नार्वे में कुरान क्यों जला रहे हैं प्रदर्शनकारी?


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Rajeev ChoudharyDate
02-Dec-2019Category
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पिछले कुछ दिनों से यूरोपीय देश नॉर्वे में इस्लाम के खिलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। लोगों का आरोप है कि नॉर्वे का इस्लामीकरण हो रहा है। इस्लाम के खिलाफ़ हुई रैली में एक व्यक्ति लार्स थोर्सन ने क़ुरान जलाया, जिसके बाद हंगामा शुरू हो गया। इसके बाद विरोध-प्रदर्शन कर रहे गुट और इस्लाम समर्थक गुट के बीच जमकर झड़प हुई। ये घटना नॉर्वे के क्रिस्टियानसैंड की है। अभी हाल ही में पुलिस ने ही इस्लाम विरोधी रैली करने की इजाजत दी थी।
इंटरनेट पर वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि जब थोर्सन क़ुरान जला रहे होते हैं, तब एक व्यक्ति उन पर अचानक से झपटता है और ऐसा करने से रोकता है। ये घटना (नवंबर 16, 2019) की है। प्रदर्शनकारियों ने क़ुरान की एक प्रति को जलाया गया और 2 अन्य पुस्तकों को कूड़ेदान में डाल दिया गया। इतना ही नहीं, प्रदर्शनकारियों ने इस्लाम को हिंसा का मजहब बताते हुए पैग़म्बर मुहम्मद के खिलाफ़ आपत्तिजनक नारेबाज़ी की। नॉर्वे में मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। नॉर्वे के कई लोगों का मानना है कि इस्लाम तानाशाही वाला मजहब है और जहां भी जाता है, वहां के लोकतंत्र और कानून की इज्जत नहीं करता।
नॉर्वे में इस्लाम के खिलाफ़ ये प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं, यदि इसके पीछे गहराई से विश्लेषण किया जाए तो सिर्फ़ नॉर्वे ही नहीं, बल्कि पिछले अनेक दशकों ने दुनियाभर के कई मुस्लिम समुदायों में यह एहसास ताज़ा कर दिया है कि इस्लाम का आतंकी बायकॉट दुनियाभर में बढ़ चुका है। पिछले तीन से चार साल की राजनीतिक घटनाओं ने इन सबमें बड़ी भूमिका निभाई है। नॉर्वे के आतंकीवाद विश्लेषक थोमस हेगहामर अमेरिकी सरकार के सलाहकार रहे हैं। उनके मुताबिक, समय के साथ दुनिया के धर्मों ने भी विकास किया, लेकिन ग्लोबल दुनिया में इस्लाम प्रायः रूढ़िवादी रूप से जड़ बना रहा। इसका कारण वह असहज महत्त्वाकांक्षा करता है और हिंसक हो जाता है।
देखा जाए तो आज यूरोप में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से विस्तार कर रही है। अगर यह संख्या बहुमत में हुई, तो तब यूरोप के सामने तीन रास्ते ही बचते हैं — सधावनापूर्ण आत्मसातिकरण, मुसलमानों को निकालना या फिर यूरोप पर इनका नियंत्रण हो जाना। इन परिस्थितियों के सन्दर्भ में स्पष्ट स्थिति कौन सी है, यह यूरोपीयवासियों को सोचना होगा। लगता है हमलों और खूनी खेल की आहट अपनी दहलीज़ पर देख यूरोपीय भी खुद को असहज महसूस करने लगे हैं। फ्रांस, बेल्जियम, नॉर्वे, जर्मनी, वेस्टमिनिस्टर, मैनचेस्टर, एरीना और लंदन में वाले हमलों के बाद लोगों ने खुलेआम मुसलमानों को कसूरवार ठहराना शुरू कर दिया है।
पिछले कई सालों से यूरोपीय देशों में आम जनजीवन पर लगातार आतंकी हमले हो ही रहे थे। अचानक फ्रांस के चर्च में हुए एक हमले में पादरी की गला रेत हत्या ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी थी। इसमें हैरानी की बात यह थी कि ये हत्यारे स्कूल जाने वाले दो लड़के थे, जिन्होंने एक बार फिर चौकाने वाली बात यही सामने लाई थी कि चर्च में पादरी का गला रेतने के बाद ये हत्यारे ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्लाते हुए भाग रहे थे। इस घटना को यूरोप को सीधे इस्लामिक समुदाय की धार्मिक भावना पर भी हमला कहा जा सकता है।
