महाभारत का युद्ध जीतने के बाद हस्तिनापुर पहुंचकर जब युधिष्ठिर ने सत्ता संभालने से इंकार किया तब हो सकता है कि युधिष्ठिर मन में चन्द्रगुप्त मोर्य के पोते सम्राट अशोक की छवि रही हो। ये बात कोई छोटा मोटा नेता या अभिनेता आदि कह देता तो एक बारगी सोच लिया जाता कि हो सकता इन्हें इतिहास का ज्ञान कम होगा, लेकिन जब यह बात देश की सबसे बड़ी इतिहासकार रोमिला थापर कहे तो क्या सोचा जाये? जबकि अशोक और महाभारत के काल में एक-दो सदियों नहीं बल्कि एक युग का अंतर है।

ऐसे एक नहीं बल्कि पिछले कई दशकों से रोमिला थापर जैसे कई वामपंथी इतिहासकारों का बड़ा बोलबाला रहा है। वैसे तो कई और दरबारी इतिहासकार भी हैं लेकिन इनमें रोमिला थापर, ईरफान हबीब और रामचंद्र गुहा का नाम प्रमुखता से शामिल है। रोमिला थापर जवाहरलाल लाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली की ताउम्र प्रोफेसर है और खुद अपने को विश्वविद्यालय का डायनासोर’ कहती हैं। उनका कथन देखा जाये तो बड़ा आकार और छोटी बुद्धि वाले अर्थ में यह संज्ञा उनके लिए सटीक भी है।

बात यही खत्म नहीं होती क्योंकि सवाल उनके इसी कथन से उभरकर सामने आये है कि आखिर इन इतिहासकारों ने देश और समाज को क्या दिया? इनकी लिखे इतिहास से इस देश की अगली पीढ़ी क्या सीखेगी? यही कि सम्राट अशोक के बाद कौरव और पांडव हुए और महाभारत का युद्ध हुआ? हालाँकि शुरू से ही अपने कथित इतिहास लेखन में रोमिला ने भारत को तोड़ने-मरोड़ने, नीचा दिखाने का ही काम किया है। इस बात की गवाही खुद उनकी भाभी, और प्रसिद्ध विदुषी राज थापर ने भी दी थी जो प्रसिद्ध अंग्रेजी मासिक सेमिनार की संस्थापक, संपादक थीं. राज थापर ने अपनी आत्मकथा ऑल दीज इयर्स’ में 1980 की एक घटना का उल्लेख किया है। जब कांग्रेस नेता डॉ कर्ण सिंह ने अपने मित्र रोमेश थापर से शिकायत की कि उनकी बहन रोमिला अपने इतिहास-लेखन से भारत को नष्ट कर रही है। तब कर्ण सिंह की रोमेश से तकरार भी हो गई थी क्योंकि रोमिला का लेखन, भाषण, अध्यापन और प्रचार का मुख्य स्वर सदैव हिंदू-निंदा और इस्लाम-परस्ती रहा है।

रोमिला ही क्यों यदि अन्य वामपंथी इतिहासकारों का यदि लेखन भी देखा जाये तो इनके मानसिक दिवालियेपन के अनूठे कारनामों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। इन्होने देश के इतिहास की किताबों में संस्कृति और सभ्यता के बड़े दौर और उसकी कामयाबियों को न केवल कम किया बल्कि उसे गलत तरीके से बताया गया। इसी कारण इस्लाम, ईसाइयत और वामपंथ जैसी बाहरी अवधारणाओं ने हमारे इतिहास, हिंदू संस्कृति और सभ्यता को गहरा नुकसान पहुंचाया है। यूनान, तुर्क, अरब से आये विदेशी हमलावरों ने न केवल भारत की संस्कृति, वैभव और सम्पदा को लूटा बल्कि करोड़ों लोगों का नरसंहार भी किया। भारत की धरती को रक्तरंजित करने और गौरवशाली इतिहास को जितना तहस नहस मुस्लिम आक्रमणकारियों और मुगल साम्राज्य ने किया उतना शायद किसी ने नहीं किया! लेकिन भारत का दुर्भाग्य मानिये कि यहाँ के वामपंथी इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने भारत के रक्तरंजित इतिहास में आक्रांताओं और मुगलों की रक्तलोलुपता को अपनी स्याह स्याही से ढककर उन्हें महान बना दिया और इस भारतभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर राजाओं को इतिहास से मिटा दिया।

