जेएनयू में बवाल ने खड़े किए कई संगीन सवाल।


Author
Vinay AryaDate
25-Nov-2019Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
721Total Comments
0Uploader
RajeevUpload Date
25-Nov-2019Top Articles in this Category
- फलित जयोतिष पाखंड मातर हैं
- राषटरवादी महरषि दयाननद सरसवती
- सनत गरू रविदास और आरय समाज
- राम मंदिर भूमि पूजन में धर्मनिरपेक्षता कहाँ गई? एक लंबी सियासी और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगस्त को पू...
- बलातकार कैसे रकेंगे
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी फीज़ विवाद गहराता जा रहा है। जहां कुछ लोग यूनिवर्सिटी को बंद करने की सलाह दे रहे हैं, वहीं कई लोग इसकी फीज़ वृद्धि को गलत बता रहे हैं। तो कई लोग इस तर्क के आधार पर इसे सही बता रहे हैं कि केवल 10 रुपये में कोई कैसे हॉस्टल में रह सकता है। उनके तर्क के अनुसार अगर हॉस्टल फीज़ को 10 से बढ़ाकर 300 रुपये किया गया है, तो इसमें इतनी हाय-तौबा मचाने की क्या ज़रूरत है। यह कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि कई सालों से हॉस्टल फीज़ में कोई वृद्धि नहीं हुई थी। जबकि छात्र हॉस्टल फीज़ में बढ़ोतरी के खिलाफ पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।
पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीज़ की वृद्धि गई थी, जिसे अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू करने का ऐलान किया गया है। उसमें जेएनयू के छात्रों में रहने वाले छात्रों के लिए फीज़ लगभग 27,600-32,000 रुपये वार्षिक से बढ़ाकर 55,000-61,000 रुपये वार्षिक तक होने का अनुमान है। हालांकि अब इसमें कुछ कटौती का ऐलान किया गया है।
इसी कशमकश का नतीजा है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने एक बार फिर मीडिया के साथ ही आम लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। जेएनयू के छात्रों का समर्थन मार्च हुआ — यह मार्च रात को जाकर तब खत्म हुआ जब पुलिस ने हिरासत में लिए गए छात्रों को रिहा किया। छात्रों की ओर से कहा गया कि हमारा विरोध खत्म नहीं हुआ है लेकिन पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए छात्रों को रिहा किए जाने के बाद हम वादे के अनुसार कैंपस लौट रहे हैं। इस विरोध का भविष्य क्या होगा यह बात में तय किया जाएगा।
असल में आज जेएनयू की बात आते ही दिमाग़ में सबसे पहले चरित्रहीनता और राष्ट्रद्रोह की बातें तैरने लगती हैं। वर्षों तक अच्छी शिक्षा के लिए ख्याति बटोरने वाला जेएनयू आज लोगों की नजर में लाल सलाम, देशद्रोह का अड्डा बना हुआ है। तो इस बढ़ी फ़ीस के विरोध में मार्च करने वाले छात्र-छात्राओं की नजर में कोई खास महत्व नहीं रखते लोगों को लगता है अगर फ़ीस 300 से बढ़ाकर तीन हजार भी कर दी जाए तो हमें इससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। जेएनयू की ये छवि क्यों बनी, इसके लिए मीडिया जिम्मेदार है या छात्र? इसकी थाह में जाना आज बेहद ज़रूरी है।
जेएनयू का पिछले कुछ सालों यद्यपि अतीत देखा जाए तो लाल इंटों वाले, बिना पलस्तर की उन बिल्डिंगों के पीछे जो जो हुआ, उसे लेकर इतनी चर्चा हुई कि आज लोगों को जेएनयू शिक्षण संस्थान से ज्यादा सेक्स और राजनीति का अड्डा नजर आता है। इसकी शुरुआत हुई साल 2009 में, जब जेएनयू में सामूहिक और ताप्ती हॉस्टल में रैगिंग को लेकर बवाल हुआ था। इस घटना से पहले तक जेएनयू की काफी इमेज सुथरी थी।
इसके बाद साल 2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों द्वारा किए हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए। इस घटना के बाद देशभर में गुस्से की तीव्र लहर दौड़ उठी थी। तो वहीं कहा जाता है कि जेएनयू में इस हमले के बाद जश्न शुरू हुआ था। इंडिया मुर्दाबाद, माओवाद ज़िंदाबाद के नारे यहां के कुछ छात्र दे रहे थे। इससे जेएनयू का माहौल काफी गरम हुआ था।
