‘देशानà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के लिठअसतà¥à¤¯ का खणà¥à¤¡à¤¨ और सतà¥à¤¯ का मणà¥à¤¡à¤¨ आवशà¥à¤¯à¤• है’
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Manmohan Kumar AryaDate
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07-Mar-2019Download PDF
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ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में खणà¥à¤¡à¤¨-मणà¥à¤¡à¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ महतà¥à¤µ पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ डाला है। हम यहां उनके ही विचारों को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहे हैं। वह कहते हैं कि संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ लोग à¤à¤¸à¤¾ समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि हम को खणà¥à¤¡à¤¨-मणà¥à¤¡à¤¨ से कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨? हम तो महातà¥à¤®à¤¾ हैं। à¤à¤¸à¥‡ लोग à¤à¥€ संसार में à¤à¤¾à¤°à¤°à¥‚प हैं। जब à¤à¤¸à¥‡ हैं तà¤à¥€ वेदमारà¥à¤—-विरोधी वाममारà¥à¤— आदि समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¥€, ईसाई, मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨, जैनी आदि बॠगये, अब बà¥à¤¤à¥‡ जाते हैं और इन (वेदों को मानने वाले आरà¥à¤¯ वा हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं) का नाश होता जाता है तो à¤à¥€ इन की आंख नहीं खà¥à¤²à¤¤à¥€à¥¤ खà¥à¤²à¥‡ कहां से? जो कà¥à¤› उन के मन में परोपकार बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ और करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤® करने में उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ होवे। किनà¥à¤¤à¥ वे लोग अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा खाने पीने के सामने अनà¥à¤¯ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में अधिक कà¥à¤› à¤à¥€ नही समà¤à¤¤à¥‡ और संसार की निनà¥à¤¦à¤¾ करने में बहà¥à¤¤ डरते हैं। पà¥à¤¨à¤ƒ (लोकैषणा) लोक में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा, (वितà¥à¤¤à¥ˆà¤·à¤£à¤¾) धन बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ में ततà¥à¤ªà¤° होकर विषयà¤à¥‹à¤—, (पà¥à¤¤à¥à¤°à¥ˆà¤·à¤£à¤¾) पà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤¤à¥ शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर मोहित होना, इन तीन à¤à¤·à¤£à¤¾à¤“ं का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना उचित है।
जब à¤à¤·à¤£à¤¾ ही नहीं छूटी पà¥à¤¨à¤ƒ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कर हितकर व लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ हो सकता है? अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ वेदमारà¥à¤—ोपेदेश से जगतॠके कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करने में अहरà¥à¤¨à¤¿à¤¶ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤ रहना संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹ का मà¥à¤–à¥à¤¯ काम है। जब अपने-अपने अधिकार के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को नहीं करते पà¥à¤¨à¤ƒ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ कहलवाना वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ है। जैसे गृहसà¥à¤¥à¥€ लोग वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° और सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ में परिशà¥à¤°à¤® करते हैं, उनसे अधिक संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ परोपकार करने में परिशà¥à¤°à¤® करें व इसमें ततà¥à¤ªà¤° रहें तà¤à¥€ सब आशà¥à¤°à¤® उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ पर रहें।
ऋषि आगे कहते हैं कि देखो! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ सामने पाखणà¥à¤¡ मत बà¥à¤¤à¥‡ जाते हैं, (ऋषियों की सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ आरà¥à¤¯ व हिनà¥à¤¦à¥‚) ईसाई, मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ तक होते जाते हैं। तनिक à¤à¥€ तà¥à¤® से अपने घर की रकà¥à¤·à¤¾ और दूसरों का मिलाना नहीं बन सकता। बने तो तब जब तà¥à¤® करना चाहो। जब लों वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤¤à¥ में संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿à¤¶à¥€à¤² नहीं होते तब लों आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ और अनà¥à¤¯ देशसà¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की वृदà¥à¤§à¤¿ नहीं होती। जब वृदà¥à¤§à¤¿ के कारण वेदादि सतà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पठनपाठन, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ आदि आशà¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के यथावतॠअनà¥à¤·à¥à¤ ान सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ होते हैं तà¤à¥€ देशोनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ होती है।
