स्वामी रामदेव और पेरियार — ये है असली टकराव।


Author
Vinay AryaDate
25-Nov-2019Category
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वामपंथियों द्वारा धर्म, संस्कृति और देश पर किसी भी वैचारिक हमले की क्रिया को फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है। इससे उन्हें किसी भी प्रकार की निंदा, स्त्र के बात या किसी के विरुद्ध करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। लुटियन बैक संस्कृति उनके अपशब्दों पर अट्टहास करती है। बड़ी बिंदियां, गेंग निकलेकर, सामने आता है और सोशल मीडिया पर मुसलिम और ईसाई चंदे से यूट्यूब पर चल रही करीब 105 चैनलों का नेटवर्क और संगठन की बात की जाती है।
हाल ही में योगगुरु स्वामी रामदेव ने रिपब्लिक टीवी को एक इंटरव्यू दिया और इसमें ईश्वर को शैतान कहने वाले कथित मूलनिवासियों के आराध्य पेरियार का नाम लेते हुए कहा कि हमारे देश के लिए लेनिन और मार्क्स कभी आदर्श नहीं हो सकते। मैं अंबेडकर के संकल्पों का पोषक हूं, लेकिन उनके चेलों में मूल निवासी कॉन्सेप्ट चलाने वाले लोग हैं। मैं दलितों से भेदभाव नहीं रखता, मगर वैचारिक आतंकवाद के खिलाफ देश में कानून बनाना चाहिए। ऐसे सामर्थ्य को सोशल मीडिया पर बैन कर दिया जाना चाहिए।
स्वामी रामदेव के इस बयान के बाद सोशल मीडिया के विशिष्ट वामपंथी टूलकिट के नीचे बैठे हुए वामपंथी ट्रोलाचार्य एक्टिव हो गए। उनका मुख्य मोबाइल स्क्रीन से आते हुए प्रकाश दमक उठा। वामन मेश्राम जैसे लोग इस बयान पर कूद पड़े और स्वामी रामदेव के खिलाफ एक दुश्प्रचार का खेल शुरू कर दिया। सभी ने फ्लैश सहित छायाचित्र खींचकर एक-दूसरे का प्रकाशाभिषेक किया। बामसेफ के राष्ट्र विरोधी वामन मेश्राम ने पंजाब में एक कार्यक्रम के दौरान स्वामी रामदेव को चेतावनी देते हुए कहा है कि स्वामी रामदेव हमें वैचारिक आतंकवादी बता रहे हैं। वामन धमकी देते हुए कहता है — यह समझाने का समय नहीं है। अगर, समय होता तो मैं बता देता कि बाबा रामदेव क्या कहना चाहते हैं।
हालांकि बाबा रामदेव जी के पक्ष में भी लोग सामने आए और कहा — यह देश संविधान और लोकतंत्र से चलेगा, यहाँ किसी को आतंकित करके तुम कुछ हासिल नहीं कर सकते। पतंजलि कोई ट्वीटर नहीं जो तुम्हारी गुंडागर्दी से झुक जाए।
लेकिन वामपंथी कथित बौद्धिक समूह, मूलनिवासी गैंग वामन के भक्त लगातार वामपंथ के प्रचारकों के शब्दजाल का रहस्यमय विस्तार कर रहे थे।
इस पूरे प्रसंग को जानने और समझने के लिए पेरियार के बारे में जानना अत्यावश्यक है — आखिर किस कारण बाबा रामदेव को पेरियार और उनके समर्थकों पर हमला करना पड़ा। असल में, मूलनिवासी गैंग के प्रणेता पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 को पच्चिम तमिलनाडु के इरोड में एक संपन्न परिवार में हुआ था। इसका पूरा नाम इरोड वेण्कट रामास्वामी नायकर था। लोग उन्हें पेरियार कहकर बुलाते थे, जिसका अर्थ था ‘महान’। इसी कथित 'महान' ने अपने जीवनकाल में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम है सच्ची रामायण। हालांकि पुस्तक को 14 सितंबर 1999 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अश्लीलता और तौहीन पर प्रतिबंधित कर दिया था। क्योंकि यह पुस्तक पेरियार की गंदी कल्पनाओं से भरी पड़ी है।
