काशी महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ से आरà¥à¤¯ समाज ने कà¥à¤¯à¤¾ पाया
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Vinay AryaDate
16-Oct-2019Category
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RajeevUpload Date
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आमतौर पर धरà¥à¤® और अदà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• कही जाने वाली काशी नगरी का जिकà¥à¤° आते ही आज समय में सबसे पहले देश के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ नरेंदà¥à¤° मोदी की लोकसà¤à¤¾ सीट की तसà¥à¤µà¥€à¤° दिखाई देती है। नरेंदà¥à¤° मोदी ने साल 2014 काशी पहà¥à¤‚चकर कहा था गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ की धरती से आया हूठगंगा माठने बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ है। देश को आगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ में इस काशी नगरी से मोदी की à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• जीत ने देश को आगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ में कारà¥à¤¯ किया। लेकिन इसी काशी नगरी ने आज से 150 वरà¥à¤· पहले गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ की धरती से à¤à¤• और बेटे सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी को à¤à¥€ बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ था। ताकि इस सोये देश को जगाने के लिठआगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ पाखंड और अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ का समूल नाश किया जा सके। यदि काशी नगरी ने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी को à¤à¥à¤²à¤¾ दिया गया तो काशी का परिचय अधà¥à¤°à¤¾ रह जायेगा।
जब सन 1861 में महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद का पौराणिक रीति-नीति के मानने वाले पाखंड में पारंगत पंडितों से काशी में शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ हà¥à¤† तो वह महज à¤à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ नहीं बलà¥à¤•à¤¿ à¤à¤• नये यà¥à¤— की आहट थी। उस आहट ने इस देश की धरा के यà¥à¤µà¤¾à¤“ं की चेतना को न केवल जागà¥à¤°à¤¤ किया बलà¥à¤•à¤¿ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• वैचारिक हथियार à¤à¥€ दिया था। धीरे-धीरे समय गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ गया। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ के बाद उनके शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने देश विदेश में आरà¥à¤¯ समाज ने वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° तो किया लेकिन उसका दायरा सिमित होकर रह गया था।
देश विदेश में अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨à¥‹à¤‚ जैसे अनेकों सफल आयोजन करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ इस वरà¥à¤· आरà¥à¤¯ समाज की शिरोमणि संसà¥à¤¥à¤¾ सारà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤• सà¤à¤¾ ने फिर à¤à¤• बीड़ा उठाया, दिलà¥à¤²à¥€ सà¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ सà¤à¤¾ ने संयà¥à¤•à¥à¤¤ रूप से पूरा सहयोग किया और देखते ही देखते काशी में à¤à¤• अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° का महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ काशी शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ की 150 वी वरà¥à¤·à¤—ांठके अवसर पर तीन दिवसीय सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ शताबà¥à¤¦à¥€ वैदिक धरà¥à¤® महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ के आयोजन की नीव रख दी। यधपि यह कारà¥à¤¯ कोई छोटा-मोटा नहीं था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आज के वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ यà¥à¤— में जिस तरह से अनेकों पाखंडों को सरकारों का संरकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है उस लिहाज से तो बिलकà¥à¤² à¤à¥€ नहीं। परनà¥à¤¤à¥ आरà¥à¤¯ समाज के जà¥à¤à¤¾à¤°à¥‚, करà¥à¤®à¤ कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं ने अपनी à¤à¤•à¤œà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ दिखाते हà¥à¤ 150 वरà¥à¤· बाद उसी काशी की à¤à¥‚मि पर à¤à¤• बार फिर जो वैदिक शंखनाद किया, à¤à¤¸à¥‡ सफल आयोजन का à¤à¤µà¥à¤¯ आरमà¥à¤ और समापन विरले ही सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ और देखने को मिलता है।
कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® à¤à¤²à¥‡ ही 11 से 13 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर का था लेकिन 10 अकà¥à¤¤à¥‚बर पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤°à¥‚ से ही जिस तरह बिहार, बंगाल, तेलंगाना, महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°, करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤•. छतीसगà¥, à¤à¤¾à¤°à¤–ंड, उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के हजारों की संखà¥à¤¯à¤¾ में कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं के अलावा पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ समेत किन-किन राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से आये विशाल संखà¥à¤¯à¤¾ में हजारों लोगों का वरà¥à¤£à¤¨ करें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ का कोई राजà¥à¤¯ और हिसà¥à¤¸à¤¾ à¤à¤¸à¤¾ शेष नहीं था जहाठसे आरà¥à¤¯à¤œà¤¨ ना आये हो। बलà¥à¤•à¤¿ मà¥à¤¯à¤¾à¤‚मार, नेपाल, बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ समेत कई देशों के उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ à¤à¤¾à¤— लेने पहà¥à¤‚चे। विशाल कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में फैला पंडाल तो आरà¥à¤¯à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ दरà¥à¤œ करा ही रहा था इसके अतिरिकà¥à¤¤ यजà¥à¤žà¤¶à¤¾à¤²à¤¾, à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ से लेकर महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ सà¥à¤¥à¤² के मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤¾à¤°à¥à¤—ों के अलावा कोई कोना à¤à¤¸à¤¾ शेष नहीं था जहाठये कहा जा सके कि यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ खाली है। हर कोई उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ और गौरव के इन पलों का साकà¥à¤·à¥€ बनकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को गौरवानà¥à¤µà¤¿à¤¤ महसूस कर रहा था।
