी। हम कोशिश करते कि कोई किताब मिल जाठपà¥à¤¨à¥‡ की। साथ के बचà¥à¤šà¥‡ थे, उनके पास जाकर कà¥à¤› सीखने की कोशिश की। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वह à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾ लगता था। हमारे सौतेले पिता के à¤à¤¾à¤ˆ जà¥à¤†à¤°à¥€ थे। बदायूं के पास नदरौली गांव की बात है। दीपावली का समय था और वे जà¥à¤ में जीतकर आठथे। सारे पैसे जिसमें थे वह कà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ घर में टंगा था और वे बाहर गठथे। मैंने सोचा इतने रà¥à¤ªà¤ में à¤à¤• रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ निकालकर किताब खरीदी जा सकती है। रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ निकालकर मैं दà¥à¤•à¤¾à¤¨ पर जाकर किताब देख रहा था कि पिताजी के बीच वाले à¤à¤¾à¤ˆ ने देख लिया। मैंने आशंका से किताब नहीं खरीदी और चला आया। घर लौटा तो देखा कि मेरी मां रासà¥à¤¤à¥‡ पर कराह रही है, उसे बहà¥à¤¤ मारा है। उन पर रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ चà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ का इलà¥à¤œà¤¾à¤® लगाया गया था। मैंने सोचा सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ बताई तो जो हालत मां की हà¥à¤ˆ है, उससे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बà¥à¤°à¥€ हालत मेरी हो जाà¤à¤—ी। बाद में पà¥à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ की। मैं सोचता रहा कि मां को यह बात बताऊंगा पर कà¤à¥€ बता नहीं पाया। मà¥à¤à¥‡ इसका बड़ा अफसोस रहा। जब मां थीं, मà¥à¤à¥‡ रोजगार नहीं मिल सका कि मैं बताऊं कि किताब के लिठचà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ का कितना अचà¥à¤›à¤¾ नतीजा निकला है। यह कसक लंबे समय बनी रही।
इस घटना के बाद मेरी मां मà¥à¤à¥‡ दिलà¥à¤²à¥€ ले आईं मेरी मौसी के यहां राजौरी गारà¥à¤¡à¤¨ में। उनका à¤à¤• बेटा पà¥à¤¤à¤¾ था। मेरी मां मà¥à¤à¥‡ वहां छोड़कर चली गईं। वहां मैंने काम करना शà¥à¤°à¥‚ किया। कà¥à¤› दिन तो घरों में अखबार डाले। कà¥à¤› दिन मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• रà¥à¤ªà¤ रोज पर होटल में बरà¥à¤¤à¤¨ साफ करने का काम मिल गया था। उसी दौरान मà¥à¤à¥‡ मौसाजी ने सबà¥à¤œà¥€ मंडी जाकर नींबू लाकर बेचना सीखा दिया था। मैं राजौरी गारà¥à¤¡à¤¨ में नींबू बेचता था। मौसाजी के पड़ोस में रिटायरà¥à¤¡ अफसर रहते थे। बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— थे और दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ हो चà¥à¤•à¥‡ थे। उनके बचà¥à¤šà¥‡ विदेश चले गठथे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मौसाजी से कहा कि इस बचà¥à¤šà¥‡ को सामने के नगर निगम के सà¥à¤•à¥‚ल में दाखिला दिला दो। यह दोपहर तक नींबू बेचकर जाता है और यहां दोपहर की दूसरी पाली में इसका à¤à¤¡à¤¿à¤®à¤¿à¤¶à¤¨ हो जाà¤à¤—ा। मेरा à¤à¤¡à¤®à¤¿à¤¶à¤¨ हो गया, लेकिन पहले ही दिन मेरे नींबू नहीं बिके और मà¥à¤à¥‡ लौटने में देर हो गई। मैं 12-12:30 तक जाता था, लेकिन उस दिन 1 बजे से à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ वकà¥à¤¤ हो गया। मौसाजी ने बहà¥à¤¤ फटकारा कि सà¥à¤•à¥‚ल तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ मौसा का नहीं है। सà¥à¤•à¥‚ल हाथ से निकल गया। पà¥à¤¨à¥‡ का मौका फिर रह गया।
