The Arya Samaj | 142nd Varshikotsav

142nd Varshikotsav

142nd Varshikotsav was organized by Arya Samaj Dhamawala Dehradun.

27 Nov 2022
India
Arya Samaj Dhamawala

आर्य समाज धामावाला का 142 वां वार्षिक महोत्सव का शुभारम्भ दिनांक 25-11-2022 की प्रातः वेद मन्त्रों के उच्चारण के साथ आर्य समाज के पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी द्वारा यज्ञ ब्रह्मा के रूप में देवयज्ञ (हवन) से आरम्भ हुआ I तदुपरान्त राष्ट्रिय प्रार्थना, मंत्रोच्चारण व आश्रम की बालिकओं द्वारा ध्वज गीत के साथ आर्य समाज धामावाला के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने ध्वजारोहण किया I इन तीन दिनों में प्रातः देव यज्ञ के कार्यक्रम में यजमान परिवारों के रूप में श्रीमती श्री राजेंद्र खन्ना जी, श्रीमती एवं श्री पी डी गुप्ता जी, श्रीमती एवं श्री चंद्रपाल आर्य जी, श्रीमती स्नेहलता खट्टर जी एवं श्री देसराज खट्टर जी, श्रीमती मधु आर्य जी एवं श्री हर्षवर्धन आर्य जी, श्रीमती एवं श्री दीपक जी डॉ.अंशु आर्य जी एवं डॉ राजीव आर्य जी ; श्रीमती अंजना वाही जी एवं डॉ विनोद वाही जी तथा श्रीमती संगीता वर्मा जी एवं श्री राजीव वर्मा जी उपस्थित रहे I त्रिदिवसीय कार्यक्रम में प्रातः व सांयकाल के सत्र में बरेली से पधारे सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री भानु प्रकाश शास्त्री जी तथा उनके साथी ढोलक वादक श्री नेत्रपाल आर्य जी के द्वारा ईश्वर भक्ति के भजनों का सभी उपस्थित आर्यजनों ने आनन्द उठाया I कन्या गुरुकुल द्रोणस्थली की ब्रह्मचIरिणियों द्वारा वेद मन्त्र -घनपाठ प्रस्तुत किया गया I गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारियों ने वेद मन्त्र -जटा पाठ की प्रस्तुति दी I श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम के बालक/बालिकाओं द्वारा स्वामी श्रद्धानन्द जी के बलिदान पर लघु नाटिका का विमोचन हुआ I  अंतर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता आचार्य आनन्द पुरुषार्थी जी ने ईश्वर के निज नाम ओ३म् की व्याख्या करते हुए तीन शब्दों (अकार  ; उकार  ; मकार  ) के तीन तीन अर्थों पर प्रकाश डाला I जैसे " अकार :" से 1) 'विराट' -जो विविध प्रकार से जगत को प्रकाशित करे ;  2) 'अग्नि'- जो ज्ञान स्वरुप, सर्वज्ञ, प्राप्त होने और पूजा करने योग्य है ;   3) 'विश्व'- जिसमे आकाशादि सब भूत प्रवेश कर रहे हैं अथवा जो इन में व्याप्त होके प्रविष्ट हो रहा है I  "उकार  " से 1) 'हिरण्यगर्भ'- जिसमे सूर्यादि तेजवाले लोक उत्पन होके जिसके आधार रहते हैं ; 2) 'वायु' - जो चराचर जगत का धारण, जीवन और प्रलय करता और बलवानों से बलवान हैं ;  3) 'तैजस' - जो आप स्वयंप्रकाश और सूर्यादि तेजस्वी लोकों  का प्रकाश करने वाला है I   "मकार" से 1) 'ईश्वर'- जिसका सत्य विचारशील ज्ञान और अनंत ऐश्वर्य है ;  2) ' आदित्य'- जिसका विनाश कभी न हो ;  3) 'प्राज्ञ:'- जो निभ्रांत ज्ञानयुक्त सब चराचर जगत के व्यव्हार को यथावत जनता है I आचार्य जी ने संतानों को वेद पढ़ने और स्वाध्याय करने की परंपरा को आगे बढ़Iने व संस्कारी बनने के लिए प्रेरित किया I बालिकाओं को अन्य शिक्षा के साथ साथ अपनी रक्षा हेतु शस्त्र विद्या भी सिखानी चाहिए I उन्होंने कहा कि प्रत्येक  परिवार को चाहिए कि वे  एक बालक को गुरुकुल शिक्षा अवश्य दिलवाएं तो वैदिक संस्कृति बच सकती है I उन्होंने कहा कि इन्द्रियों पर नियंत्रण करने से आत्मा का संयम बनता  है  जो आत्म ज्ञान की वृद्धि करता है I आत्म ज्ञान से आत्म बल की प्राप्ति होती है और आत्म बल से आत्म विश्वास  पैदा  होता  है  जिससे जीवन में सफलता प्राप्त  होती है और जो लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होती