क तलनातमक अधययन

महाराषटर के पणे से सोशल मीडिया में शिवाजी को अपमानित करने की मंशा से उनका चितर डालना और उसकी परतिकरिया में क इंजीनियर की हतया इस समय की सबसे परचलित खबर हैं। दोषी कौन हैं और उनहें कया दंड मिलना चाहि यह तो नयायालय तय करेगा जिसमें हमारी पूरण आसथा हैं। परनत सतय यह हैं की जो लोग गलती कर रहे हैं वे शिवाजी की मसलिम नीति, उनकी नयायपरियता, उनकी निषपकषता, उनकी निरपराधी के परति संवेदना से परिचित नहीं हैं। सबसे अधिक विडंबना का कारण इतिहास जञान से शनय होना हैं। मसलिम समाज के कछ सदसय शिवाजी की इसलि विरोध करते हैं कयोंकि उनहें यह बताया गया हैं की शिवाजी ने औरंगज़ेब जिसे आलमगीर अरथात इसलाम का रखवाला भी कहा जाता था का विरोध किया था। शिवाजी ने औरंगज़ेब की मधय भारत से पकड़ ढीली कर दी जिसके कारण उनके कई किले और इलाकें उनके हाथ से निकल ग। यह सब घंटना ३०० वरष से भी पहले हई और इनके कारण लोग अभी भी संघरष कर रहे हैं। यह संघरष इसलामिक सामराजयवाद की उस मानसिकता का वह पहल हैं जिसके कारण भारत देश में पैदा होने वाला मसलमान जिसके पूरवज हिनदू थे जिनहे कभी बलात इसलाम में दीकषित किया गया था, आज भारतीय होने से अधिक इसलामिक सोच, इसलामिक पहनावे, इसलामिक खान-पान, अरब की भूमि से न केवल अधिक परभावित हैं अपित उसे आदरश भी मानता हैं। सतय इतिहास के गरभ में हैं की औरंगज़ेब कितना इसलाम की शिकषाओं के निकट था और शिवाजी का मसलमानों के परति वयवहार कैसा था। दोनों की तलना करने से उततर सपषट सिदध हो जायेगा। औरंगजेब दवारा हिनदू मंदिरों को तोड़ने के लि जारी किये ग फरमानों का कचचाचिटठा

 

१. १३ अकतूबर,१६६६- औरंगजेब ने मथरा के केशव राय मंदिर से नककाशीदार जालियों को जोकि उसके बड़े भाई दारा शिको दवारा भेंट की गयी थी को तोड़ने का हकम यह कहते ह दिया की किसी भी मसलमान के लि क मंदिर की तरफ देखने तक की मनाही हैं और दारा शिको ने जो किया वह क मसलमान के लि नाजायज हैं। 

 

२. ३,१२ सितमबर १६६७- औरंगजेब के आदेश पर दिलली के परसिदद कालकाजी मंदिर को तोड़ दिया गया। 

 

३. ९ अपरैल १६६९ को मिरजा राजा जय सिंह अमबेर की मौत के बाद औरंगजेब के हकम से उसके पूरे राजय में जितने भी हिनदू मंदिर थे उनको तोड़ने का हकम दे दिया गया और किसी भी परकार की हिनदू पूजा पर पाबनदी लगा दी गयी जिसके बाद केशव देव राय के मंदिर को तोड़ दिया गया और उसके सथान पर मसजिद बना दी गयी। मंदिर की मूरतियों को तोड़ कर आगरा लेकर जाया गया और उनहें मसजिद की सीढियों में दफ़न करदिया गया और मथरा का नाम बदल कर इसलामाबाद कर दिया गया। इसके बाद औरंगजेब ने गजरात में सोमनाथ मंदिर का भी विधवंश कर दिया। 

 

४. ५ दिसमबर १६७१ औरंगजेब के शरीया को लाग करने के फरमान से गोवरधन सथित शरी नाथ जी की मूरति को पंडित लोग मेवाड़ राजसथान के सिहाद गाव ले ग जहा के राणा जी ने उनहें आशवासन दिया की औरंगजेब की इस मूरति तक पहचने से पहले क लाख वीर राजपूत योदधाओं को मरना पड़ेगा। 

