प्रिवर्तन दुनिया के एक महान नीयम में एक है जो हमेशा होता रहा है। कोई शादी कोई काल कोई समारोह हमेशा नहीं रहा, मूगल काल बीते दिन की बात हो गई। महान रोमन् समारोह और ओटोमन समारोह दशाहई हुए तो ग्रेट ब्रिटेन जि़सके राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था आज वह छूटे से भू भाग में सीमट गया। सिकंदर महान ने स्पना देखा था कि वह दुनिया का हर कोना जीता लेगा। हर महासागर का तट उसकें कब्जे में होगाः

लेकिन भारत के पश्चिमी हिस्से तक आते आते सपना दम तोड़ गया।

समारोहों की तरह ही पंथ भी प्रिवर्तनशील हैं। ऐसे की ईसाई पंथ वर्ष 1054 में दो हिस्सों में संप्रदाय में बंट गया था। इस्लाम का भी यही हाल हुआ। काहे खुद को एक कहने वाला इस्लाम आज शिया, सुन्नी, अहमदिया, बोहरा और न जाने कितने संप्रदायों में बंट चुका है। आज से करीब 3500 साल पहले कांस्य युग के दौरान ईरान में जरथुस्त्र ने एकेश्वरवाद की नींव रखी थी। उस दौर में पारसी धर्म के अग्नि मंडिरों में इबादत के लिए हजारों लोग जुटा करते थे। इस्के एक हजार बरस बाद फ़ारस के समारोह का पतन हो गया।

नतीजा यह हुआ कि पारसी धर्म के अनुयायियों पर ऊन्के नये शासकों ने ज़ुल्म ढाने शुरू कर दिए। युंको उनकाअ मज़हब इस्लाम हो चुका था।

असल में जब हम किसी के विषय को धर्म का दर्जा देते हैं, हम इसकीक़ैत को जानते होते हुए भी एक बात नहीं मानते हैं, वो ये कि जब भी कोई नया धर्म शुरू करता है, तो पहले उसे एक नया संप्रदाय माना जाता है। हम ये मानने लगते हैं कि यह पवित्र है। किन्तु जब उस मज़हब की मौत होती है, तो ये एक मिथक बन जाता है। फिर उसी आख़िरी स्तय का दावा भी ख़त्म हो जाता है। मिसर, यूनान और दूसरी प्राचीन सभ्यताओं के एक दौर के धर्म आज क़िस्से-कहानियों में तब्दील हो चुके हैं। अब उन्हे पवित्र मान कर उन्हका अनुसरण कोई नहीं करता।

ये है आज भले ही दक्ष्षिण एशिया में मुसलमान बड़े-बड़े दावें करते हों लेकिन सच यह है कि जहाँ अरब ज़मीन में कट्टर धार्मिक अवाजों का शोर बड़ा रहा है वहीं दूरस्त तरफ़ बड़े संख्या में अरब नौजवान अब इस्लाम को छोड़ने और खुद के नास्तिक होने की खोज़ कर रहे हैं। ये नौजवान इस्लाम में धार्मिक विचारों, सोशल मीडिया पर खुलेआम सवाल उठाने और इस्लामी शासनों वाले रूसियवादि देश भी इस्लाम छोड़ रहे युवाओं की चपेट में आते हैं। हाल ही में जब हमने अरब और अंग्रेज़ी देशों भाइयों में फेस्टबुक पर एक्स मुस्लिम पेजों की खोज की, तो अल्ग-अल्ग अरब देशों के नामों के साथ करीब 250 से अधिक पेज पाएंगे जिनसे हजारों की संख्या लोग जुड़े हुए हैं। ऐसा ही हाल ट्विटर तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मिला। ब्लकि ट्विटर पर एक्स मुस्लिम यानी पूरा मुस्लिम युवाओं द्वारा इस्लाम पर सवाल उठाती अनेक वीडियोज़ भी मिले।

ब्रिटिश अख़बार दी इंडिपेंडेंट ने एक्स-मुस्लिम कॉन्शिल की संस्था का मरियम नमाज़ी के हवाले से लिखा है कि मुस्लिम देशो में ‘इस्लाम छोड़ने की सुनामी’ आई हुई है। हालांकि सारे लोग धरम छोड़ रहे हैं, लेकिन ये लोग डर के मारे खुलकर सामने नहीं आते। अपने देश छोड़कर ब्रिटेन, अमेरिका या भारत जैसे खुले समाज में रहना पसंद करते हैं। उनके बावजूद कि मैंने ऐसे कई लोगों को जाना हूँ जो बाहर से तो खुद को मुसलमान दिखाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर इस मज़हब से नफरत करने लगे हैं। मरियम खुद भी ईरान की रहने वाली हैं और अपने देश छोड़कर वे अब ब्रिटेन में बस गई हैं। इस दौरान इन्डोनेशिया की चीफ जस्टिसيفا सुदेवी ने इस्लाम त्यागकर हिंदू धरम अपनाने लिया था।

