‘वेदों का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° ऋषि दयाननà¥à¤¦ की विशà¥à¤µ को अनोखी महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ देन’
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Manmohan Kumar AryaDate
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22-Apr-2019Download PDF
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ऋषि दयाननà¥à¤¦ के नाम से विशà¥à¤µ का समसà¥à¤¤ धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ सामाजिक जगत परिचित है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ जो महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद विलà¥à¤ªà¥à¤¤ हो गया था, उसका पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤° किया है। पांच हजार वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ हà¥à¤ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद के इतिहास पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ डालें तो विदित होता है कि ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने वेदों के रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का जो अनावरण किया है, वह महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद और उनसे पूरà¥à¤µ अनà¥à¤¯ किसी महापà¥à¤°à¥à¤·, आचारà¥à¤¯ वा विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ ने नहीं किया। वसà¥à¤¤à¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ यह है कि वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ को ईशà¥à¤µà¤° के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ à¤à¤µà¤‚ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ सहित इसके पालनकरà¥à¤¤à¤¾ व पà¥à¤°à¤²à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾, जीवातà¥à¤®à¤¾ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¤µà¤‚ इसके जनà¥à¤®, मरण, बनà¥à¤§à¤¨ व मोकà¥à¤·, पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤®, अनà¥à¤¯ योनियों में विचरण आदि अनेक बातों का सतà¥à¤¯ सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ न होने से वेद विलà¥à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ थे।
वेदों के विलà¥à¤ªà¥à¤¤ होने का दà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¿à¤£à¤¾à¤® यह हà¥à¤† कि संसार में अवैदिक व अविदà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ मतों का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ हà¥à¤† जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के सà¥à¤–ों का हà¥à¤°à¤¾à¤¸ तथा दà¥à¤ƒà¤–ों की वृदà¥à¤§à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤ परमातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤• है और सà¤à¥€ जीव अनादि व अननà¥à¤¤ होने के साथ ईशà¥à¤µà¤° की सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ हैं, यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ व उनकी आंखों से ओà¤à¤² हो गया। वसà¥à¤§à¥ˆà¤µ कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬à¤•à¤®à¥ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ व विचार à¤à¥€ वेदों व ऋषियों की देन है। मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² में देश व विदेश में अनेक आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने अपनी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को ईशà¥à¤µà¤° की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ व सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ बताकर उनका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° व पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ किया।
संसार में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ किसी मत में सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का निरà¥à¤£à¤¯ व विचार करने का विधान व वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं है। आज से सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ जो मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ की गईं, उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को यथावतॠमाना जाता है जबकि संसार में सà¤à¥€ विषयों व कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अà¤à¥‚तपूरà¥à¤µ वृदà¥à¤§à¤¿ व उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने धरà¥à¤® व मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में जà¥à¤žà¤¾à¤¨, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, तरà¥à¤•, विचार, चिनà¥à¤¤à¤¨ व सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ के निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ का सूतà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी व दूसरे मतों की सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं की सतà¥à¤¯ को निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करने के मापदणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ के आधार पर विवेचना व समीकà¥à¤·à¤¾ की थी। इससे यह लाठहà¥à¤† कि शà¥à¤¦à¥à¤§ सतà¥à¤¯ व इसके अनà¥à¤•à¥‚ल मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का जगत में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° हà¥à¤†à¥¤
उनके समय में पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ मतों में ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प के विषय में आचारà¥à¤¯à¤®à¤£ à¤à¤• मत नहीं थे। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने वेद और वेदानà¥à¤•à¥‚ल गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के आधार पर ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ का तरà¥à¤• à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤‚गत जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ हमें पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया। आज तक संसार के किसी मत का आचारà¥à¤¯ वेदों के आधार पर निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ ईशà¥à¤µà¤°, जीव व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ विषयक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं में किसी तà¥à¤°à¥à¤Ÿà¤¿ व नà¥à¤¯à¥‚नता को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ नहीं कर पाया है। इस आधार पर यह à¤à¥€ सिदà¥à¤§ हà¥à¤† कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सतà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ इसके विपरीत वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¥ƒà¤¤ व पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥‚ल मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सतà¥à¤¯ नहीं है।
वेद विषयक ऋषि दयाननà¥à¤¦ के योगदान पर जब विचार करते हैं तो अनेक तथà¥à¤¯ हमारे समà¥à¤®à¥à¤– उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होते हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ के समय काशी विदà¥à¤¯à¤¾ की नगरी थी। देश के सनातन धरà¥à¤® के शीरà¥à¤· विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ काशी में बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में रहते थे। उनकी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ थी कि वेदों को à¤à¤¸à¥à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤° पाताल लोक में ले गया है। वेद à¤à¤¾à¤°à¤¤ में उपलबà¥à¤§ नहीं हैं।