है I उन्होंने मन, वाणी तथा शरीर द्वारा होने वाले पापों व पुण्यों पर चर्चा करते हुए ईश्वर की व्यवस्था से मिलने वाले फल पर प्रकाश डाला I  सुल्तानपुर से पधारे वैदिक विद्वान आचार्य डॉ. शिवदत्त पांडेय जी जिन्होंने कुछ दिन पहले वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर अपना नया नाम मुनि शुचि षत धारण किया है, ने ईश्वर की सत्ता के सन्दर्भ में विचार रखे I उन्होंने कहा कि यदि ईश्वर को सुख में स्मरण किया जाये तो दुःख नहीं आएगा, यदि दुःख आएगा तो मनुष्य दुखी महसूस नहीं करेगा I ईश्वर सभी स्थान पर होते हुए सभी को देखता है और उसके कर्मों के आधार पर फल देता है, इसलिए वह न्यायकारी है I मनुष्य का आत्मा सत्य और असत्य का जानने हारा है I  मुनि जी ने कर्मफल के सिद्धांत पर चर्चा करते हुए बताया कि मनुष्य को सुख की प्राप्ति के लिए मन, वचन तथा कर्म से कभी भी अशुभ नहीं करना चाहिए I यदि मन में कोई कुविचार आता है, या वचन अशुभ बोला जाता है और कर्म किया जाता है उसी के आधार पर फल मिलता है I मुनि शुचि षत जी ने कहा कि ईश्वर एक है; धर्म एक है- जो सब के लिए एक हो, जो सब को जोड़े I जो तोड़े वह धर्म नहीं हो सकता I ईश्वर ने प्रथम ज्ञान वेदों के रूप में संस्कृत भाषा में दिया I वैदिक संस्कृति पर विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि अपने को दुःख होने पर भी जो दूसरों को सुखी करने का उपाय करे वह संस्कृति है , अन्य सभ्यताएं हैं I अतिथि को भगवान का  रूप में मानते हुए स्वागत करना - यह संस्कृति है I छुरी - कांटे से भोजन खाना सभ्यता हो सकती है संस्कृति नहीं I सभ्यता कई प्रकार की हो सकती हैं संस्कृति नहीं I उन्होंने आत्मा और शरीर के भेद को दृष्टान्त द्वारा विस्तार से समझाया I कार्यक्रम के अंतिम दिवस (27-11-2022) सम्मान समारोह में देहरादून नगर के प्रतिष्ठित समाज सेवियों जिन्होंने वैदिक संस्कृति व समाज के प्रति अपनी सेवाएं प्रदान की हैं, को सम्मानित किया गया, जिनमे  डॉ RK मेहता जी सेवानिवृत प्रिंसिपल DAV PG  कॉलेज, डॉ नवदीप कुमार जी, सेवानिवृत प्रोफेसर DAV कॉलेज, श्रीमती निर्मला सिंह जी, समाज सेवी, तथा सुश्री संतोष आर्य जी, संचालिका कन्या गुरुकुल महाविद्यालय मुख्य रहे I सम्मान समारोह की अध्यक्षता आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तराखण्ड के प्रधान माननीय श्री दयानन्द तिवारी जी ने की I  त्रिदिवसीय कार्यक्रम में आर्य समाज धामावाला व स्त्री समाज धामावाला के पदाधिकारियों, सदस्यों के अतिरिक्त जिला की अन्य समाजों, डोईवाला, डोबरी , भोगपुर, रूडकी, कोटद्वार, शंकरपुर, लक्ष्मण चौक, करणपुर, कोलागढ़ आदि के पदाधिकारी व सदस्यों ने भाग लिया I कार्यक्रम में श्री ज्ञान चन्द गुप्ता जी, श्री शंकर सिंह क्षेत्री जी, श्रीमती सुदेश भाटिया जी, श्रीमती शैल ढींगरा जी, श्रीमती शीला गुप्ता जी, श्री अशोक नारंग जी, श्रीमती एवं श्री अशोक तलवार  जी, श्री  विश्वमित्र गोगिया जी, श्री नारायण दत्त पांचाल जी, श्री सुधीर गुलाटी जी, श्री धीरेन्द्र मोहन सचदेव जी, श्री सतीश चंद्र जी, श्री धर्मवीर तलवार जी, श्रीमती सुनीता गुरुवारा जी, श्रीमती मृदुला गुलाटी जी, श्रीमती नवीन सचदेव, श्री गंभीर सिंह सिंधवल जी, श्रीमती एवं श्री नरेश गर्ग जी, श्री बसंत कुमार जी, श्रीमती उमा आर्य जी, डॉ सत्येंद्र आर्य जी,  श्री दयानन्द तिवारी जी, श्री राम बाबू सैनी जी, श्री अश्विनी पांचाल जी, श्री पवन कुमार जी, श्री बसंत कुमार जी, श्री लक्ष्मण दस आर्य जी, श्री प्रताप सिंह रोहिल्ला जी,  I मंच का सञ्चालन श्री नवीन भट्ट जी द्वारा किया गया I                                                                

 

137th Varshikotsav

Ved Prachar Saptah