 

५. २५ मई १६७९ को जोधपर से लूटकर लाई गयी मूरतियों के बारे में औरंगजेब ने हकम दिया की सोने-चादी-हीरे से सजजित मूरतियों को जिलालखाना में ससजजित कर दिया जाये और बाकि मूरतियों को जमा मसजिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये। 

 

६ . २३ दिसमबर १६७९ औरंगजेब के हकम से उदयपर के महाराणा ील के किनारे बनाये ग मंदिरों को तोड़ा गया। महाराणा के महल के सामने बने जगननाथ के मंदिर को मटठी भर वीर राजपूत सिपाहियों ने अपनी बहादरी से बचा लिया। 

 

७ . २२ फरवरी १६८० को औरंगजेब ने चिततोड़ पर आकरमण कर महाराणा कमभा दवाराबना ग ६३ मंदिरों को तोड़ डाला। 

 

८. १ जून १६८१ औरंगजेब ने परसिदद पूरी का जगननाथ मंदिर को तोड़ने का हकम दिया। 

 

९. १३ अकटूबर १६८१ को बरहानपर में सथित मंदिर को मसजिद बनाने का हकमऔरंगजेब दवारा दिया गया।  १०. १३ सितमबर १६८२ को मथरा के ननद माधव मंदिर को तोड़ने का हकम औरंगजेब दवारा दिया गया।

 

इस परकार अनेक फरमान औरंगजेब दवारा हिनदू मंदिरों को तोड़ने के लि जारी किये ग। हिनदओं पर औरंगजेब दवारा अतयाचार करना २ अपरैल १६७९ को औरंगजेब दवारा हिनदओं पर जजिया कर लगाया गया जिसका हिनदओं ने दिलली में बड़े पैमाने पर शांतिपूरवक विरोध किया परनत उसे बेरहमी से कचल दिया गया। इसके साथ-साथ मसलमानों को करों में छूट दे दी गयी जिससे हिनदू अपनी निरधनता और कर न चूका पाने की दशा में इसलाम गरहण कर ले। १६ अपरैल १६६७ को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और तयौहार बनाने से मना कर दिया गया। इसके बाद सभी सरकारी नौकरियों से हिनदू करमचारियों को निकाल कर उनके सथान पर मसलिम करमचारियों की भरती का फरमान भी जारी कर दिया गया। हिनदओं को शीतला माता, पीर परभ आदि के मेलों में इकठठा न होने का हकम दिया गया। हिनदओं को पालकी, हाथी, घोड़े की सवारी की मनाई कर दी गयी। कोई हिनदू अगर इसलाम गरहण करता तो उसे कानूनगो बनाया जाता और हिनदू परष को इसलाम गरहण करनेपर ४ रपये और हिनदू सतरी को २ रपये मसलमान बनने के लि दि जाते थे। से न जाने कितने अतयाचार औरंगजेब ने हिनदू जनता पर किये और आज उसी दवारा जबरन मसलिम बनाये ग लोगों के वंशज उसका गण गान करते नहीं थकते हैं।

 

वीर शिवाजी दवारा औरंगज़ेब को पतर लिखकर उसके अतयाचारों के परति आगाह करना वीर शिवाजी ने हिनदओं की सी दशा को देखकर वयथित मन से औरंगजेब को उसके अतयाचारों से अवगत करने के लि क पतर लिखा था। इस पतर को सर जदनाथ सरकार अपने शबदों में तारकिक, शांत परबोधन वं राजनितिक सू ब से बना गया बताया हैं। वीर शिवाजी लिखते हैं की सभी जगत के पराणी ईशवर की संतान हैं। कोई भी राजय तब उननति करता हैं जब उसके सभी सदसय सख शांति वं सरकषा की भावना से वहा पर निवास करते हैं। इसलाम अथवा हिनदू क ही सिकके के दो पहल हैं। कोई मसजिद में पूजा करता हैं, कोई मंदिर में पूजा करता हैं पर सभी उस क ईशवर की पूजा करते हैं। यहा तक की करान में भी उसी क खदा या ईशवर के विषय में कहा गया हैं जो केवल मसलमानों का खदा नहीं हैं बलकि सभी का खदा हैं। मग़ल राजय में जजिया क नाजायज़, अविवेकपूरण, अनपयकत अतयाचार हैं जो तभी उचित होता जब राजय की परजा सरकषित वं सखी होती पर सतय यह हैं की हिनदओं पर जबरदसती जजिया के नाम पर भारी कर लगाकर उनहें गरीब से गरीब बनाया जा रहा हैं।