इसके बाद जैसे देश में मोबाइल क्रांति का दौर आया तो इसी दौरान जेएनयू से एक सेक्स टेप वायरल हुआ था। कथित तौर पर जेएनयू के एक छात्र और छात्रा ने वहां के हॉस्टल में शारीरिक संबंध बनाए थे और उनका ये वीडियो कैंपस में वायरल हो गया। इसके बाद इंटरनेट पर 'जेएनयू सेक्स टेप सर्च लिस्ट' में ऊपर आने लगा। एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी, जहां से स्कॉलर निकलते हैं और जहां पर लोग पढ़ना चाहते हैं, वहां से ऐसा टेप सामने आने से लोगों के लिए आश्चर्य और घृणा की बात बन गई।
इन दो घटनाओं के बाद लोगों की नजरों में जेएनयू छवि बदलने लगी थी। देश की आम जनता ने इस बात को बिल्कुल किनारे कर दिया कि ये घटनाएं महज़ एक अपवाद थीं कि किसी ने जवानों के बलिदान का जश्न मनाया या किसी दो छात्र-छात्रा का वीडियो बनाया गया और उसे वायरल किया गया। जनता की नजर में ये घटनाएं नैतिक अपवाद बन गई थीं। ये वो दौर था जब एमएमएस खूब बनते थे और फैलाए जाते थे। कैमरे वाले फोन तब सबके हाथों में नहीं पहुंचे थे और न ही इंटरनेट इतना सस्ता था।
इसके बाद दिसम्बर 2012 में दिल्ली में निर्भया रेप के रूप में जघन्य कांड हुआ और दिल्ली के अन्य छात्र-छात्राओं के साथ जेएनयू के छात्र-छात्राएं भी सड़कों पर उतर आए। टीवी और सोशल मीडिया पर पुलिस और नेताओं से झड़पती लड़कियां लोगों को नजर आईं। पहले ही निर्भया के लिए लोगों के मन में सम्मान था पर एक प्रगतिशील समाज को चल्लाती-लड़कियां पसंद नहीं आईं। जेएनयू की लड़कियों को एक ‘महिला’ नहीं समझा गया और उन्हें एक पंक्तिबद्ध नारी के तौर पर देखा जाने लगा। क्योंकि इससे पहले जेएनयू वीडियो देश में घूम चुकी थी। उन्हें इस नजरिए से देखा गया कि जेएनयू की लड़कियां तो कम कपड़े पहनती हैं। सिगरेट भी पीती हैं और पुरुषों से झगड़ती भी हैं। उनके पुरुष मित्र भी हैं और वो उन्हें छोड़ भी देती हैं। ऐसी न जाने कितनी कहानियां धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर फैलने लगीं।
इसके बाद एक ऐसी घटना घटी कि जेएनयू का पूरा चेहरा ही बदल गया। साल 2014 में एक लड़के और लड़की के खुलेआम प्रेम का प्रदर्शन जब हमारे समाज ने इसे भारतीय संस्कृति एवं नैतिकता से जोड़ा तो इस पर शर्मिंदा होने के बजाय उस जोड़े के पक्ष में जेएनयू के छात्र-छात्राएं उठ खड़े हुए और किस ऑफ लव प्रोटेस्ट के नाम सड़कों पर प्रेमी-प्रेमिकाएं एक-दूसरे को चूमते नजर आए।
इस घटना ने भी जेएनयू के छात्र-छात्राओं की इमेज को पब्लिक के दिमाग में धूमिल किया। जेएनयू जो मुक्त विचारधारा के लिए जाना जाता था वह खुलकर वामपंथ के लाल किले के रूप में परिवर्तित हो गया। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद वामपंथ ने खुलकर खेलना शुरू किया और जेएनयू को एक विचारधारा के बजाय अपने राजनीतिक एजेंडे के तौर पर इस्तेमाल करने लगा। इसके बाद साल 2016 में अफज़ल गुरु की फांसी की बरसी जेएनयू में मनाई गई। देश विरोधी प्रदर्शन के दौरान जेएनयू के छात्र-छात्राओं पर टीवी चैनलों ने ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ होने का तमगा लगा दिया।
उसी साल जेएनयू के 11 अध्यापकों ने डिपार्टमेंट ऑफ सेशनिज़्म एंड टेररिज़्म नाम से दो सौ पृष्ठों का एक डॉक्यूमेंट तैयार किया। इसमें कथित तौर पर बताया गया था कि कैसे जेएनयू में सेक्स और ड्रग्स की भरमार है। इंडिया टुडे की इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर अमिता सिंह ने कहा कि जेएनयू के मेस में सेक्स वर्कर्स का आना सामान्य बात है।
इस रिपोर्ट के आने के बाद जनता की सारी कल्पनाओं पर मुहर सी लग गई। इसके बाद कई बार फिर से यह मामला चर्चा में रहा, उमर खालिद, इत्यादि की तमाम तरह की तस्वीरें वायरल हुईं और जेएनयू की शाख़ देशभर में गिर गई। इसी दौरान सोशल मीडिया पर यहाँ तक कि खबरें चलने लगीं कि मकान मालिक जेएनयू के छात्र-छात्राओं को किराये पर कमरे देने से इनकार कर रहे हैं। कहने को अतिशयोक्ति में पहले ही जेएनयू से कितनी सरकारी अधिकारी और रिसर्चर निकलें भले हों, इकॉनॉमिक्स में नोबेल प्राइज लाने वाला इस संस्थान से निकला हो या यहाँ से देश के कई बड़े नेता निकले हों। लेकिन यह भीतरी दौर की बात हो गई। आज वर्तमान में लोगों के जेहन में जेएनयू की इमेज में किसी पॉर्न साइट और देशद्रोह के अड्डे से कम नहीं है।
इसी का परिणाम है कि फ़ीस वृद्धि के विरोध में सड़क पर चिल्लाते छात्र-छात्राएं लोगों की सहानुभूति नहीं बटोर पा रहे हैं।
ALL COMMENTS (0)