कोरोना के कारण लगता है यूरोप से अब इसाईयत सिमटने वाली है। क्योंकि इसाईयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने विज़्ञान के सामने घुटने टेक दिए हैं। अब उन्हें अपने पारंपरिक और नन के बजाय डॉक्टर्स और नर्स में संत दिखाई देने लगे।

एक महीना पहले तक इटली की राजधानी में पोप कह रहे थे कि इस बीमारी के लिए वह स्वयं ईश्वर से बात करेंगे और पीड़ितों के लिए प्रार्थना करेंगे। इसके बाद पोप ने इटली के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को ख़ारिज कर दिया था।

अब लगता है गॉड की लाइन व्यस्त है और गॉड भी इनके इस अंधविश्वास से तंग आ चुका है। क्योंकि पीड़ितों के लिए प्रार्थना करने वाला पोप ही इसके बाद संक्रमित हो गया था। अब हॉस्पिटल से बाहर आकर पोप ने कहा कि कोरोना पीड़ितों के इलाज में जी जान से जुटे डॉक्टर और नर्स ही असली संत हैं।

हमने चाइना सभा और पार्थरियों की प्रार्थना से मरीज़ ठीक करने से ड्रामा के खिलाफ कई एपिसोड किए, हमने हमेशा यह कहा कि जब मरीज़ इनकी प्रार्थना से ठीक हो जाते हैं तो पोप क्यों बीमारी पढ़ते हैं, पहले के कई पोप क्यों गंभीर बिमारियों से मरे… जबकि वो तो खुद जीसस के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। आज खुद यूरोप के देश महामारी से जूझ रहे हैं वहां प्रार्थना के बजाय मेडिकल साइंस की मदद ली जा रही है… विश्वास डॉक्टरस पर किया जा रहा है न कि चर्च की प्रार्थना पर।

लेकिन इसके बाद भी भारत के शहरों और गांवों में इसी प्रकारियों द्वारा चंगाई सभा का प्रार्थना का नाटक चलता रहा और गरीब अनपढ़ लोगों को इसी बनाया जाता रहा।

चलो ये भी छोड़ दो, असल में वेटिकन सिटी का पोप हर वर्ष पार्थरियों और ननों को संत घोषित करता है। संत की घोषणा का प्रावधान यह है कि जब कोई नन या पार्थरी मरने के बाद दो मरीज़ के सपने में आकर उन्हें किसी भयंकर बीमारी से ठीक कर दे, तो उसे संत मान लिया जाता है… मानो सभी पार्थरी और नन सब मर्कर बस डॉक्टर हो जाते हैं… न कोई इंजीनियर बनता, न वैज्ञानिक और खिलाड़ी, सब के सब डॉक्टर!

आज हर किसी की आंखों में महामारियों का ख़ौफ़ है, तभी यह सवाल भी उभरकर सामने आया कि पिछले कुछ सालों से ईसाई मिशनरीज़ भारत में ग़रीबों को चंगाई सभा, प्रार्थना सभा लगा-लगाकर ठीक करने का ढोंग रही थीं। सिर्फ़ ठीक ही नहीं, बल्कि मरे हुए लोगों को ज़िंदा करने का स्वांग चल रहा था... आप खुद ये वीडियो देख लीजिए।

यह सब भारत के गरीबों के धर्मांतरण का कुचक्र था। आज जब उनके देशों में महामारी आई, तो डॉक्टर और नर्स सन्त हो गए। वरना हमारे यहां तो मदर टेरेसा सिस्टर अल्फोंसा, मरियम थ्रेसिया को सन्त बनाया गया है... हिमाचल से लेकर पंजाब और केरल तक चंगाई सभा लगा रहे थे। आज सब ग़ायब हैं।
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सितंबर 1997 को मदर टेरेसा का निधन होता है। इसके बाद 4 सितंबर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस द्वारा मदर टेरेसा को सन्त घोषित कर दिया जाता है। क्योंकि मदर टेरेसा दो बीमार लोगों के सपने में आईं और वो एकदम ठीक हो गए...
अगर मदर टेरेसा किसी के सपने में आकर ठीक कर सकती हैं, तो वो जब बीमार हुईं अपना इलाज क्यों नहीं किया..?

