हमारे देश में एक खास वर्ग हर हफ्ते या हर महीने देश में नेता पैदा करता है, फिर मीडिया का एक खास तबका उसे चूमता-चाटता है और भारत की राजनीति के सुपरस्टार के तौर पर पेश करता है कि जाओ वक्त इस देश के खिलाफ जितना ज़हर उगल सकते हो उगलो, यदि कोई तुम्हारी ग़द्दारी पर ऊँगली उठाए तो उसे तुम्हें सही राइट विंगर या भक्त कहकर किनारे कर देना है। ये लोग धर्मनिरपेक्षता का कवच-कुंडल और सोशल मीडिया पर रायता फैलाने का काम तुम्हारे साथ हैं।

इसके बाद राजनीति की धारा पर दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाला टुकड़े-टुकड़े गैंग धप्पली बजाकर उसका स्वागत अभिनंदन करता है। ख़ैर, पिछले एक हफ्ते में सर्जिकल इमाम के बाद देश को स्टैंडअप कॉमेडियन कुनाल कामरा के रूप में एक और सौगात मिली है। काफ़ी उछल-कूद करने के बाद जब कुनाल कामरा को कोई जगह नहीं मिली तो उन्होंने सत्ता इलायची ढूँढा और विमाना यात्रा के दौरान जबरदस्ती अरनब गोस्वामी से चेप हो गया।

बस लाइमलाइट में आने के लिए इतना बहुचर्चित बाक़ी का काम शाम को NDTV पर प्राइम टाइम में परम्‌ध्यान, तपस्वी गुरु घंटाल श्री श्री श्री 1084 सत्‍यवादी राजा हरिश्चंद्र उनका महामंडित करके पूरा कर देता है। क्योंकि ये जानते हैं कि कैसे अफ़जल को गुरु और मोदी को चोर साबित करना है।

अच्छा, आपको क्या लगता है कभी अनुराग कश्यप, कभी स्वराभास्कर, दीपिका पादुकोण से लेकर सोना महापात्रा, सिन्हा हो या आलिया भट्ट — ये सब पिछले पांच साल में इतने सक्रिय हो गए कि इस देश के इतिहास, भूगोल, यहां के संविधान को बेहयाई से समझ लिया और लोकतंत्र के प्रति इतनी आस्था पैदा हो गई कि देश की हर घटना पर ये भाव विह्वल जाते हैं और फ़ौरन अपनी राय प्रकट कर देते हैं।

चलिए आज इसे समझते हैं कि यह सब क्यों और कैसे होता है — जो अभी तक फिल्म में पाकिस्तान से लेकर बड़े से बड़े गुँडों, मवालियों की छुट्टी कर देते हैं। आखिर उन्हें अचानक से दादरी में हुई एक मौत पर मुंबई के एक पॉश इलाके में सुरक्षित घर में डर लगने लगता है। और जो अभी तक एक कार्यक्षेत्र में भारत के राष्ट्रपति का नाम पृथ्वीराज चौहान बताते हैं, लेकिन वही अचानक सोशल मीडिया पर अनुछुए 14 पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं और देश के प्रधानमंत्री को हर हाल में गलत साबित करने की सलाह दे रहे हैं।

सोना महापात्रा से जब केबीसी की एक कड़ी में सवाल पूछा गया, ‘हुनरमंद जी संजीवनी बूटी किसके लिए लाने गए थे?’ सोना महापात्रा इसका जवाब न दे पाई थीं। लेकिन वही सोना महापात्रा सोशल मीडिया पर संविधान की प्रस्तावना साझा करते हुए लिख रही हैं — ‘हम क्या थे, क्या हो गए और अभी क्या होंगे?

सोचिए, सोनम कपूर को 52 सेकेंड का देश का राष्ट्रगान याद न हो, और जिस सोनम के राष्ट्रगान की एक पंक्ति में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आता हो — वह सोनम कपूर नारीवाद (संशोधित) अधिनियम की तुलनात्मक हिटलर की तानाशाही से कर रही हैं।

परिणीति चोपड़ा विदेशों में दोस्तों के किनारे फोटो पोस्ट देते अचानक दुखी हो जाती हैं ट्वीट करती हैं कि 'सीएए को भूल जाइए, हमें एक बिल पास करना चाहिए और अपने देश को लोकतांत्रिक कहना बंद कर देना चाहिए।

फरहान अख्तर लिखता है कि 'मिलते हैं 19 तारीख को मुंबई के क्रांति मैदान में।' दिया मिर्ज़ा लिखती है — 'मेरी मां हिंदू और पिता मुसलमान हैं। मैं धर्म को नहीं मानती, क्या मुझे अब साबित करना पड़ेगा कि मैं भारतीय हूं?' शाहरुख़ बोलता है — 'मेरी बीवी हिंदू है, मैं मुसलमान हूं और मेरे बच्चे हिंदुस्तानी हैं।'