बहà¥à¤¤ लोग सोच रहे होंगे कि आखिर à¤à¤¾à¤°à¤¤ की राजधानी दिलà¥à¤²à¥€ से इतनी दूर इस विराट महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ के लिठसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चà¥à¤¨à¤¾ गया? दरअसल à¤à¤• तो 150 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ काशी शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ की विजय सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ आज धà¥à¤‚धली सी पड़ने लगी थी. जब काशी के दिगà¥à¤—ज पंडितों के साथ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद का शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ काशी नरेश महाराज ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ सिंह की मधà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¥à¤¤à¤¾ में शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हà¥à¤†à¥¤ इस शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ के दरà¥à¤¶ के तौर पर काशी नरेश के à¤à¤¾à¤ˆ राजकà¥à¤®à¤¾à¤° वीरेशà¥à¤µà¤° नारायण सिंह, तेजसिंह वरà¥à¤®à¤¾ आदि पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे। दूसरा सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने वहां जिस पाखंड के खिलाफ अपनी मà¥à¤¹à¥€à¤® चलाई थी उन लोगों की अगली पीढीयों ने आज अनà¥à¤¯ कई पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° नये पाखंड ईजाद कर लिठतो आज समय की मांग को देखते हà¥à¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ देव दयाननà¥à¤¦ के शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ बनता था कि फिर उसी काशी से फिर आरà¥à¤¯ समाज का à¤à¤• नया उदà¥à¤˜à¥‹à¤· हो ताकि लोग यह न समठबैठे कि आरà¥à¤¯ समाज पाखंड से हारकर बैठगया है।
इसी उदà¥à¤—ोष का नतीजा रहा कि काशी की नई पीà¥à¥€ से लेकर पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ बिहार में इस महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ की दसà¥à¤¤à¤• ने अगले कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ के दरवाजे खोल दिà¤à¥¤ महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ सà¥à¤¥à¤² के बाहर मà¥à¤–à¥à¤¯ मारà¥à¤— पर मानो मेला सज गया। रेहड़ी पटरी वालों से लेकर बनारसी साड़ियों की दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥‡ तक सज गयी, इनमें बहà¥à¤¤à¥‡à¤°à¥‡ लोगों को तो इससे पहले आरà¥à¤¯ समाज का पता तक नहीं था लेकिन जब काशी की सड़कों पर à¤à¤—वा धà¥à¤µà¤œ केसरियां टोपी और पगड़ी पहने जब विशाल शोà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ का आयोजन हà¥à¤† तो हर किसी के लिठआशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ का केंदà¥à¤° बन गया, काशी के सà¤à¥€ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में तो महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ ने सà¥à¤°à¥à¤–ियाठबटोरी ही साथ जी नरिया लंका से चली शोà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ जहां से à¤à¥€ गà¥à¤œà¤°à¥€ लोगों ने उनका à¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया।
सही मायनों में देखा जाये तो काशी महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ ने आरà¥à¤¯ समाज का खोया गौरव लौटाया, सà¥à¤µà¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ को ताकत मिली, वैदिक मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ देव दयानंद, आरà¥à¤¯ समाज तथा वैदिक धरà¥à¤® के नारों से न केवल काशी नगरी गूंजी बलà¥à¤•à¤¿ 150 वरà¥à¤· पहले के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद जी के शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ को पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® मिल गया। à¤à¤• बार फिर काशी के यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को पà¥à¤¨à¤°à¤µà¤²à¥‹à¤•à¤¨ करने मौका दिया कि हमारी सनातन संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ और पाखंड के लिठकोई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नहीं है। हम वेदों के मारà¥à¤— पर चलने वाले लोग थे न कि अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ के मारà¥à¤— पर चलने वाले। काशी महासमà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ से लौटे सà¤à¥€ आरà¥à¤¯ समाज से जà¥à¥œà¥‡à¤‚ लोग पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ पूरà¥à¤µà¤• कह रहे है कि इस कड़ी में अंतिम लकà¥à¤·à¥à¤¯ है ‘कृणà¥à¤µà¤‚तो विशà¥à¤µà¤®à¤¾à¤°à¥à¤¯à¤®’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ संपूरà¥à¤£ विशà¥à¤µ को आरà¥à¤¯ यानी शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ बनाना हैं। यदि कहीं जो अपूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ बचीं हैं उसे दूर करके जलà¥à¤¦ ही हम संगठन, समाज व राषà¥à¤Ÿà¥à¤° को सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ बनाते हà¥à¤ विशà¥à¤µ à¤à¤° को आरà¥à¤¯ बनाने के लकà¥à¤·à¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकें।
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