चेत रखो (सावधान रहो)! बहà¥à¤¤ सी पाखणà¥à¤¡ की बातें तà¥à¤® को सचमà¥à¤š दीख पड़ती हैं। जैसे कोई साधॠपà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¿ देने की सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बतलाता है तब उस के पास बहà¥à¤¤ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ जाती हैं और हाथ जोड़कर पà¥à¤¤à¥à¤° मांगती हैं। और बाबा जी सब को पà¥à¤¤à¥à¤° होने का आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ देता है। उन में से जिस-जिस के पà¥à¤¤à¥à¤° होता है वह-वह समà¤à¤¤à¥€ हैं कि बाबा जी के वचन से à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤†à¥¤ जब उन से कोई पूछे कि सूअरी, कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥€, गधी और कà¥à¤•à¥à¤•à¥à¤Ÿà¥€ आदि के कचà¥à¤šà¥‡ बचà¥à¤šà¥‡ किस बाबा जी के वचन से होते हैं? तब कà¥à¤› à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤° न दे सकेंगी। जो कोई कहे कि मैं किसी के लड़के को जीता रख सकता हूं तो वह आप ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मर जाता है? इसका उतà¥à¤¤à¤° वह नहीं दे सकते।
पाखणà¥à¤¡ और पाखणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से बचने के लिठमनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदादि विदà¥à¤¯à¤¾ का पà¥à¤¨à¤¾ व सतà¥à¤¸à¤‚ग करना होता है जिस से कोई उसे ठगाई में न फंसा सके तथा वह औरों को à¤à¥€ बचा सके। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का नेतà¥à¤° विदà¥à¤¯à¤¾ ही है। बिना विदà¥à¤¯à¤¾ व शिकà¥à¤·à¤¾ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं होता। जो बालà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से उतà¥à¤¤à¤® शिकà¥à¤·à¤¾ पाते हैं वे ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ और विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ होते हैं। जिन को कà¥à¤¸à¤‚ग है वे दà¥à¤·à¥à¤Ÿ पापी महामूरà¥à¤– हो कर बड़े दà¥à¤ƒà¤– पाते हैं। इसलिये जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को विशेष कहा है कि जो जानता है वही मानता है।
न वेतà¥à¤¤à¤¿ यो यसà¥à¤¯ गà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤•à¤°à¥à¤·à¤‚ स तसà¥à¤¯ निनà¥à¤¦à¤¾à¤‚ सततं करोति।
यथा किराती करिकà¥à¤®à¥à¤à¤œà¤¾à¤¤à¤¾ मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤ƒ परितà¥à¤¯à¤œà¥à¤¯ बिà¤à¤°à¥à¤¤à¤¿ गà¥à¤‚जाः।।
यह किसी कवि का शà¥à¤²à¥‹à¤• है। जो जिस का गà¥à¤£ नहीं जानता वह उस की निनà¥à¤¦à¤¾ करता है। जैसे जंगली à¤à¥€à¤² गजमà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤“ं को छोड़ गà¥à¤‚जा का हार पहिन लेता है वैसे ही जो पà¥à¤°à¥à¤· होता है वही धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम, मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होकर इस जनà¥à¤® और परजनà¥à¤® में सदा आनà¥à¤¨à¤¦ में रहता है।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने अपनी इन पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के ठगों से बचने, अविदà¥à¤¯à¤¾ को छोड़ने और देश की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ में ततà¥à¤ªà¤° होने के साथ वैदिक धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ की है। उनके यह शबà¥à¤¦ बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं ‘जब तक वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿à¤¶à¥€à¤² नहीं होते तब तक आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ और अनà¥à¤¯ देशसà¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ व वृदà¥à¤§à¤¿ नहीं होती। जब धरà¥à¤® और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ व वृदà¥à¤§à¤¿ का आधार वेदादि सतà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पठनपाठन, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ आदि चार आशà¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के यथावतॠअनà¥à¤·à¥à¤ ान à¤à¤µà¤‚ सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ आदि होते हैं तà¤à¥€ देशोनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ होती है। अतः आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं को वेदादि शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ वा सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ के पालन सहित सतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ में विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना चाहिये। आजकल यह तीनों ही बातें हमसे छूटी हà¥à¤ˆ हैं। इनका पालन करने से देश व समाज को अवशà¥à¤¯ लाठहोगा।
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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