मदर टेरेसा टेरेसा ही क्यों भारत में सिस्टर अल्फोंसा के बाद थ्रेसिया को संत की उपाधि मिले, सिस्टर मरियम को संत इस कारण घोषित किया कि नौ महीने से पहले जन्मा एक बच्चा जिंदगी और मौत से जूझ रहा था.. डॉक्टरों ने एक विशेष वेंटिलेटर के जरिए एक खास दवा देने के लिए कहा था जो उस समय हॉस्पिटल में मौजूद नहीं थी.. बच्चा जब सांस लेने के दौरान हांफने लगा तब बच्चे की दादी ने उसके सीने के ऊपर एक क्रॉस चिपकाकर मरियम की प्रार्थना की कहा ऐसा करने के 20 के अंदर ही बच्चा एकदम स्वस्थ हो गया।

आज कहा गए वो क्रॉस के निशान कहा गईं मदर टेरेसा, सिस्टर मरियम और सिस्टर अल्फोंसा क्या आज वह प्रार्थना नहीं सुन रही हैं, हम तो भारत में पहले से ही ओझा, बंगाली बाबा झाड़-फूंक सयाने वाले की जमात से त्रस्त थे इसके बाद ये संत और आ गए

ख़ैर क्या अब वेटिकन का पॉप इतनी हिम्मत रखता है कि एक आदेश जारी करे — यूरोप में चल रहे सभी अस्पताल और क्वारंटाइन सेंटर और सभी स्वास्थ्य केन्द्रों को बंद करके उनकी जगह सिस्टर मरियम की प्रार्थना शुरू करा दी जाए.. सोचिए जब एक प्रार्थना में अधमरा बच्चा तुरन्त ठीक हो सकता है तो खांसी, जुकाम और बुखार और यह संक्रमण तो सेकंडों में ठीक हो जाएंगे!

या फिर एक प्रेस नोट जारी करें कि मरे हुए सभी संत वापिस आएं और सभी संक्रमण से पीड़ितों को ठीक करें — अगर कोई ऐसा नहीं करता तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होगी, उसकी संत की डिग्री निरस्त मानी जाएगी...

याद कीजिए थोड़े समय पहले केरल में जर्मनी सिस्टर अल्फोंसा को पोप ने सेंट पीटर्स में आयोजित भव्य समारोह में यह उपाधि प्रदान की थी... और वीडियो देखिए कि इस समारोह में एक भारतीय सरकारी प्रतिनिधिमंडल के अलावा लगभग 25,000 भारतीय नागरिक शामिल हुए थे... और सालों पहले कर्नाटक में दयानंद हो चुका नन के चमत्कार सेकुलर मीडिया बड़े गर्व से गुणगान कर रहा था।

लेकिन क्या वास्तव में धड़ाधड़ संत की उपाधि से नवाज़ी गईं एक के बाद भारतीय ननों का मिशन सेवा और चमत्कार ही था? गौर करने वाली बात है मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था की स्थापना करने वाली टेरेसा ने अपना पूरा जीवन भारत में बिताया, लेकिन जब भी पीड़ित मानवता की सेवा की बात आती थी तो टेरेसा की सारी उदारता प्रार्थनाओं तक सीमित होकर रह जाती थी। तब उनके अरबों रुपयों के ख़जाने से दवाइयां भी बाहर नहीं निकलता था.. भारत में सैकड़ों बार बाढ़ आई, भोपल में भयंकर गैस त्रासदी हुई, इस दौरान टेरेसा ने मदर मैरी के तावीज़ और क्रॉस तो खूब बांटे, लेकिन आपदा प्रभावित लोगों को किसी भी प्रकार की कोई फूटी कौड़ी की सहायता नहीं पहुंचाई...

आज भी रेलवे के बाद अगर देश में सबसे अधिक जमीन किसी के पास है तो इसाई संस्था के पास है लेकिन एक भी संस्था अब भारत में दिखाई नहीं दे रही हैं जैसे ही महा मारी पर हालात सामान्य होंगे सबसे पहले इनकी चंगाई सभा क्रॉस बांटते दिखाई देंगे कि प्रभु ने हमें बचाया है।

जहां तक मदर टेरेसा की मानव-सेवा की बात है, उसकी भी पोल उन्हीं के साथी अरुप चटर्जी ने अपनी किताब "मदर टेरेसा: द फाइनल वर्डिक्ट" में खोलकर रखी है... वो लिखते हैं कि मदर टेरेसा का सारा खेल मानव-कल्याण पर आधारित था, वे अपने आश्रमों में मरीज़ों, अपंगों, नवजात फेंके हुए बच्चों, मौत से जूझते लोगों को इसलिए नहीं लाती थीं कि उनका इलाज हो सके बल्कि इसलिए लाती थीं कि उनकी भयंकर दुर्दशा दिखाकर लोगों को कृपा की ज़रूरत की जा सके... उनके पास समुचित इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी और मरनेवालों के सिर पर पट्टी रखकर उन्हें वे छल-कपट से बपतिस्मा दे देती थीं याने ईसाई बना लेती थीं... मरते हुए आदमी से वे पूछ लेती थीं कि क्या तुमको स्वर्ग जाना है?

आज वह भारत की संत है ऐसे न जाने कितने संत ईसाईयत ने दुनिया में पैदा किये। आज जब उनके अपने लोग मर रहे हैं तो उनको डॉक्टर संत दिखाई दे रहे हैं। कल जब हालात सामान्य होंगे फिर इन्हें संत बनाकर दूकानदारियाँ चलती दिखाई देंगी..."**

- राजीव चौधरी

 

 

 

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