इन पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ को यह à¤à¥€ पता नहीं था कि अमेरिका को पाताल कहते हैं और वहां मनà¥à¤·à¥à¤¯ आ व जा सकते हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सनॠ1863 में मथà¥à¤°à¤¾ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ से अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ पूरा कर वेदों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया था। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चार वेद किस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ व सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ थे इसका उलà¥à¤²à¥‡à¤– उनके जीवन साहितà¥à¤¯ में नहीं मिलता परनà¥à¤¤à¥ इसके बाद हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में जो कà¥à¤®à¥à¤ का मेला हà¥à¤†, उसमें उनके पास चारों वेद उपलबà¥à¤§ थे जिनका उलà¥à¤²à¥‡à¤– पं0 लेखराम लिखित ऋषि दयाननà¥à¤¦ के अनà¥à¤¸à¤‚धानपूरà¥à¤£ वृहद जीवन चरित में मिलता है। इन चारों वेदों की हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में ऋषि दयाननà¥à¤¦ के पास उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ और उसका देहरादून के दादूपनà¥à¤¥à¥€ मत के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ आचारà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ महाननà¥à¤¦ जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨ करना और उस पर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी से वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª करने का उलà¥à¤²à¥‡à¤– जीवन चरित में उपलबà¥à¤§ होता है।
अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ को यह चार वेद राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के à¤à¤°à¤¤à¤ªà¥à¤° वा करौली सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में से कहीं से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ होंगे। इसका आधार यह है कि महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ मथà¥à¤°à¤¾ में अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने के बाद और हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के कà¥à¤®à¥à¤ में पहà¥à¤‚चने से पूरà¥à¤µ इन दो पà¥à¤°à¤®à¥à¤– सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ अवधि तक रहे थे। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ इस बीच वह गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° और जयपà¥à¤° à¤à¥€ गये थे परनà¥à¤¤à¥ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° तथा जयपà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर उनका पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ अतà¥à¤¯à¤²à¥à¤ªà¤•à¤¾à¤² का था।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने जो कहा उसे पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ व तरà¥à¤• आदि के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ à¤à¥€ किया है। अनेक पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि वेदों का आविरà¥à¤à¤¾à¤µ सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€, सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ à¤à¤µà¤‚ सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ से हà¥à¤† है। ईशà¥à¤µà¤° चेतनसà¥à¤µà¤°à¥‚प, अनादि, नितà¥à¤¯, अविनाशी, अमर व अननà¥à¤¤ होने से जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प व सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž सतà¥à¤¤à¤¾ है। जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हम चेतन जीवातà¥à¤®à¤¾ हैं और हमें सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• व नैमितà¥à¤¤à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है, इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से ईशà¥à¤µà¤° का समसà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• है। ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नितà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कहा जाता है। वह नà¥à¤¯à¥‚न व अधिक नहीं होता। सदा सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ à¤à¤• समान रहता है। ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ उसे अनादिकाल से है और हमेशा रहेगा।
उसी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° वह ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, सामवेद à¤à¤µà¤‚ अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में वेदसंवतà¥à¤¸à¤° के पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ के समय चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ व अंगिरा को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। शतपथ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ वा सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ऋषियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचित गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है जिसमें इस तथà¥à¤¯ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– मिलता है। वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥à¤°à¤® के सरà¥à¤µà¤¥à¤¾à¤¨à¥à¤•à¥‚ल है। इसकी सà¤à¥€ बातें तरà¥à¤• संगत à¤à¤µà¤‚ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ में साधक हैं। इसमें किसी धरà¥à¤® वा मत विशेष अथवा समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ आदि का उलà¥à¤²à¥‡à¤– नहीं है अपितॠवेदों के आधार पर धरà¥à¤® का अरà¥à¤¥ उन गà¥à¤£à¥‹à¤‚ व सदाचारों से है जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को धारण करने चाहिये।
वेदों में मनà¥à¤·à¥à¤¯ को मनà¥à¤·à¥à¤¯ बनने को कहा गया है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ और पशॠमें à¤à¤• अनà¥à¤¤à¤° यही है कि पशॠजà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आचरण नहीं कर सकते जबकि मनà¥à¤·à¥à¤¯ के पास बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होने के कारण वह आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ हो सकते हैं और वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनà¥à¤°à¥‚प आचरण कर सकते हैं। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक देश में ऋषियों की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ रही है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ उसी परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ के अनà¥à¤¤à¤¿à¤® ऋषि कहे जा सकते हैं। इन सब ऋषियों का जीवन सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ वेदानà¥à¤•à¥‚ल था। à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ व वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के जीवन को ही धारà¥à¤®à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ व धारà¥à¤®à¤¿à¤• जीवन कहा जाता है। मांसाहारी व हिंसा का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ कदापि धारà¥à¤®à¤¿à¤• नहीं हो सकता।
