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Swasti Mahayagya

22 Oct 2018
India
आर्य समाज फिरोजपुर

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी आर्य समाज मंदिर, गुरुकुल विभाग फिरोजपुर शहर में तीन दिवसीय सवस्ति महायज्ञ का आयोजन दिनांक 19 अक्टूबर से 21 अक्टूबर 2018 तक बहुत ही सफलतापूर्वक संपन्न हुआ जिसमें यज्ञ ब्रह्मा आचार्य विष्णुमित्र जी वेदार्थी बिजनौर एवं भजनोपदेशक श्री पंडित राजेश प्रेमी जी जालंधर एवं पंडित आशी आर्य जी ने इस कार्यक्रम में भाग लिया |

21 अक्टूबर 2018 को मुख्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आर्य प्रतिनिधि सभ पंजाब के महामंत्री श्री प्रेम भरद्वाज जी विशेष रूप से फिरोजपुर पधारे और सवस्ति महायज्ञ में आहुतियां प्रदान की | इस अवसर पर सभा महामंत्री जी ने अपने सम्बोधन में कहा की महर्षि् याज्ञवल्क्य कहते हैं कि स्वाध्याय के द्वारा मनुष्य अर्थलाभ को प्राप्त करता है | स्वाध्यायशील व्यक्ति आर्थिक उन्नति भी प्राप्त करता है | सभी प्रकार के भौतिक साधनों से संपन्न होता है | स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति छल, कपट, स्वार्थ से धन को प्राप्त नहीं करता अपितु पुरुषार्थ करते हुए, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को धारण करते हुए धन को प्राप्त करता है | शतपथकार के अनुसार अर्थ लाभ का अभिप्राय केवल भौतिक धन तक सीमित नहीं है अपितु स्वाध्याय करने वालो का समर्थन इतना बढ़ जाता है कि वह शब्द की गहराई में जाकर उस अर्थ को निकाल लाता है जिसकी साधारण मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता है | निरुक्तकार महर्षि यास्क ने अर्थ किआ महत्व दर्शाते हुए कहा कि वह व्यक्ति भवन के भार को ढोने वाले खम्बे के सामान है ,जो वेद को पढ़कर उसके अर्थ को नही जानता है | इसके विपरीत जो अर्थज्ञ है, वह समस्त कल्याणों का उपभोग करता है | वह ज्ञान से सब प्रकार की मलिनता को धोकर सभी सुखों को प्राप्त करता है | इस प्रकार महर्षि याज्ञवल्क्य ने स्वाध्याय के लाभों में अर्थलाभ को महत्व दिया है और स्वाध्याय के द्वारा आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है |

स्वाध्याय के इसी परम धर्म को समझकर वर्तमान युग-प्रवर्त्तक महर्षि दयानन्द ने स्वाध्याय को परम धर्म कहा है | उन्होंने आर्य समाज के तीसरे नियम में इसकी स्पष्ट घोषणा की है कि- वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है | वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यो का परम धर्म है | वेद का पढ़ना स्वाध्याय और पढ़ाना तथा सुनाना प्रवचन कहलाता है जिसे महर्षि याज्ञवलक्य के परम श्रम, महर्षि मनु ने परम तप कहा है, उसे ही महर्षि दयानन्द ने परम धर्म कहा है | अतः स्वाध्याय परम-श्रम, परम-तप, व परम-धर्म तीनों ही है | महर्षि दयानन्द के परमधर्म चतुष्टय में से तीन का पढ़ना का स्वाध्याय में, पढ़ाना और सुनाना का प्रवचन ,में समावेश तो हो गया, परन्तु सुनना परमधर्म फिर भी छुट गया | इस अवसर पर आर्य समाज मंदिर गुरुकुल विभाग फिरोजपुर के पदाधिकारियों द्वारा श्री प्रेम भरद्वाज जी सभा महामंत्री जी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया |       

 

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