इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की तादाद रोज़ाना बढ़ रही है। खासकर फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप तो आधुनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा हो गए हैं। महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी इसके बिना दैनिक जीवन की कल्पना करना कठिन है।

सोशल मीडिया ने कई मायनों में जीवन काफी आसान कर दिया है। सूचना के त्वरित प्रसार के तौर पर अब पढ़ाई या रोज़गार के सिलसिले में विदेशों में रहने वाले बच्चे वीडियो कॉलिंग सुविधा के चलते अपने माता-पिता व परिजनों से आमने-सामने बात कर सकते हैं।

यानी सोशल मीडिया अब संचार का सबसे बड़ा साधन बन रहा है और तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रहा है। यह लोगों के विचारों, सूचनाओं और सामाजिक आदि को बहुत तेज़ गति से साझा करने में सक्षम होने के साथ ही पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया अत्यंत प्रभावी रूप से तेज़ी से बढ़ा है और दुनिया भर में लाखों उपयोगकर्ताओं पर कब्ज़ा कर लिया है।

लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया को AK-47 जैसा खतरनाक हथियार बताते हुए कहा है कि सोशल मीडिया से लोगों के निजी जीवन की निजता प्रभावित होती है, यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इसके आधार पर जो आपराधिक घटनाएं हो रही हैं, उनके दुरुपयोग को रोकने लिए केंद्र सरकार इस पर तुरंत कोई नीति तैयार करे।

आख़िर ऐसा क्या हुआ जो सुप्रीम कोर्ट तक को सोशल मीडिया ने डरा दिया? दरअसल, सोशल मीडिया पर हर रोज़ बहुत बड़ी संख्या में खबरें प्रसारित हो रही हैं, जिनमें अक्सर अफ़वाह और झूठी खबर होती है। खुद मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गुप्ता ने सवाल किया है कि कोई मुझसे ऑनलाइन ट्रोल करे और मेरे चरित्र के बारे में झूठ फैलाए, मैं इसका सामना कैसे करूं? अगर सरकार अपने मामलों में निपट सकती है, तो फिर किसी नागरिक को लेकर उसके पास क्या उपाय हैं?

दूसरा, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि सोशल मीडिया द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ पर उनकी क्या नीति है? क्योंकि खबर है कि हाल ही में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सिख फॉर जस्टिस ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बना लिया है। यूट्यूब पर जहां संस्था के लीगल एडवाइज़र गुरपतवंत सिंह पन्नू के वीडियो लगातार अपलोड हो रहे हैं, वहीं व्हाट्सऐप पर 500 ग्रुप सक्रिय हैं। ट्विटर ने सिख फॉर जस्टिस का ऑफिशियल अकाउंट बंद कर दिया है, लेकिन केंद्रीय एजेंसियों की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक यूट्यूब के अलावा गूगल से संपर्क कर संस्था पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा जा रहा है।

यह सही है कि भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन इसके साथ अनेक अपवाद भी हैं, जैसे इसकी आड़ में पंजाब में रेफरेंडम 2020 के पोस्टर लगाना और लोगों को भड़काना। कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनमें लोगों को हिंसा भड़काने और उसके लिए हथियार मुहैया कराने का वादा करना भी शामिल है। लेकिन फिर भी यह संगठन नए-नए अकाउंट बनाकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने प्रोपेगेंडा के लिए कर रहा है। SFJ के 2 लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं। केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार को आगाह किया है कि संस्था के सोशल मीडिया अभियानों पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिएं।

असल में दुनिया भर की वे शक्तियाँ, जिनका अस्तित्व दुष्प्रचार और अफवाहों पर ही टिका है, उनके लिए तो यह एक अनमोल माध्यम बन गया है। इन शक्तियों ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि तकनीक से वैश्विक होती दुनिया में अधिकतर लोग दुविधा में हैं। उनके पास स्वयं के विचारों की कमी है। ऐसे में अपने विचार और अफवाहों से उनके विचारों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है।

इसी कारण आज सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं को फैलाने से रोकने के लिए विश्व के कई देश कानून बना चुके हैं। फ्रांस, जर्मनी, मलेशिया और इटली जैसे देशों ने झूठी खबरें और गलत जानकारियाँ फैलाने को अपराध घोषित करते हुए जुर्माने और सज़ा का प्रावधान किया है। लेकिन भारत में करोड़ों की संख्या में सोशल मीडिया उपयोगकर्ता होने के बाद भी कोई कठोर कानून नहीं है। सरकार आईटी कंपनियों को कम से कम इतनी गाइडलाइन तो ज़रूर कर ही दे कि कोई किसी के बारे में जब झूठी सूचना प्रसारित हो तो पीड़ित यह जान सके कि इस खबर को प्रसारित किसने किया है। इस दौर में जब सूचनाओं के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया है, तब यही सोशल मीडिया अब लोगों को गुमराह, प्राभावित और दिशाहीन करने का एक कुपथीय हथियार बन गया है। अनेक संगठन और राजनीतिक पार्टियाँ तक इसी के सहारे पनप रही हैं।

पिछले दिनों TikTok ऐप को लेकर बवाल मचा था। जब फेज़ू नाम के एक व्यक्ति ने वीडियो जारी किया था, जिसमें वह आतंकी बनने की धमकी दे रहा था। जब इस वीडियो पर जमकर हंगामा मचा तो बॉलीवुड अभिनेता एजाज़ ख़ान ने भी TikTok पर फेज़ू के समर्थन में वीडियो बनाकर डाली थी। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार मंछ ने पीएम नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था। मंछ ने देश-विरोधी और गै़रकानूनी गतिविधियाँ चलाने के लिए TikTok और Hello के प्लेटफ़ॉर्म के इस्तेमाल का आरोप लगाया था कि ये ऐप भारत में देश विरोधी गतिविधियाँ चलाने के अड्डे बन गए हैं। बाद में मंछ की इस शिकायत पर इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी मंत्रालय ने दोनों ऐप को नोटिस भी जारी किया था।

यह केवल एक या दो मामले नहीं हैं — सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक 47 जैसै घातक हथियार का नाम ऐसे ही नहीं दिया। यह दुष्प्रचार और गलत जानकारियों का सशक्त माध्यम बन गया। हालत यहाँ तक पहुँच गए हैं कि सही जानकारियों पर लोगों ने भरोसा करना बंद कर दिया है और गलत समाचरों को दुनियाभर में पहुँचाया जा रहा है। ऑनलाइन में सब कुछ प्रसारित जा रहा है, इसे देखने और रोकने के लिए काफ़ी उपाय करने होंगे। वरना देश में दिन प्रतिदिन देश और सभ्य समाज विरोधी शक्तियाँ मज़बूत होती चली जाएँगी।

 

ALL COMMENTS (0)