Book Released of Dr. Purn Singh Dabas

15 Dec 2016
Delhi, India
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा

नई दिल्ली, 2 दिसंबर, 2016 को डॉ. पूर्ण सिंह डबास द्वारा लिखित और भारत सरकार के आर्थिक अनुदान से मुद्रित ‘भारतीय सैन्य शब्दों की रोचक कहानियाँ’ नामक पुस्तक का लोकार्पण एंव विवेचन समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह का आयोजन अरावली फाउंडेशन फोर एजुकेशन, अनन्य प्रकाशन तथा महाराजा सूरजमल प्रौद्योगिकी संस्थान के सौजन्य से संस्थान के प्रांगण में किया गया।

इस अवसर पर पूर्व डीन ऑफ कॉलेज डॉ. एस॰ एस॰ राणा (जिन को यह पुस्तक समर्पित की गई है), प्रो॰ नित्यानन्द तिवारी, श्री सुधीर सक्सेना (सम्पादक ‘दुनिया-इन दिनों’), प्रो॰ अजय तिवारी, डॉ. नरेन्द्र शुक्ल, सूरजमल समारक शिक्षा समिति के अध्यक्ष श्री एस॰ पी॰ सिंह ने पुस्तक का लोकार्पण करते हुए इस के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यवाही का संचालन युवा समीक्षक श्री आशीष मिश्र ने किया। कार्यक्रम में भाग लेने आए प्रबुद्ध श्रोताओं और विभिन्न विषयों के विद्वानों से संस्थान का सेमिनार हॉल खचाखच भरा हुआ था।

यह सुखद संयोग ही कहा जाएगा कि इस कार्यक्रम के तय हो जाने के बाद डा॰ डबास की तीन और पुस्तकें: ‘हिंदी में देसज शब्द ’ (शब्द कोष), ‘चरण धूलि इंटर नेशनल’ तथा ‘मेरी श्रेष्ट व्यंग्य रचनाएँ (दोनों हास्य-व्यंग्य) भी छप कर आ गई । परिणामतः इसी दिन एक के स्थान पर चार पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।

कार्यवाही के आरंभ में पुस्तक के लेखक डॉ. पूर्ण सिंह डबास ने पुस्तक लिखने की पृष्ट भूमि का संक्षेप में उल्लेख करते हुए श्रोताओं के सामने पुस्तक के वण्र्य विशय और उसके महत्त्व की चर्चा की। प्रो॰ अजय तिवारी ने कहा कि उन्होंने पूरी पुस्तक को ध्यान से पढ़ा है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह भाषा विज्ञान की पुस्तक तो है ही यह इतिहास लेखन के लिए भी एक दिषा बोध देती है। उन्होंने कहा कि डा॰ राम विलास शर्मा ने तीन खंडों में प्रकाशित  à¤…पने कार्य ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी’ में जिस भाषायी परिवेश  à¤•à¤¾ व्यापक चिन्तन प्रस्तुत किया है उसके एक विशिष्ट अंग को डॉ. डबास ने आगे बढ़ाया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। डॉ. नरेन्द्र शुक्ल ने कहा: ‘यह विषय मेरे लिए नया था अतः इस पर बोलने के लिए मैंने अपनी संस्था के विशाल पुस्तकालय में इस तरह की किसी पुस्तक को खोजने की कोशिश की । मेरे लिए यह सुखद आश्चर्य था कि इस विषय पर न केवल हिंदी में बल्कि अंग्रेजी में भी कोई पुस्तक नहीं है। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मैं डॉ. डबास को बधाई देता हूँ।’ उन्होंने किसी नई पुस्तक और उसके पाठक के संबंधों की चर्चा करते हुए कहा:‘जब कोई पाठक किसी नई पुस्तक को पढ़ना षुरू करता है तो पाठक और पुस्तक में एक संघर्श होता है। इस संघर्ष में यदि पाठक जीत जाता है तो वह पुस्तक को एक तरफ पटक देता है और यदि पुस्तक जीत जाती है तो वह उसे पूरे ध्यान से पढ़ता है। जब मैंने इसके आरंभिक देा अध्याय पढे़, जो कि संस्कृत की सैनिक शब्दावली और सैन्य संगठन पर आधारित थे तो पुस्तक मुझसे हारने लगी लेकिन जब मैंने आगे के अध्यायों पर नजर डाली तो मैं हार गया और मैंने पुस्तक को पूरे ध्यान से पढ़ा और मै इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि भारतीय सैन्य शब्दावली पर यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है।’

श्री सुधीर सक्सेना ने पुस्तक के विभिन्न पक्षों को उजागर करते हुए कहा कि यह पुस्तक साहित्य भी है, भाशा-विज्ञान भी है और शब्दकोष भी है। वस्तुतः यह शब्द-योजना (Diction) से शब्दकोष (Dictionary) तक का सफर है। ऐसे खोज पूर्ण कार्य के लिए डॉ. डबास साधुवाद के पात्र है। हमें आशा करनी चाहिए कि भविष्य में भी उनकी लेखनी से ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य प्रकाश में आएंगे।

            डॉ. एस॰ एस॰ राणा ने पुस्तक के व्यंग्य विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ. डबास की शब्द योजना अद्भुत है। वे शब्द शिल्पी या शब्दों के स्वर्णकार है जो उन्हें बहुत बारीकी से गढ़कर अपने कथ्य में सौन्दर्य और प्रभाव पैदा करते हैं। वे ऐसे जटिल विषय में भी अपने पाठक को साथ लेकर चलते है और ऊबने नहीं देते।

 à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अन्त में श्री एस॰ पी॰ सिंह ने डॉ. डबास के हास्य-व्यंग्य की भी चर्चा की और कहा: ‘हास्य-व्यंग्य’ बहुत अनुभवी लेखक ही लिख सकता है। मैंने उनकी अनेक हास्य व्यंग्य रचनाएँ पढ़ी हैं जो सामाजिक विसंगतियों को बहुत प्रखरता से उजागर करती है’। उन्होंने डॉ. डबास को उनके सतत लेखन के लिए बधाई देते हुए कहा कि मुझे उम्मीद है कि हमें जल्दी ही उनकी आगामी रचना का लोकार्पण करने का अवसर प्राप्त होगा। अन्त में उन्होंने सभी उपस्थित महानुभावों के प्रति भी आभार प्रकट किया।

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