मटलब ये कि ये यूट्यूव इस्लाम की कुछ परंपराओं पर सवाल उठा रहे हैं। खुद को रूढ़िवादी ख्याल से आज़ाद करना रहे हैं। इंटरनेट पर इस्लाम के बारे में न तो ज़्यादातर उपलब्ध होने से इन एक्स-मुस्लिमों का हॉसला बंधा है। वो अपने जहन में अपने मजहब को लेकर उतना नहीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।

इनके सवाल हैं कि में ऐसे किसे धर्म का हिस्सा नहीं रह सकता जो यहां तक करता है कि आपकों कईसे कपड़े पहनने हैं, कैसा हुलिया रखना है, दाढ़ी रखनी है या मूंछ रखना है। यूरोप और अमेरिका में रहने वाले कई मुसलमानों ने लिखा है कि आधुनिक दुनियां में ऐसे पहले के साध नही रहा जो सवालता, जिससे लोग आपकों संदेशात्मकवादी मानते हों मुसलमानों की ये पहली-लीखी ज़मात आम तौर पर बीस-तीस बरस के उम्र की है। वो खुद को या तो पूरा मुसलमान कहते हैं, या फिर नास्तिक। वो फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे सोशल माध्यमों से एक-दूसरे से जुड़े रहे हैं।

मरियम निजामी ने अपने इंटरनेटू में ये भी बताया कि हिंदू और मुस्लिम संगम या दुनियां के तमाम दुर्ग्रे देशों में सोशल मीडिया पर चल रहे ग्रुप्स में ज़्यादातर महिलाएं हैं। ऐसे किसी भी ग्रुप या पेज़ पर जाकर आप एक्स-मुस्लिमों की सोच के बारे में जान सकते हैं। इनमें से कई ने कुरान से लेकर हदीस तक को पढ़ा हुआ है। खुद ने तो होज़ भी किया है। सबसे ज़्यादा महिलाएं हैं, बुर्के और हिजाब जैसी पुरूषवादी परंपराओं से नाराज़ हैं।

पिछले दिनों एक ऐसी हुई मुसलिम लड़की सारा की कहानी बेबीसी पर प्रस्तुत हुई थी। इसे लेकर तब काफ़ी विवाद भी हुआ था। सारा उस समय कनाडा चली गयी थी जब उस्की माँ ने इस्लाम छोड़ने के फैसले पर कहा था कि तुमहेँ ज़हन्नुम की आग में जलना होगा।

अब सारा कहनी है कि अब जब मैं इस्लाम को छोड़ चुकी हूँ, मुग़्धे इसका लघता है कि अब मैं पहलें से ज्यादा खुश और संतुष्ट हूँ और ज़हन्नुम की आग से बच गयी हूँ।

हालांकि अरबवासी भी इस्लाम को छोड़ चुके जाने की तमाम वजहें बताते हैं जो बाकि दुनियां के लोग बताते हैं। लेकिन कुछ कारण अरब दुनियां से ख़ास तौर से जुड़े हैं। जैसे कट्टर इस्लामिक समुदायों की हिंसा से कुछ लोग दुखी हैं। इस्लाम छोड़ रहे हैं क्योंकि कुछ लोग लोगों को लगताः है कि इस्लाम का मुख़्य सिद्धांत है स्वालों के ज़ेरे में है। मिस्र के एक एक्स मुसलिम दारुल इफ्ता भी माना है कि इस्लाम छोड़ने के बढ़ते छलन के लिए धार्मिक हिंसा कारण है। इससे दावा है कि ‘अतिवाद’, चरमपंथि और तकफीरी समुदायों ने इस्लाम के नाम पर बर्बर कार्रवाइयाँ की हैं, इसकी हवा को तौज़-मरोज़ कर पेश किया है साथ ही निंदा और सार्वजनिक जीवन में राजनैतिक इस्लाम की गुस्ताखी की गई।

यहाँ नहीं 2014 में हुई फॉल्स्टिनी अल-कुद्स अल-अरबी न्यूज वेबसाईट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें कहा गया है कि अरब देशों में इस्लामी संगठन के कार्यों के कारण युवाओं द्वारा ज़हन्नुम रहेंगे हैं। बल्कि सारे धर्मनिर्पेक्ष अरब मानते हैं कि अमीरे मुसलिमों ने अपने नजी और गुुप्त फायदे के लिए हुमेशा से इस्लाम धर्म का इस्तेमाल किया है। अब हम ऐसे मुद्दे में नहीं रह सकते जहाँ छोटे से जीवन में बड़ी गूठन का सामना करना पड़ता हो। यानी एक्स मुसलिम के बढ़ते इस छलन से आप समाज संकट होते हैं कि दुनियां भर की युवा मुसलिम मुस्लिम महिलायें इस क़ेद से आज़ाद हो रही है और आनडोलन छलां रही है

 

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