 

धरती के सबसे अमीर समराट के लि गरीब भिखारियों, साधओं ,बराहमणों, अकाल पीड़ितो पर कर लगाना अशोभनीय हैं। मचछर और मकखियों को मारना कोई बहादरी का काम नहीं हैं। अगर औरंगजेब में कोई वीरता हैं तो उदयपर के राणा और इस पतर के लेखक से जजिया वसूल कर दिखा।  अपने अहंकार और धरमानधता में चूर औरंगजेब ने शिवाजी के पतर का कोई उततर न दिया पर शिवाजी ने क सी जन चेतना और अगनि परजलवित कर दी थी जिसको बाना आसान नहीं था। वीर शिवाजी हिनदू धरम के लि उतने ही समरपित थे जितना औरंगजेब इसलाम के लि समरपित था परनत दोनों में क भारी भेद था। शिवाजी अपने राजय में किसी भी धरम अथवा मत को मानने वालों पर किसी भी का अतयाचार करते थे वं उनहें अपने धरम को मानने में किसी भी परकार की कोई मनाही नहीं थी। इसलाम के विषय में शिवाजी की निति १. अफजल खान को मरने के बाद उसके पूना, इनदापर, सपा, बारामती आदि इलाकों पर शिवाजी का राज सथापित हो गया। क ओर तो अफजल खान ने धरमानधता में तलजापर और पंडरपर के मंदिरों का संहार किया था दूसरी और शिवाजी ने अपने अधिकारीयों को सभी मंदिर के साथ साथ मसजिदों को भी पहले की ही तरह दान देने की आजञा जारी की थी। २. बहत कम लोगों को यह जञात हैं की औरंगजेब ने सवयं शिवाजी को चार बार अपने पतरों में इसलाम का संरकषक बताया था। ये पतर १४ जलाई १६५९, २६ अगसत वं २८ अगसत १६६६ वं ५ मारच १६६८ को लिखे ग थे। (सनदरभ Raj Vlll, 14,15,16 Documents ) ३. डॉ फरायर ने कलयाण जाकर शिवाजी की धरम निरपेकष नीति की अपने लेखों में परशंसा की हैं। Fryer, Vol I, p. 41n ४. गरांट डफ़ लिखते हैं की शिवाजी ने अपने जीवन में कभी भी मसलिम सलतान दवारा दरगाहों ,मसजिदों पीर मज़ारों आदि को दि जाने वाले दान को नहीं लूटा। सनदरभ History of the Mahrattas, p 104 ५. डॉ दिललों लिखते हैं की वीर शिवाजी को उस काल के सभी राज नीतिजञों में सबसे उदार समा जाता था।

 

