भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में नेशनल सिटीजन रजिस्टर यानी एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी हो चुकी है। लिस्ट के अनुसार लगभग 19 लाख 6 हजार 657 लोग बाहर हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने कोइ दावा पेश नहीं किया था। 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार 4 लोगों को वैध करार दिया गया है। अगर कोइ लिस्ट से सहमत नहीं है तो वह अपनी अपील कर सकता है।

जमात हो पिचले साल 21 जुलाई को जारी की गई एनआरसी सूची में 3.29 करोड़ लोगों में से 40.37 लाख लोगों का नाम नहीं शामिल था। अंतिम सूची में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 से पहले असम के निवासी हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहतें आए हैं।

असम के राश्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची जारी होने के बादibat अब बहुुत लंबे आंकड़े निकलते रहे हैं। बंगाल में भागपा नेताओं के बयानो से साफ़ है कि पार्टी इसे सिरफ असम तक ही सीमित रखना नहीं चाहती। असम की तरफ पर ही इसे बंगाल में भी लगाया जाता है।

लेखन ममता बनर्जी समेत कई नेताओं के नेताबंगाल में एनआरसी के विरोध में खूबर इसे हिंदी मुस्लिम मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। नीति आज़ोर बंगाल से बहुुत दूर दिल्ली में इस मुद्दे की पहले को ग़ौर ज़रूरी बनाकर मुस्लिमों को पीड़ित बनाकर पेश किया जाता रहा है।

जबकि एनआरसी न मुस्लिम विरोही है और न बंगाली विरोधी है। एनआरसी लागू करने का सिद्धांत सा कारण यह है कि लोग बाहर से लेकर भारत में बसे हैं उनमें कहीं गैरिब भारतीय नागरिकों मिलनें वाले सुविधाओं और अधिकारियों से अलग रखा जाये।

साल 2011 में हुई जनगणना को देखें तो पिछले बंगाल में मुस्लिम आबादी 2001 में 25 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 27 प्रतिशत हो गई थी। यह आंकड़ा 2011 के जबकी आज 2019 तक बढ़ चुका है।
इससे का नतीजा हैं पिछले कुछ समय में भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों से घुसपैठियों द्वारा हिंदुओं को मार-मारकर भगाया जा रहा है। ऐसा इसी लिए क्योंकि बांग्लादेश की सीमा से स्टेट पी. बांगाल, असम के अधिकांश क्षेत्रों का राजनैतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक परिचय बढ़ गया है।

24 प्रतिशत, मुर्शिदाबाद, बिर्भूम, मालदा आदि जैसे कई महत्वपूर्ण स्थान शामिल हैं। हालात तब ज्यादा बिगड़ने लगे हैं क्योंकि आंकड़ों और खबरों से ही पता चलता है कि पिछले बंगाल में क्या चल रहा है?
2013 में बंगाल में हुए सूनियोजित दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानों लूटी गई थी। साथ ही कई मंदिरों को तोड़ा गया था। बंगाल के 3 जिले ऐसे हैं, जहां पर मुस्लिमों ने हिंदुओं की जनसंख्या को फसाद और दंगे के माध्यम से पलायन के लिए मजबूर किया।
2011 की जनगणना के अनुसार मुर्शिदाबाद में 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिंदू, मालदा में 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिंदू और उत्तर दीनाजपुर में 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिंदू हैं।
जबकि हिंदू यहां काफी बहुसंख्यक हुआ करते थे। तब तक पिछले बंगाल के सीमावर्ती उपजीलों की बात करें तो 42 क्षेत्रों में से तीन क्षेत्रों में मुस्लिम 90 प्रतिशत से अधिक, सात क्षेत्रों में 80-90 प्रतिशत के बीच, ग्यारह में 70-80 प्रतिशत तक, आठ में 60-70 प्रतिशत और 13 क्षेत्रों में मुस्लिमों की जनसंख्या 50-60 प्रतिशत तक हो चुकी है।

आप खुद देखिये कि यहाँ संख्या केसे बढ़ी। 1951 की जनगणना में पश्चिम बंगाल की कुल जनसंख्या 2.63 करोड़ में मुसलमानों की आबादी लगभग 50 लाख तक थी, जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 2.50 करोड़ हो गई। किन्तु पिछले पश्चिम बंगाल का एक बड़ा बुद्घिजीवी वर्ग और तमाम राजनीतिक पार्टियां चुप्पी साधे हुए हैं। इस मसले पर हमेसा से सबसे ज़्यादा मुंह बंद रखने वाली एकमात्र राजनीतिक पार्टी भाजपा रही है। दंगों ही अलावा पिछले बंगाल के कुछ राजय और क्षेत्रों में भी स्थिति बदतर है।

दूसरी तरफ़ अगर बंग्लादेश के भीतर के बात करें तो संस्कृत भाषा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले दशक में बंग्लादेश में एक बड़ा लोग गया है जो भारत के कुछ पड़ोसी क्षेत्रों के अलावा असम और पश्चिम बंगाल में गुजरा करता है। इन गुजपैयों के कई क्षेत्रों, लुटपाट, डकैती, हथियार एवं पशु तस्करी, जाली नोट एवँ नशीली दवाओं के कारोबार जैसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण कानूनी व्यवस्था पर गंभीर खतरा पैदा होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसीके अलावा बंग्लादेशी गुजपैयों का आक्रमण लगातार बढ़ रहा है, जो कई बार पड़ोसी देशों के लिए एक हथियार के रूप में उपयोग किए जाने की भी सम्भावना है।

 

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