हमें पढाया जाता है कि अकबर महान शाशक था उसके राज्य में प्रजा बड़ी सुखी और संपन्न थी। अब एक पल को सोचिए यदि ऐसा था तो महाराणा प्रताप अकबर से क्यों टकराया? बस इसी बात से समझ जाना चाहिए कि भारतीय इतिहास पर इन लोगों का लम्बे समय तक इनका कब्जा रहा, कुछ अन्य तथाकथित इतिहासकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उपज थे, जिन्होंने नूरुल हसन और इरफान हबीब की अगुआई में इस प्रकार इतिहास को विकृत कर दिया।

असली तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ही नहीं नये तथ्यों  को गढ़कर भी ये इतिहासकार यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारत में जो भी गौरवशाली है वह मुगल बादशाहों द्वारा दिया गया है और उनके विरुद्ध संघर्ष करने वाले महाराणा प्रताप,  वीर शिवाजी आदि पथभ्रष्ट हिन्दू राजा थे। अफसोस ये लोग देश के नौनिहालों को यह झूठा ज्ञान दिलाने में सफल रहे कि भारत का सारा इतिहास केवल पराजयों और गुलामी का इतिहास है और यह कि भारत का सबसे अच्छा समय केवल तब था जब देश पर मुगल बादशाहों का शासन था।

इन लोगों ने जैसा चाहा वैसा लिखते गये तत्कालीन सरकारों ने कभी सुध नहीं ली और प्राचीन हिन्दू गौरव को उजागिर करने वाले इतिहास को या तो काला कर दिया या धुँधला कर दिया। राम को काल्पनिक राजा बना दिया, आर्यों को विदेशी बना दिया, आर्य और द्रविड़ जैसी खाई खोदी। जो सभ्यता कभी सरस्वती नदी के किनारे विकसित हुई थी यानि जो वैदिक सभ्यता थी, जिसे वामपंथियों ने सिंधु घाटी सभ्यता नाम दिया। खुदाई में निकले सारे पुरावशेषों ने हमारे वेदों में लिखी बातों को सिद्ध कर दिया है कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए थे और विश्व की सबसे प्राचीन और विकसित सभ्यता भारत की वैदिक सभ्यता थी। लोग सुखी और संपन्न थे।

अकूत धन सम्पदा के कारण ही विदेशी आक्रांतों को भारत में आक्रमण के लिए प्रेरित किया। लेकिन ऐसे सच नही लिखा गया और झूठे इतिहास का परिणाम आज हमारे सामने है। लुटेरे और चोरो को आज लोग बादशाह सुलतान नामो से पुकारते है। उनके नाम पर सड़के बनाते है। शहरो के नाम रखते है और उसका कोई विरोध भी नहीं करता। एक कहावत है कि इतिहास बदलो, मन बदलो और गुलाम बनाओ। यह कहावत भारत के संदर्भ में सटीक बैठती है क्योंकि यही आज तक होता आया है। ऐसे में रोमिला थापर हो या भारत के दो टुकड़े करने की सलाह देने वाले इतिहासकार रामचन्द्र गुहा और इरफ़ान हबीब जब तक इनका कोई विरोध नहीं करेगा तब तक इतिहास के जरिये देश की संस्कृति पर आक्रमण होते रहेंगे। एक दिन हमारे धार्मिक ग्रन्थ किस्से कहानियां उनके पात्र काल्पनिक बनकर रह जायेंगे।

 

 

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