दुनिया के सबसे बड़े आतंकी संगठन का सरगना, जिसने इंसानियत और मानवता को शर्मसार किया हो, जिसने मजहब के नाम पर लाखों जाने ली हों — आखिरकार वह मारा गया। आपके और मेरे लिए शायद यह राहत की बात होगी, लेकिन यह खबर सुनकर दुनिया भर के वामपंथी मीडिया की सांसे अटक गईं। पूरी दुनिया में दहशत फैलाने और लाखों लोगों की हत्या करने वाले आतंकी संगठन 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस)' के बारे में जो लोग जानते हैं, वह बगदादी के मारे जाने का मतलब समझ सकते हैं। अबू-बक्र अल-बगदादी, जिसे बगदादी के नाम से पहचाना गया, उसका खात्मा हो गया है। जब भारत में दीपावली मनाई जा रही थी, ठीक उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपती डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर बताया कि कुछ बहुत बड़ा हुआ है। यह ट्वीट हाउस के लिए वास्तव में किसी बड़ी खबर का संकेत था। जहां खुद ट्रंप भी दीपावली उत्सव में शरीक हुए थे। अमेरिकी राष्ट्रपती ने बाद में बगदादी के मारे जाने का दावा किया था।

बगदादी कितना खतरणाक था, इसे अमेरिकी राष्ट्रपति के शब्दों से समझा जा सकता है। उन्होंने लिखा कि दुनिया के सबसे हिंसक और क्रूर संगठन का चीफ़ मारा गया। लेकिन जब इसी खबर लेकर दुनिया भर की मीडिया सामने आई तो उनके चेहरे देखकर ऐसा लगा जैसे बगदादी कोई आतंकी नहीं बल्कि कोई संत रहा हो।
दुनिया के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में 'शुमार वॉशिंगटन पोस्ट' ने लिखा कि — 'इस्लामिक स्टेट के शीर्ष धार्मिक विद्वान बगदादी की 48 साल की उम्र में मौत।'
जैसे ही इस शीर्षक को लेकर बवाल मचा, तो अख़बार की तरफ से इस खबर की हेडलाइन बदल दी गई।

वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक़, आईएस का आतंकी उसका मुखिया एक धर्मिक विद्वान था। अब जिसने भी यह खबर पढ़ी होगी, उसे क्या सोचा होगा?
शायद यही कि दुनिया में प्रेम और शांति के किसी मसीहा की मौत हो गई है। कितने लोग खबर की तह तक गए होंगे? जबकी मीडिया के लोग सुनियोजित तरीके से एक ऐसे इंसान का महिमामंडन कर रहे थे जिसने सालों तक दुनिया में दहशत का माहौल बनाया रखा।
जिसने हजारों लोगों को विष्ठापित कर दिया, मासूम छोटी-छोटी बच्चियों को हजारों की संख्या में यौनदासी बनाया और न जाने कितने मासूमों की जान ले ली, वो भी सिर्फ मजहब के नाम पर?

देखा जाए तो इस लिस्ट में वॉशिंगटन पोस्ट ही शामिल नहीं है, बहुत सारे मीडिया संस्थान हैं जो चाह कर भी अपने मन का शोक छुपा नहीं पा रहे हैं।
दुनिया को इस आतंकी संगठन के बारे में आगाह करने की जगह, बीबीसी हमेशा से ही लोगों को भ्रमित करने वाली खबरें ही प्रकाशित करता रहा है। लगता है यह मीडिया संस्थान कभी भी बगदादी को आतंकी मानते ही नहीं थे।
हमेशा इन्होंने अपने खबरों और लेखों में उसे लीडर कह कर संबोधित किया है, बीबीसी ने अपने सभी आर्टिकल में बगदादी को इतना सम्मान दिया है मानो वो कोई संत या महात्मा हो।
बगदादी के मारे हुए अभी कुछ ही दिन गुज़रे हैं। एक बड़े चैनल ने तो इस्लामिक स्टेट का नया सरगना तलाशना भी शुरू कर दिया।
इन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं इस संगठन के आतंकी अब अनाथ न हो जाएं।

बीबीसी अपने लेख में लिखता है — 'बगदादी ‘कथित’ इस्लामिक स्टेट के ‘मुखिया’ थे, बगदादी का परिवार धर्मनिष्ठ था, बगदादी कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने जाते थे। वे रिश्तेदारों को सतर नजर से देखते थे कि इस्लामिक कानून का पालन हो रहा है या नहीं। वे क़ैदियों को इस्लाम की शिक्षा देते थे, बगदादी फुटबॉल क्लब के स्टार थे।'
ऐसे लेख शायद बीबीसी ने किसी महात्मा के मरने पर भी नहीं लिखे होंगे।
किंतु दूसरी तरफ यही लोग भारत के संवैधानिक पदों पर आसीन योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों के कट्टरपंथी लिखते हैं।
यानि एक आतंकी संगठन के मुखिया को इतनी इज्ज़त और किसी देश के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के लिए मिलिटेंट और कट्टर हिंदू जैसे शब्द।
यह काम सिर्फ वॉशिंगटन पोस्ट और बीबीसी जैसे संस्थान ही कर सकते हैं।

मामला यही तक नहीं, बल्कि भारत का एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल को बगदादी में एक महान फुटबॉल प्लेयर नज़र आ गया। इनके अलावा हमारे देश की कथित सेक्युलर मीडिया और नेताओं का बगदादी के मारे जाने पर कोई बयान नहीं आया।
लगता है ये लोग अभी उस सदमे से उबर नहीं पाए हैं। यह सब आज ही नहीं हुआ, याद कीजिए बुरहान वानी के बाद किस तरह उसे भी महिमामंडित किया था।
भारत की एक बड़ी पत्रकार बरखादत्त ने लिखा था कि एक स्कूल हेडमास्टर का बेटा बुरहान मर गया।
जहां देश की आम जनता ने एक आतंकी के मारे जाने पर राहत की सांस ली थी, वही वामपंथी मीडिया के एक बड़े वर्ग ने तुरन्त ही बुरहान को रूमानीत का लिहाफ ओढ़ाना शुरू कर दिया था।

देश की जनता का ध्यान इस्लामिक कट्टरवाद और आतंकवाद से हटाने के लिए, बुरहान को पोस्टर बॉय से लेकर भगत सिंह तक की उपमाओं से नवाज़ने की घृणित कोशिशें होने लगीं।
यह बात हम लोगों की समझ से परे की है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि दुनिया का एक तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग एक घोषित आतंकी के प्रति सहानुभूति रखता हुआ दिख रहा है।
दरअसल आतंकवादियों को शहादत जैसे शब्द का जामा पहनाकर और मानवतावाद के तराजू में तौल कर, हर जगह संप्रभु राष्ट्रों की खिलाफ़त उठाई जा रही है।
क्योंकि आज वामपंथ को अपना अस्तित्व समाप्त हो जाने का डर है। डरे हुए वामपंथी किसी भी तरह से दुनिया से लोकतंत्र को असफल और अस्थिर करने की फिराक में इस्लामिक आतंकवाद से हाथ मिलाने को तैयार दिख रहे हैं।
क्योंकि दोनों ही विचारधाराएँ साम्राज्यवादी अवधारणा में विश्वास रखती हैं।
इसलिए वर्तमान वामपंथ और सक्रिय इस्लाम आपको एक ही कोने में बैठे दिख रहे हैं।

 

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