उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ हिंसा में PFI का नाम प्रमुखता से सामने आया है। राज्य में सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में भीड़ भड़काने, आगज़नी और गोलीबारी करने में सक्रिय कट्टरपंथी समूह पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की भूमिका का भी खुलासा हुआ है। इस कारण यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार बड़ा निर्णय लेने जा रही है। योगी सरकार ने हिंसा के मुख्य साजिशकर्ता इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर निकट भविष्य में प्रतिबंध लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।

कुछ वर्ष पहले सिमी यानी स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया भारत में प्रतिबंधित एक मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन गिना जाता था। जब कई आतंकी घटनाओं में सिमी का हाथ पाया गया तो सरकार ने 2006 में इस पर प्रतिबंध कर दिया था। उसके फ़ौरन बाद ही शोषित मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के अधिकार के नाम पर PFI का निर्माण किया गया था। संगठन की कार्यप्रणाली सिमी से मिलती जुलती थी।

आज उत्तर प्रदेश में PFI के बैन की मांग तेज़ है मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब संगठन को बैन करने की बात हुई है।

संगठन को बैन किए जाने की मांग 2012 में भी उठी थी। दिल्ली पुलिस का कहना था कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआई का बचाव करते हुए अजीब और गरीब दलील दी थी कि यह सभी संगठनों का संगठन है, जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है। जब कि पीएफआई कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लव जिहाद से लेकर दंगा भड़काने, शांति को प्रभावित करने, लूटपाट करने और अनकों हत्याओं में इसके कार्यकर्ताओं का नाम आ चुका है। माना जाता है कि संगठन एक आतंकी संगठन है, जिसके तार कई अलग-अलग संगठनों से जुड़े हैं। संगठन की जड़ें केरल की कैलीकट से हुई और इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में स्थित है। यानी अब आप समझ गए होंगे कि सिमी ही पीएफआई है।

यूं तो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया 2006 में केरल में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट एंड एनडीएफ के मुख संगठन के रूप में शुरू हुआ, लेकिन जुलाई 2010 में पीएफआई तब सुर्खियों में आया, जब इस संगठन के 13 कार्यकर्ताओं ने इस्लाम के अनादर का आरोप लगाकर एक प्रोफेसर का हाथ काट डाला था। इसके बाद कर्नाटक में आतंकी कैंप लगाना, जहां से एनआईए ने कथित रूप से तलवार और बम जब्त किया था, बेंगलुरु में आरएसएस नेता रुद्रेश की हत्या और दक्षिण भारत में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से जुड़े संगठन अल-हिंद के सहयोग से हमले करने की योजना बनाना शामिल पाया गया था। वर्ष 2012 में केरल सरकार ने केरल हाईकोर्ट को बताया था कि पीएफआई पर हत्या के 27 और हत्या के प्रयास के 86 और सांप्रदायिक दंगों के 106 मामले दर्ज हैं। इसमें अखिल भारतीय विध्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता एन सचिन गोपाल और विशाल की हत्या भी शामिल थी।

पीएफआई इस्लाम के तालिबान ब्रांड को भारत में लागू करना चाहता है। देखा जाए तो आज देश के 23 राज्यों में यह अपनी जड़ें जमा चुका है। नवम्बर 2012 में देश के विभिन्न हिस्सों में फिलीस्तीन-समर्थक विरोध प्रदर्शनों में भी देखा गया था और बाद में जुलाई 2014 में राष्ट्रव्यापी एकजुटता अभियानों को नाम दिया गया — 'मैं गाज़ा हूँ।' इसके बाद 2015 में मिस्र के कट्टर नेता मोहम्मद मुर्सी और उनके अनुयायियों को दी गई मौत की सजा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। नई दिल्ली में मिस्र के दूतावास के सामने यह विरोध प्रदर्शन हुआ।

यही नहीं, पीएफआई पर युवाओं को बरगलाकर आतंकवाद के लिए उकसाने व लड़कियों का ब्रेनवॉश करने के आरोप भी लगे हैं। केरल के लव जिहाद मामले में अखिला उर्फ़ हदिया के पिता ने आरोप लगाए थे कि जसीना, उसकी बहन फसीना और उनके पिता अबूबकर ने मिलकर अखिला को बहकाया और उसका जबरन धर्मांतरण करवाया है। यानी पीएफआई हिंदू महिलाओं का ब्रेनवॉश कर उनकी मुस्लिमों से शादी और धर्मांतरण करा रहा है। यदि आपराधिक रिकॉर्ड ब्योरा देखें तो केरल से (2007) में 2167, (2008) में 2530, (2009) में 2909, (2010) में 3232, (2011) में 3678 और (2012) में 4310 लड़कियां लापता हुई हैं। इन लड़कियों में से 3600 के बारे में पुलिस और जांच एजेंसियों तक को भी कोई जानकारी नहीं है।

इसके अलावा, असम में CAA के खिलाफ भड़की हिंसा के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता ने पिछले हफ्ते आरोप लगाया था कि कांग्रेस के एक धड़े ‘शहरी नक्सली’ और इस्लामी संगठन PFI के बीच "खतरनाक गठजोड़" हो सकता है, जिसने 11 दिसंबर को प्रदर्शन के दौरान राज्य सचिवालय को जलाने का प्रयास किया और गुवाहाटी में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दौरे के लिए बनाए गए मंच में आग लगा दी थी।

लेकिन जब-जब इस संदर्भ पर लगाम की बात उठी, तब-तब वामपंथी और कथित सामाजवादी संगठन और कार्यकर्ता इस्लाम को मासूम अल्पसंख्यक दिखाते हैं तथा ऐसा जाहिर करते कि भारत में मुसलमान बेहद कमजोर हैं। उसे ग़ायब का भी नहीं खाने दिया जा रहा है, न उसे हिन्दू लड़कियों से प्रेम करने दिया जा रहा है। उसके धर्म में रूकावट बन रहे हैं, उनकी मज़हबी आज़ादी छीनी जा रही है। लेकिन अब खुद उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार के इस फैसले की पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि PFI का हाथ हिंसा की तमाम घटनाओं में सामने आया है और इस संगठन में सिमी के लोग ही शामिल हैं। ऐसे में अगर सिमी भी रूप में उभरने का प्रयास करेगा तो उसे कुचल दिया जाएगा। इस बात में कोई शक नहीं है कि PFI ऐसा संगठन है जो कट्टरपंथ को प्रमोट करता है। मगर इसके बैन की बात यूपी में हुई में हुई है तो PFI बैन भाजपा कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों के लिए राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बनेगा।

तमाम दल होंगे जो तुष्टिकरण की आग में घी डालते हुए भाजपा की इस पहल का विरोध करेंगे। जैसा इस देश में राजनीति पर अलग अलग दलों का रुख है साफ़ होता जाता है। आगे आने वाले दिनों में पीएफआई पर बैन राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित करेगा और इसपर जमकर रोटियां सेंकी जाएंगी। बात का सार बस इतना है कि आगे आने वाले वक्त में पीएफआई पर बैन ही बड़ा मुद्दा रहेगा और और भाजपा पर सांप्रदायिकता के आरोप लगाए जाएंगे, लोग तर्कों में बताया जाएगा — संविधान बचाओ, जैसे नारे सुनने को मिल सकते हैं। हो सकता है इस संगठन को बचाने के लिए तमाम विपक्षी दल एक हो जाएं।

 

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