वहीं à¤à¤• सिख यà¥à¤—ल था, जिसकी कोई संतान नहीं थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि हम इस बचà¥à¤šà¥‡ को गोद लेना चाहते हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤¨à¥‡ के लिठकà¥à¤› पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ किताबें दीं और कहा कि हम इसे पà¥à¤¾à¤à¤‚गे। मां को पता चला तो वे à¤à¤¾à¤—ी-à¤à¤¾à¤—ी आईं और मोह-ममता में हमें वहां से लेकर चली गईं। वे हमें जहां हम पैदा हà¥à¤ थे नदरौली में छोड़कर वे अपने पति के घर चली गईं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वहां उनके दो बचà¥à¤šà¥‡ थे। गांव में फिर मजदूरी शà¥à¤°à¥‚ हो गई।
उस वकà¥à¤¤ गांव में सà¥à¤•à¥‚ल बन रहा था। गांव में दो-तीन सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानी थे, जो सà¥à¤•à¥‚ल के लिठलोगों से शà¥à¤°à¤®à¤¦à¤¾à¤¨ करा रहे थे। मैं à¤à¥€ चला गया। काम के साथ-साथ मैं कà¥à¤› कविता गà¥à¤¨à¤—à¥à¥à¤¨à¤¾ रहा था। शौक था तà¥à¤•à¤¬à¤‚दी का। दो सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानी अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¥‹à¤‚ ने सà¥à¤¨à¤¾ तो अलग ले गठऔर पूछा कि किसकी कविता गा रहे हो। मैंने कहा कि मन बहलाने के लिठखà¥à¤¦ ही लिख लेता हूं, गा लेता हूं। चूंकि मैं दलित बचà¥à¤šà¤¾ था, कपड़े फटे थे, मजदूरी करता था तो कोई सोच नहीं सकता था कि मà¥à¤à¥‡ अकà¥à¤·à¤°-जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूछा कà¥à¤¯à¤¾ तà¥à¤® पà¥à¥‡ हà¥à¤ हो? गांव के लोगों को खà¥à¤¶à¥€ हà¥à¤ˆ कि जिसका दादा दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ है, पिता है नहीं, मां नहीं है और कविता करता है, यह तो चमतà¥à¤•à¤¾à¤° है। उन दिनों में à¤à¤• राजमिसà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के साथ काम कर रहा था और सà¥à¤¬à¤¹ थैला लेकर à¤à¤¾à¤—ा-à¤à¤¾à¤—ा जा रहा था तो à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• खेत में फसल देख रहे थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और कहां तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ हम पà¥à¤¾à¤à¤‚गे। दया की कोई बात नहीं है। सà¥à¤•à¥‚ल के बाद तà¥à¤® हमारे यहां काम कर लेना तो हम वह खरà¥à¤š वसूल लेंगे। हमने फैसला ले लिया। यह जिंदगी के जà¥à¤à¤‚ जैसा था। मैं वहां चला गया। सालà¤à¤° वे काम कराते रहे। उसी साल सीधे छठी की परीकà¥à¤·à¤¾ दी तो मैं पास हो गया। मैंने पास के गांव जाकर सà¥à¤•à¥‚ल में परीकà¥à¤·à¤¾ दी थी तो वहां के पà¥à¤°à¤¿à¤‚सिपल ने à¤à¤• सरकारी योजना के तहत मà¥à¥à¤à¥‡ सीधे आठवीं में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दिला दिया। फिर मैं नौवीं और दसवीं ककà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ पास कर ली थी मैं दिलà¥à¤²à¥€ गया। मेरे मौसेरे à¤à¤¾à¤ˆ ने à¤à¤®à¤¬à¥€à¤¬à¥€à¤à¤¸ कर लिया था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा दसवीं से कà¥à¤› होगा नहीं, तà¥à¤® थोड़ा और पॠलो।
गांव लौटा तो जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ गà¥à¤œà¤° गया था। इंटर कॉलेज गया तो पà¥à¤°à¤¿à¤‚सिपल ने कहा कि à¤à¤ˆ तà¥à¤® लेट आठहो और मजबूरी है कि पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दे नहीं सकते। जब मैं निराश होकर लौट रहा था उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बà¥à¤²à¤µà¤¾à¤•à¤° कहा कि à¤à¤• तरीका है। 