यह शिकà¥à¤·à¤¾ वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने से मिलती है। वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चार ऋषियों की आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होने के बाद वह इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को देते हैं। इसके बाद बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी से लोगों को वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨-अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ कराने की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का सूतà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ होता है। आरमà¥à¤ में वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बोल व सà¥à¤¨à¤•à¤° होता था। इस कारण वेदों का नाम शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ पड़ा है। वेदों में जà¥à¤žà¤¾à¤¨, करà¥à¤® व उपासना यह तीन विदà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ मà¥à¤–à¥à¤¯ होने से वेदों को तà¥à¤°à¤¿à¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤“ं के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ à¤à¥€ कहा जाता है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ करà¥à¤® पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨, सामवेद उपासना पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ तथा अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ में विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने वेदों के यथारà¥à¤¥ आशय को बताने के लिये चारों वेदों के संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ व हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ का आरमà¥à¤ à¤à¥€ किया था। कारà¥à¤¯ बहà¥à¤¤ बड़ा था और यदि उनका जीवन काल सात आठवरà¥à¤· और होता तो वेदों का समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ पूरà¥à¤£ होकर उपलबà¥à¤§ हो सकता था। 30 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर सनॠ1883 को ऋषि दयाननà¥à¤¦ का उनके विरोधी षडà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने विष देकर वध कर डाला। ऋषि दयाननà¥à¤¦ इस समय तक यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ व हिनà¥à¤¦à¥€ में कर चà¥à¤•à¥‡ थे। ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ का à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ चल रहा था। 10 मणà¥à¤¡à¤²à¥‹à¤‚ वाले ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ के सातवें मणà¥à¤¡à¤² का à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ की ओर था।
मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से ऋषि दयाननà¥à¤¦ लगà¤à¤— आधे à¤à¤¾à¤— का à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ कर चà¥à¤•à¥‡ थे। मृतà¥à¤¯à¥ के कारण कारà¥à¤¯ रूक गया। इसके बाद ऋषि दयाननà¥à¤¦ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने उनके अवशिषà¥à¤Ÿ कारà¥à¤¯ को पूरा किया। अनेक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने वेदों के à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ किये। अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में à¤à¥€ वेदों का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ व टीका उपलबà¥à¤§ है। अनà¥à¤¯ कà¥à¤› à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में à¤à¥€ ऋषि के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ का कारà¥à¤¯ किया है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ के ही अनेक अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने वेदों पर अनेक महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ लिखे हैं। अधिकांश हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में होने के कारण साधारण हिनà¥à¤¦à¥€ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ रखने वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ वेदों के रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से पूरà¥à¤£ परिचित व विजà¥à¤ž हो सकता है।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने अपने गहन व गमà¥à¤à¥€à¤° वैदà¥à¤·à¥à¤¯ से वेदों को सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• घोषित किया है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने संसार के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदों का पà¥à¤¨à¤¾ पà¥à¤¾à¤¨à¤¾ और सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ परम धरà¥à¤® बताया है। वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने से ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ तथा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। जीवातà¥à¤®à¤¾ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प पर à¤à¥€ विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पड़ता है और उसके गà¥à¤£, करà¥à¤®, सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ सहित उसका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯, लकà¥à¤·à¥à¤¯, उपासना की विधि, उपासना से लाà¤, पापों वा बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से नीच योनियों में गमन, पापों से दà¥à¤ƒà¤–ों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ और सदà¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹ से सà¥à¤– व उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿, ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾, योग-समाधि, यजà¥à¤ž, माता-पिता व वृदà¥à¤§à¥‹à¤‚ की सेवा से बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ का टूटना व मोकà¥à¤· आदि की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। वेदों सहित ऋषियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचित दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤µà¤‚ उपनिषद साहितà¥à¤¯ à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये अति उपयोगी à¤à¤µà¤‚ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है।
वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर लेने पर मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से कà¥à¤› अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ नहीं रह जाता। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का चरम लकà¥à¤·à¥à¤¯ मोकà¥à¤· वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व वेदानà¥à¤¸à¤¾à¤° आचरण से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता है। हम सà¤à¥€ पाठकों को वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का परामरà¥à¤¶ देंगे जिससे उनका यह जनà¥à¤® व परजनà¥à¤® सà¥à¤§à¤°à¥‡à¤—ा। यह à¤à¥€ निवेदन कर दें कि वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ की तरह सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ व ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका आ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठअति उपयोगी है। इसी के साथ लेख को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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