अगर पुस्तक के कुछ अंश आप लोग पढ़ेंगे तो आपको गुस्से के साथ-साथ मूलनिवासी गैंग की बौद्धिकता पर तरस भी आएगा। पेरियार अपनी स्वयं लिखित ‘रामायण’ में लिखते हैं कि उच्चित व्यवहार और सम्मान न मिलने के कारण सुमित्रा और कौशल्या दशरथ की देखभाल पर विशेष ध्यान नहीं देती थीं। जब दशरथ की मृत्यु हुई, तब भी वे सो रही थीं और विलाप करती दासियों ने जब उन्हें यह दुखद ख़बर दी, तब भी वे बड़े आराम से उठकर खड़ी हुईं। पेरियार लिखते हैं कि इन आर्य महिलाओं को देखिए — अपने पति की देखभाल के प्रति भी वे कितनी लापरवाह थीं।
पेरियार अपनी रामायण में श्रीराम में कमियाँ निकालते हैं कि रावण को वे बिल्कुल दोषमुक्त मानते हैं। वे कहते हैं कि रावण महान पंडित, महायोद्धा, सुन्दर, दयालु, तपस्वी और उदार हृदय जैसे गुणों से विभूषित था। सीताहरण के लिए रावण को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन पेरियार कहते हैं कि वह सीता को जबरदस्ती उठा कर नहीं ले गया था, बल्कि सीता स्वेच्छा से उसके साथ गई थी। इससे भी आगे पेरियार यह तक कहते हैं कि सीता अजनान व्यक्ति के साथ इतनी चलाकी से चली गई थी, क्योंकि उसकी प्रकृति ही चंचल थी और उसके पुत्र लव-कुश रावण के संसर्ग से ही उत्पन्न हुए थे।
पेरियार भारत और माता सीता के संबंधों को लेकर अपनी रामायण में लिखते हैं कि जब राम ने वन जाने का निर्णय किया, तो सीता ने अयोध्या में रहने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि मैं भारत के साथ नहीं रह सकती, क्योंकि वह मुझे पसंद नहीं करता। पेरियार लिखते हैं कि भारत सीता से सीधा-सीधा सीता के चरित्र पर उंगली उठाता रहता था।
पेरियार आगे लिखते हैं कि सीता हिरे जवाहरात के आभूषणों के पीछे पागल रहती थी। राम जब उससे अपने साथ वन जाने को तैयार हो जाने को कहते हैं, तो उसे सारे आभूषण उतार कर वहीं रख देने को कहते हैं। लेकिन सीता चोरी-छिपे कुछ अपने साथ भी रख लेती है। यानी अपने पति की आज्ञा की भी अवहेलना कर सकती है, यह भी जताता है कि वह गहनों के लिए अनैतिक समझौते भी कर सकती है।
पेरियार ने माता सीता को झूठी लिखा कि वह उम्र में बड़ी होकर भी राम को तथा रावण को अपनी उम्र कम बताती है। उसकी आदत उसके चरित्र पर शंका उत्पन्न करती है। यही नहीं, पेरियार अपनी रामायण में लिख गया कि सीता ने लक्ष्मण को राम की रक्षा के लिए भेजना ही नहीं चाहा, जिससे वह अकेली हो और स्वेच्छा से रावण के साथ जा सके।
बौद्धिक आतंकी हद देखिए — आगे लिखा है कि एक बाहरी व्यक्ति (रावण) आता है और सीता के अंग-प्रत्यंगों की सुंदरता का वर्णन करता है, यहाँ तक कि स्तनों की स्थूलता और गोलाई का भी वर्णन करता है, और वह चुपचाप सुनती रहती है। इससे भी उसकी चारित्रिक दुर्बलता प्रकट होती है।
ऐसे न जाने कितनी घृणित सोच पेरियार अपनी रामायण में लिख जाता है। स्पष्टतः यह तिरूपति तिरल गलियारों बनाने की साजिशें और भारत की राजसत्ता पर कब्जे का सपना देखने वाले वामपंथी, कथित ‘मूलनिवासी’ खुश-खुश एक-दूसरे को सुनाते और चटकारे लेते हैं। कारण — आज बाबासाहेब के कंधे पर बैठकर वेटाल की तरह लटकने वाले ये मुस्लिम और ईसाई संगठन भी खुश हैं। क्योंकि वैदिक संस्कृति और भारतीय महापुरुषों को मिटाने का जो काम वह कभी नहीं कर पाए, वह काम पेरियार की कलुषित विचारधारा को आगे बढ़ाकर, चंदे के लालच में उनके पालित बनकर कर रहे हैं।
अगर बाबासाहेब रामदेव जी इन्हें वैचारिक आतंकी न कहें तो क्या कहें?
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