कभी सोचा आख़िर क्यों अचानक से दीपीका पादुकोण मुंबई से हवााई यात्रा करके दिल्ली उतरती है और सीधे जामिया पहुंचती है? हुमा कुरैशी को दिल्ली पुलिस की कार्यवाही बर्बर दिखती है। सुशांत सिंह CAA के विरोध में सावधानीपूर्वक इंडिया हाउस धारावाहिक छोड़ने की धमकी देता है।

ऐसे जाने कितने ट्वीट और बयान पिछले कुछ सालों से आपने भी सोशल मीडिया पर देखे होंगे — यहाँ तक कि कभी-कभी केस के दौरान कुछ अभियुक्तों को तो हिंदू होने पर शर्म आने लगी थी।

अब इस पूरे किस्से को पूरे तरीके से समझने के लिए एक साल पीछे चलते हैं। एक साल पहले एक न्यूज़ एजेंसी ने करीब फ़िल्मी जगत से जुड़े 36 हस्तियों का स्टिंग किया था। उस दौरान यह बात सामने आई थी कि अधिकतर हस्तियों ने प्रति मैसेज दो लाख रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक का शुल्क मांगा था।

यानि जिस तरह फ़िल्मी हस्तियां बिना जांच-पड़ताल साबुन, तेल, कंघी, मैगी, शराब, सिगरेट, कोका कोला, बीमा पॉलिसी जैसी चीज़ें खुल्लम-खुल्ला बेचते हैं, उसी तरह वे पैसे लेकर ट्वीट भी करने लगे हैं। अगर पैसे कोई देश विरोधी या हिन्दूत्व विरोधी भी देगा तो इन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि सेक्युलर बनने का ढोंग दिखाकर कुछ भी किया जा सकता है।

अख़िर इस गेम में इनका चुनाव इस लिए किया जाता है क्योंकि इन फ़िल्मी सितारों के अकाउंट पर लाखों फॉलोअर हैं और दूसरा इनकी अपनी पब्लिक इमेज के चलते भी लोग इनके ओपिनियन से प्रभावित होते हैं। अगर नसिरूद्दीन शाह और आमिर ख़ान को डर लग रहा है, तो सब मुसलमानों को डर जाना चाहिए।

इसके बाद दूसरा कारण इन सितारों के लिए पैसा सर्वोपरि है। उसके लिए ये कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। इनमें से ज्यादातर वो लोग जिन्हें अब साबुन, शेम्पू, झाड़ू तक के विज्ञापन भी मिलने बंद हो गए हैं, जनमानस की स्मृति से लुप्त हो चुके हैं तो विरोध के बहाने थोड़ी बहुत फुटेज हासिल कर ही लेते हैं।

जरूरत है कि लोग इन्हें देशभक्त समाज सुधारक के तौर पर देखने से बचें। उन्हें उसी रूप में देखने की जरूरत है जैसे ये हैं — ये दिनभर कैमरों की चकाचौंध में रहते हैं, खाली वक्त में ये इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अपने कपड़ों, आभूषण की फोटो साझा करते रहते हैं। फिर अचानक कोई एक ट्वीट के दो लाख रुपये दे रहा हो तो इनका क्या जाता है।

 हीरो हो या हीरोइन, फिल्माें के पर्दे पर उसूलों का पालन करना, आदर्शवादी जीवन जीना और आदर्शवादी बातें करना इनके प्रोफेशन का हिस्सा है — न कि निजी जिंदगी का। इसके लिए ये बाकायदा पैसे भी लेते हैं। यदि राजनीत‍ि से लेकर देश विरोध या सरकार विरोध कर हाथ आज़माना है, या फिर पब्ल‍िसिटी के लिए कुछ ज्यादा मिलता है, तो ऐसा क्यों होगा?

यह युवा वर्ग ही है, जो इनकी फिल्मों को अपने दम पर हिट या सुपरहिट कराता है। ये इस वर्ग की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहते। अब आपको ही तय करना है कि क्या इस स्थिति में भी ये आपके रोल मॉडल हो सकते हैं? या ये महज उत्पाद हैं, जिनका उपयोग कीजिए और इसके बाद इन्हें फ्लश कीजिए।

क्योंकि जो लोग कुछ पैसे लेकर कैमरे के सामने अपने खुद के कपड़े उतार देते हों, वो भला इस भारत माता के आंचल की परवाह क्यों करेंगे?

 

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