सवामी दरशनाननद जी महाराज


Author
Dr. Vivek AryaDate
19-Sep-2014Category
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SaurabhUpload Date
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सवामी दरशनाननद जी महाराज का समपूरण जीवन क आदरश सनयासी के रूप में गजरा। उनका परमेशवर में अटूट विशवास वं दरशन शासतरों के सवाधयाय से उननत हई तरक शकति बड़ो बड़ो को उनका परशंसक बना लेती थी। संसमरण उन दिनों का हैं जब सवामी जी के मसतिषक में लापर में गरकल खोलने का परण हलचल मचा रहा था। क दिन सवामी जी हरिदवार की गंगनहर के नारे खेत में बैठे ह गाजर खा रहे थे। किसान अपने खेत से गाजर उखाड़कर, पानी से धोकर बड़े परेम से खिला रहा था। उसी समय क आदमी वहां पर से घोड़े पर निकला। उसने सवामी जी को जर खाते देखा तो यह अनमान लगा लिया की यह बाबा à¤à¥‚खा हैं। उसने सवामी जी से कहा बाबा जर खा रहे हो à¤à¥‚खे हो। आओ हमारे यहां आपको à¤à¤°à¤ªà¥‡à¤Ÿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ मिलेगा। अब यह गाजर खाना बंद करो।
सवामी जी ने उसकी बातों को धयान से सनकर पहचान कर कहा। तम ही सीताराम हो, मैंने सब कछ सना हआ हैं। तमहारे जैसे पतित आदमी के घर का à¤à¥‹à¤œà¤¨ खाने से तो जहर खाकर र जाना à¤à¥€ अचछा हैं। जाओ मेरे सामने से चले जाओ। सीताराम दरोगा ने आज तक अपने जीवन में किसी से डांट नहीं सनी थी। उसने तो अनेकों को दरोगा होने के कारण मारापीटा था। आज उसे मालूम चला की डांट फटकार का कया असर होता हैं। अपने दरद को मन में लि दरोगा घर पहंचा। धरमपतनी ने पूछा की उदास होने का कया कारण हैं। दरोगा ने सब आपबीती कह सनाई। पतनी ने कहा सवामी वह कोई साधारण सनयासी नहीं अपित à¤à¤—वान हैं। चलो उनहें अपने घर ले आये। दोनों जंगल में जाकर सवामी जी से अननय-विनय कर उनहें क शरत पर ले आये। सवामी जी को à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराकर दोनों ने पूछा सवामी जी अपना आदेश और सेवा बताने की कृपा करे।
सीताराम की कोई संतान न थी और धन समपति के à¤à¤‚डार थे। सवामी जी ने समय देखकर कहा की सनयासी को à¤à¥‹à¤œà¤¨ खिलाकर दकषिणा दी जाती हैं। सीताराम ने कहा सवामी जी आप जो à¤à¥€ आदेश देंगे हम पूरा करेंगे। सवामी जी ने कहा धन की तीन ही गति हैं। दान, à¤à¥‹à¤— और नाश। इन तीनों गतियों में सबसे उततम दान ही हैं। मैं निरधन विदयारथियों को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति के संसकार देकर, सतय विदया पाकर विदवान बनाना चाहता हू। इस पवितर कारय के लि तमहारी समसत à¤à¥‚मि जिसमें यह बंगला बना हआ हैं। उसको दकषिणा में लेना चाहता हू। इस à¤à¥‚मि पर गरकल सथापित करके देश, विदेश के छातरों को पकर इस अविदया, अनधकार को मिटाना चाहता हू।
सवामी जी का संकलप सनकर सीताराम की धरमपतनी ने कहा। हे पतिदेव हमारे कोई संतान नहीं हैं और हम इस à¤à¥‚मि का करेंगे कया। सवामी जी को गरकल के लि à¤à¥‚मि चाहि उनहें à¤à¥‚मि दे दीजिये। इससे बिया इस à¤à¥‚मि का उपयोग नहीं हो सकता। सिताराम ने अपनी समसत à¤à¥‚मि, अपनी समपति गरकल को दान दे दी और समसत जीवन गरकल की सेवा में लगाया। क जितेनदरिय, तयागी, तपसवी सनयासी ने कितनो के जीवन का इस परकार उदधार किया होगा। इसका उततर इतिहास के गरठमें हैं मगर यह परेरणादायक संसमरण चिरकाल तक सतय का परकाश करता रहेगा।
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