दूसरा, मुसलमान यूरोप को धर्मांतरण और नियंतरण के परिपक्व महाद्वीप मानते हैं। पिछले दिनों इस्लामिक धर्मगुरु उमर बकरी मोहम्मद ने कहा था — “मैं ब्रिटेन को एक इस्लामी राज्य के रूप में देखना चाहता हूं। मैं इस्लामी ध्वज को 10 डाउनिंग स्ट्रीट में फहराते देखना चाहता हूं।” या फिर बेल्जियम मूल के एक इमाम की भविष्यवाणी — “जैसे ही हम इस देश पर नियंत्रण स्थापित कर लेंगे जो हमारा आलौचना करते हैं वो हमसे क्षमा याचना करेंगे, उन्हें हमारी सेवा करनी होगी, उनकी और हमारी रखैल होंगी, तैय्यारी करो, समय निकट है।” इन बयानों के बाद यूरोपीय लोग अब ऐसी स्थिति का चित्र बनाते नजर आते हैं जहाँ अमेरिका की नौसेना के जहाज़ यूरोप से यूरोपीय मूल के लोगों के सुरक्षित निकास के लिए दूर-दूर तक तैनात खड़े होंगे।
घटना क्रम और बयानों के बाद यूरोपी जनजीवन पर पैनी नज़र रखने वाले प्रोफेसर थॉमस होमर-डिक्सन कहते हैं कि इस्लामिक शरणार्थी यूरोप के लिए चुनौती बड़ी है। क्योंकि ये मध्य-पूर्व और अफ्रीका के अस्त-व्यस्त इलाकों के करीब हैं। यहां की उठापटक और आबादी की भगदड़ का सीधा असर पहले यूरोप पर पड़ेगा। हम आतंकी हमलों की शक्ल में ऐसा होता देख भी रहे हैं। अमेरिका, बाकी दुनिया से समंदर की वजह से दूर है इसलिए वहां इस उठापटक का असर देर से होगा। जब अलग-अलग धर्मों, समुदायों, जातियों और नस्लों के लोग एक देश में एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे, तो झगड़े बढ़ेंगे। पश्चिमी देशों में शरणार्थियों की बाढ़ आने के बाद यही होता दिख रहा है। वहीं कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि हो सकता है पश्चिमी सभ्यताएं खत्म ना हों, लेकिन उनका रंग-रूप जरूर बदल जाएगा। लोकतंत्र, उदार समाज जैसे फलसफे मिट्टी में मिल जाएंगे। चीन जैसे अलगतांत्रिक देश, इस मौके का फायदा उठाएंगे। ऐसा होना भी एक तरह से सभ्यता का पतन ही कहलाएगा। किसी भी सभ्यता की पहचान वहां के जीवन मूल्य और सिद्धांत होते हैं। अगर वही नहीं रहेंगे, तो सभ्यता को जिंदा कैसे कहा जा सकता है? यह आज यूरोपीय लोगों के लिए सबसे बड़ा सवाल है।
शायद इसी भय के कारण पिछले दिनों ऑस्ट्रिया के लोगों में शॉटगन खरीदने को होड़ सी मच गई है। नॉर्वे में प्रदर्शन हो रहे हैं। न्यूजीलैंड की मस्जिदों में हमला सबने पिछले दिनों देखा ही था जिसमें 50 के करीब नमाजियों की हत्या कर दी गई थी। अमेरिका के राज्य टेक्सास में कट्टरपंथियों के एक गुट ने मुसलमानों के विरुद्ध हथियार लेकर रैली निकाली थी। पाकिस्तान मूल के एक अमेरिकी दंपति ने एक मासूम सभा में अमेरिका में विमान से उतार दिया गया था क्योंकि उनके ‘अल्लाह’ कहने और फोन पर एसएमएस करने से विमान में सवार क्रू की एक सदस्य ‘असहज’ महसूस कर रही थी। इसके बाद गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक के अनुसार इस्लाम दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। चाहें यह बढ़ोतरी धर्मांतरण के वजह से हो या जनसंख्या वृद्धि से! ऊपर से सारी खबरें कहीं ना कहीं आपस में जुड़ी सी दिखाई दे रही हैं।
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