सनदरभ Eng.Records II,348 ६. शिवाजी के सबसे बड़े आलोचकों में से क खाफी खा जिसने शिवाजी की मृतय पर यह लिखा था की अचछा हआ क काफ़िर का भार धरती से कम हआ भी शिवाजी की तारीफ़ करते ह अपनी पसतक के दसरे भाग के पृषठ 110 पर लिखता हैं की शिवाजी का आम नियम था की कोई मनषय मसजिद को हानि न पहचायेगा, लड़की को न छेड़े , मसलमानों के धरम की हसी न करे तथा उसको जब कभी कही करान हाथ आता तो वह उसको किसी न किसी मसलमान को दे देता था। औरतों का अतयंत आदर करता था और उनको उनके रिशतेदारों के पास पहचा देता था। अगर कोई लड़की हाथ आती तो उसके बाप के पास पहचा देता। लूट खसोट में गरीबों और काशतकारों की रकषा करता था। बराहमणों और गौ के लि तो वह क देवता था। यदयपि बहत से मनषय उसको लालची बताते हैं परनत उसके जीवन के कामों को देखने से विदित हो जाता हैं की वह जलम और अनयाय से धन इकठठा करना अतयंत नीच समता था। सनदरभ लाला लाजपत राय कृत छतरपती शिवाजी पृषठ 132 ,संसकरण चतरथ, संवत 1983 ७. शिवाजी जंजिरा पर विजय परापत करने के लि केलशी के मसलिम बाबा याकूत से आशीरवाद तक मांगने ग थे। सनदरभ – Vakaskar,91 Q , bakshi p.130 ८. शिवाजी ने अपनी सेना में अनेक मसलिमों को रोजगार दिया था। १६५० के पशचात बीजापर, गोलकोंडा, मग़लों की रियासत से भागे अनेक मसलिम , पठान व फारसी सैनिकों को विभिनन ओहदों पर शिवाजी दवारा रखा गया था जिनकी धरम समबनधी आसथायों में किसी भी परकार का हसतकषेप नहीं किया जाता था और कई तो अपनी मृतय तक शिवाजी की सेना में ही कारयरत रहे। कभी शिवाजी के विरोधी रहे सिददी संबल ने शिवाजी की अधीनता सवीकार कर की थी और उसके पतर सिददी मिसरी ने शिवाजी के पतर शमभा जी की सेना में काम किया था।

 

शिवाजी की दो टकड़ियों के सरदारों का नाम इबराहीम खान और दौलत खान था जो मग़लों के साथ शिवाजी के यदध में भाग लेते थे। क़ाज़ी हैदर के नाम से शिवाजी के पास क मसलिम था जो की ऊचे ओहदे पर था। फोंडा के किले पर अधिकार करने के बाद शिवाजी ने उसकी रकषा की जिममेदारी क मसलिम फौजदार को दी थी। बखरस के अनसार जब आगरा में शिवाजी को कैद कर लिया गया था तब उनकी सेवा में क मसलिम लड़का भी था जिसे शिवाजी के बच निकलने का पूरा वृतांत मालूम था। शिवाजी के बच निकलने के पशचात उसे अतयंत मार मारने के बाद भी सवामी भकति का परिचय देते ह अपना मह कभी नहीं खोला था। शिवाजी के सेना में कारयरत हर मसलिम सिपाही चाहे किसी भी पद पर हो , शिवाजी की नयाय परिय वं सेकयलर नीति के कारण उनके जीवन भर सहयोगी बने रहे। सनदरभ Shivaji the great -Dr Bal Kishan vol 1 page 177 शिवाजी सरवदा इसलामिक विदवानों और पीरों की इजज़त करते थे। उनहें धन,उपहार आदि देकर सममानित करते थे। उनके राजय में हिनदू-मसलिम के मधय किसी भी परकार का कोई भेद नहीं था। जहा हिनदओं को मंदिरों में पूजा करने में कोई रोक टोक नहीं थी वही मसलमानों को मसजिद में नमाज़ अदा करने से कोई भी नहीं रोकता था। किसी दरगाह, मसजिद आदि को अगर मरममत की आवशयकता होती तो उसके लि राज कोष से धन आदि का सहयोग भी शिवाजी दवारा दिया जाता था।

 

इसीलि शिवाजी के काल में न केवल हिनदू अपित अनेक मसलिम राजयों से मसलिम भी शिवाजी के राजय में आकर बसे थे। शिवाजी की मसलिम नीति और नयापरियता की जीती जागती मिसाल हैं। पाठक मसलिम परसत औरंगज़ेब की धरमांध नीति वं नयायपरिय शिवाजी की धरम नीति में भेद को भली परकार से सम सकते हैं। फिर भी मसलिम समाज के कछ सदसय औरंगज़ेब के पैरोकार बने फिरते हैं और शिवाजी की आलोचना करते घूमते हैं। सतय के दरशन होने पर सतय को सवीकार करने वाला जीवन में परगति करता हैं। 

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