shree krishna janmotsav 2019

अक्सर भागवत कथा करने वाले पौराणिक लोग जिसे धर्म प्रचार कहते हैं, जब ये लोग श्रीकृष्ण जी महाराज के बारे में मनगढ़ंत बात कहते हैं तो सुनने वाले सोचते हैं — धर्म बरस रहा है। दूसरा इन कथाओं को सुनकर, आम व्यक्ति यह भी सोच बैठता है कि मैं धार्मिक हो रहा हूँ। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी पूरी की पूरी शिक्षा व्यवस्था में वैदिक धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है। इस कारण आज लोग अपने महापुरुषों के जीवन चरित्र के विषय में जानकारी के लिए टीवी सीरियल या तथाकथित बाबाओं के भरोसे हैं और ये दोनों धन कमाने के लिए अपने महापुरुषों के जीवन चरित्र से खिलवाड़ कर समाज के बड़े हिस्से को दिग्भ्रमित कर रहे हैं।

आप कुछ पल को कान्हा, बाल गोपाल की लीला छोड़ दीजिए। इनकी लीला समझिए, भजन गाते हैं — "मणिहार का वेश बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया", मतलब इनके अनुसार योगिराज श्रीकृष्ण जी महाराज चूड़ियां बेच रहे हैं। इसके अलावा ये लोग श्रीकृष्ण को लीलाधर, रसिक, गोपी प्रेमी, कपड़े चोर, माखन चोर और न जाने किताओं में क्या-क्या लोगों को बता रहे होते हैं कि उनके 16 हज़ार गोपियाँ थीं, वे सरोवर पर छिपकर कपड़े चुराने जाया करते थे।

इसलिए जो लोग आज योगिराज श्रीकृष्ण को जानना चाहते हैं, तो पुराणों का चश्मा पहनकर श्रीकृष्ण को नहीं समझा जा सकता। क्योंकि वहाँ सिवाय रासलीला, माखन चोरी के आरोपों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। इस्कॉन के मंदिरों में नाचने से कृष्ण को नहीं समझा जा सकता। कृष्ण को समझने के लिए न मीरा के भजनों की जरूरत है, न राधा-कृष्ण की चौंकाइयों की, न सूरदास के दोहों की जरूरत है और न ही भागवत कथा कहने वाले बाबाओं की।
कृष्ण को समझने के लिए बस स्वयं को समझना होता है, उसके लिए अर्जुन बनना पड़ता है।

कृष्ण का यह तर्क है कि जब तक इंसान के अंदर स्वयं के अनिष्ट की आशंका है, तब तक वह ईश्वर पर अविश्वास पैदा करता रहता है। क्योंकि हानि, लाभ, सुख, दुःख जीवन की लीला है, एक नाटक है जिससे हर किसी को गुज़रना होता है। इस नाटक में बिना भाग लिए कोई जीवन मंच से नहीं उतर सकता है। इसलिए कृष्ण सदा मुस्काते रहे, वह कभी गंभीर नहीं हुए।
वर्तमान भी तक संसार में जितने लोग आये, सब दुःखी गंभीर दिखाई दिए। चाहे बुद्ध हों या जीसस, गुरु नानक हों या मोहम्मद। हर कोई चिंता में व्याप्त रहा, किन्तु श्रीकृष्ण जी दुनिया के एक अकेले ऐसे महापुरुष हैं जो दुःख में भी मुस्कुराने का साहस करते हैं, जो मृत्यु को भी हँसकर स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं।

तभी अर्जुन से कृष्ण कहते हैं— 'पार्थ! जब तू ऐसा समझता है कि कोई मरा सकता है, तब तक तू आत्मा पर विश्वास के बजाय शरीर पर विश्वास कर रहा है। क्योंकि तुझे पता ही नहीं है कि जो भूत है, वह न कभी मरा है, न कभी मर सकता है। अगर तू सोचता है कि मैं किसी को मार सकूँगा, तो तू बड़ी भ्रांति में है, बड़े अज्ञान में है। क्योंकि मारने की धारणा ही शरीरवादी की धारणा है, आत्मवादी की नहीं।'

असल में योगिराज श्रीकृष्ण मनुष्य जाति के इतिहास में एक अकेले महापुरुष हैं, जो जीवन के सब अर्थों को स्पष्ट कर लेते हैं। जो परमात्मा को अनुभूत करते हुए युक्त से विमुख नहीं होते, जो अधर्म के विरुद्ध खड़ा होने और बोलने का साहस रखते हैं।

किन्तु इसके विपरीत ब्रह्मवैवर्त नामक पुराण में कृष्ण के चरित्र का कलंकित चित्रण किया गया, जिसके ऊपरांत विभिन्‍न मत–मतांतरों के लोगों ने अपने तथाकथित नबियों, काल्पनिक ईश्वर के दूतों को बड़ा दिखाने के लिए इसी पुराण का सहारा लिया। इसके बाद तथाकथित दुराचारियों, गुरुओं ने धर्म और ईश्वर की आड़ में पांडाल सजा-सजाकर कृष्ण के महान चरित्र को कलंकित किया, जो आज भी जारी है।

जैसा कुछ समय पहले दिल्ली में एक बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित अपने आश्रम में लड़कियों को निर्वस्त्र कर कहता था— 'मैं कृष्ण हूं और तुम गोपी हो।' ऐसे लोगों ने ही कृष्ण का जो असली वीरता का चरित्र था, जो साहस का था, जो ज्ञान का था, जो नीति का था— जिसमें युद्ध की कला थी, जिसमें प्रेम था, करूणा थी— वो सब हटा दिया, नकली खड़ा कर दिया।

भला, जिसके स्वयं घर में हजारों गायें हों और घर में दूध-दही व माखन की कोई कमी न हो — वो क्यों दूसरे के घर माखन चुराकर खाएगा? क्या बाल लीला करने के लिए सिर्फ यही एक कार्य बचा था?

भला जो द्रौपदी की अस्मिता रक्षा हेतु दु:शासन को वस्त्रहीन कर देता है, वह क्यों भला गोपियों को नग्न देखने के लिए कपड़े चुराएगा?

स्वयं सोचिए, जिसने योग की परम ऊँचाई को प्राप्त किया हो, जिसका कर्ता ऐसा अध्यात्म हो जो जीवन की समस्त सम्भावनाओं को एक साथ स्वीकृत कर लेता हो — ऐसे योगिराज श्रीकृष्ण की भव्यता के लिए बड़ी सार्थकता है।

भव्यता को कृष्ण के सिद्धांतों की आवश्यकता है। इस भारत भूमि को इस वैदिक संस्कृति को योगिराज श्रीकृष्ण की आवश्यकता है।

क्योंकि जब सबके मूल में नित्य सिद्धांत फीके पड़ जाएँगे, सबके सब अंधेरे में डूब जाएँगे, और इतिहास की मिट्टी उन्हें दबा देगी — तब भी श्रीकृष्ण जी का तेज चमकता हुआ रहेगा।

बस लोग इस योग्य हो जाएँ कि कृष्ण को समझ पाएँ। जिस दिन ऐसा होगा, कृष्ण के विचार का जन्म हो जाएगा, अधर्म हार जाएगा और एक पवित्रता और ज्ञान का जन्म होकर धर्म विजयी हो जाएगा। पुनः — कृष्ण जन्म हो जाएगा।

 

ALL COMMENTS (0)