15 अगसà¥à¤¤ को हमारे यहां वाद-विवाद सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾ होती है। यदि तà¥à¤® वह जीत लो तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¡à¤®à¤¿à¤¶à¤¨ मिल जाà¤à¤—ा। हमारा मैनेजमेंट उसके लिठतैयार रहता है। मैंने चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ ली। बहà¥à¤¤ बेचैनी थी। नींद नहीं रही थी। मेरे बाबा ने पूछा कà¥à¤¯à¤¾ बात है बेटा। मैंने समसà¥à¤¯à¤¾ बताई तो बोले, ‘रà¥à¤ªà¤¯à¤¾-पैसे की बात तो है नहीं कि हार मान लो, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की बात है पूरा दम लगा दो।’ मेरे मौसेरे à¤à¤¾à¤ˆ ने दिलà¥à¤²à¥€ में कई दूतावासों में मेरा नाम लिखा दिया था। उन दिनों विदेशी दूतावास अपना पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° साहितà¥à¤¯ मà¥à¤«à¥à¤¤ à¤à¥‡à¤œà¤¾ करते थे। मैंने उसी में से रेफरेंस निकाल-निकालकर अपना à¤à¤¾à¤·à¤£ तैयार किया। यह 1977 की बात होगी। लोग à¤à¤¾à¤·à¤£ सà¥à¤¨à¤•à¤° चकित रह गठकि यह मजदूर बचà¥à¤šà¤¾ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤° के रेफरेंस दे रहा है। हम सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾ जीत गà¤à¥¤ हमारा à¤à¤¡à¤®à¤¿à¤¶à¤¨ हो गया।
बीठकरने चंदौसी के लिठनिकला तो किराठके पैसे तक नहीं थे। घर के बरà¥à¤¤à¤¨ तक बहन की शादी में चले गठथे। मजदूरी से छोटी-सी लà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ थी। सीधे बेचता तो चोरी का आरोप लगता इसलिठउसे तोड़कर बेचा और किराये की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤ फिर बीठकिया। इतनी मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² से मैंने शिकà¥à¤·à¤¾ पूरी की। à¤à¤®à¤ में हम टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से बिना टिकट जा रहे थे। चैकिंग शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ तो मैंने सोचा कि पकड़े गठतो पà¥à¤¾à¤ˆ छूट जाà¤à¤—ी, इसलिठचलती टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से कूद गया। सिर फà¥à¤Ÿ गया, कपड़े फट गà¤, किताबें फट गईं। मà¥à¤ पर गांव के आरà¥à¤¯ समाज का बहà¥à¤¤ असर था। उनके à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के असर से ही मैं कवि बना। गांव में दो शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ पकà¥à¤•à¥‡ गांधीवादी थे। मैं जब लिखने लगा तो छोटे à¤à¤¾à¤ˆ कवि थे। वे उसकी समीकà¥à¤·à¤¾ करते, पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देते। सफर कठिन और बहà¥à¤¤ लंबा रहा। मेरे जीवन का मूल मंतà¥à¤° रहा है शिकà¥à¤·à¤¾à¥¤ हर हाल में पà¥à¤¨à¤¾à¥¤ पà¥à¤¾à¤ˆ की ललक à¤à¤¸à¥€ थी कि मैं कोई à¤à¥€ जोखिम लेने को तैयार था, à¤à¥‚खा रहने को तैयार था, कà¥à¤› à¤à¥€ करने को राजी था। घर छोड़ना है, नाते-रिशà¥à¤¤à¥‡ छोड़ने हैं। सबसे बड़ी बात है कि मेरी जीत हà¥à¤ˆ और बड़ी जीत हà¥à¤ˆ है। बीठकरने दूसरे शहर जाना था तो किराये के पैसे नहीं थे। घर में मजदूरी करके खरीदी हà¥à¤ˆ à¤à¤• लà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ थी। उसे बेचकर किराये के पैसे जà¥à¤Ÿà¤¾à¤à¥¤ मà¥à¤à¥‡ कहा गया कि वाद-विवाद सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾ जीत लो तो इंटर कॉलेज में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ मिल जाà¤à¤—ा। मà¥à¤à¥‡ चिंता में देख मेरे बाबा ने कहा, ‘रà¥à¤ªà¤-पैसे की बात तो है नहीं कि हार मान लो। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की बात है तो पूरा दम लगा दो।’
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