The Arya Samaj | Article : सवामी दरशनाननद जी महाराज

सवामी दरशनाननद जी महाराज का समपूरण जीवन क आदरश सनयासी के रूप में गजरा। उनका परमेशवर में अटूट विशवास वं दरशन शासतरों के सवाधयाय से उननत हई तरक शकति बड़ो बड़ो को उनका परशंसक बना लेती थी। संसमरण उन दिनों का हैं जब सवामी जी के मसतिषक में लापर में गरकल खोलने का परण हलचल मचा रहा था। क दिन सवामी जी हरिदवार की गंगनहर के नारे खेत में à¤¬à¥ˆà¤ à¥‡ ह गाजर खा रहे थे। किसान अपने खेत से गाजर उखाड़कर, पानी से धोकर बड़े परेम से खिला रहा था। उसी समय क आदमी वहां पर से घोड़े पर निकला। उसने सवामी जी को जर खाते देखा तो यह अनमान लगा लिया की यह बाबा भूखा हैं। उसने सवामी जी से कहा बाबा जर खा रहे हो भूखे हो। आओ हमारे यहां आपको भरपेट भोजन मिलेगा। अब यह गाजर खाना बंद करो।

सवामी जी ने उसकी बातों को धयान से सनकर पहचान कर à¤•à¤¹à¤¾à¥¤ तम ही सीताराम हो, मैंने सब कछ सना हआ हैं। तमहारे जैसे पतित आदमी के घर का भोजन खाने से तो जहर खाकर र जाना भी अचछा हैं। जाओ मेरे सामने से चले जाओ। सीताराम दरोगा ने आज तक अपने जीवन में किसी से डांट नहीं सनी थी। उसने तो अनेकों को दरोगा होने के कारण मारापीटा था। आज उसे मालूम चला की डांट फटकार का कया असर होता हैं। अपने दरद को मन में लि दरोगा घर पहंचा। धरमपतनी  à¤¨à¥‡ पूछा की उदास होने का कया कारण हैं। दरोगा ने सब आपबीती कह सनाई। पतनी ने कहा सवामी वह कोई साधारण सनयासी नहीं अपित भगवान हैं। चलो उनहें अपने घर ले आये। दोनों जंगल में जाकर सवामी जी से अननय-विनय कर उनहें क शरत पर ले आये। सवामी जी को भोजन कराकर दोनों ने पूछा सवामी जी अपना आदेश और सेवा बताने की कृपा करे।
सीताराम की कोई संतान न थी और धन समपति के भंडार थे। सवामी जी ने समय देखकर कहा की सनयासी को भोजन खिलाकर दकषिणा दी जाती हैं। सीताराम ने कहा सवामी जी आप जो भी आदेश देंगे हम पूरा करेंगे। सवामी जी ने कहा धन की तीन ही गति हैं। दान, भोग और नाश। इन तीनों गतियों में सबसे उततम दान ही हैं। मैं निरधन विदयारथियों को भारतीय संसकृति के संसकार देकर, सतय विदया पाकर विदवान  à¤¬à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ चाहता हू। इस पवितर कारय के लि तमहारी समसत भूमि जिसमें यह बंगला बना हआ हैं। उसको दकषिणा में लेना चाहता हू। इस भूमि पर गरकल सथापित करके देश, विदेश के छातरों को पकर इस अविदया, अनधकार को मिटाना चाहता हू।

सवामी जी का संकलप सनकर सीताराम की धरमपतनी ने कहा। हे पतिदेव हमारे कोई संतान नहीं हैं और हम इस भूमि का करेंगे कया। सवामी जी को गरकल के  à¤²à¤¿ भूमि चाहि उनहें भूमि दे दीजिये। इससे बिया इस भूमि का उपयोग नहीं हो सकता। सिताराम ने अपनी समसत भूमि, अपनी समपति गरकल को दान दे दी और समसत जीवन गरकल की सेवा में लगाया। क जितेनदरिय, तयागी, तपसवी सनयासी ने कितनो के जीवन का इस परकार उदधार किया होगा। इसका उततर इतिहास के गरभ में हैं मगर यह परेरणादायक संसमरण चिरकाल तक सतय का परकाश करता रहेगा।

 

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