à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वैदिक संसकृति का मूल योग
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Manmohan Kumar AryaDate
09-Aug-2015Category
संसà¥à¤®à¤°à¤£Language
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Sandeep AryaUpload Date
14-Aug-2015Download PDF
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राजसथान के सीकर से सांसद और आरयसमाज के विखयात संनयासी सवामी समेधाननद सरसवती जी गरूकल पौनघा, देहरादून सन 2015 के वारषिकोतसव में पधारे। उनहोंने इस अवसर पर देश à¤à¤° से पधारे विशाल वैदिक धरम परेमी विशाल जन समदाय हो समबोधित किया। उनका दिया गया यह समबोधन पाठको की जानकारी के लि परसतत कर रहे हैं। परवचन से पूरव सवामी जी का गरूकल में आगमन पर à¤à¤µà¤¯ सवागत किया गया। सवामी जी ने अपना परवचन वेदमंतर ‘ओ३म अगने नय सपथा राये असमान विशवानि’ से आरमठकिया। सवामीजी ने कहा कि गरूकल की इस पावन तपसथली पर उपसथित गरूकल के आचारयगण, जिनहोंने गरूकल शिकषा पदधति के उदधार के लि अपना जीवन आहूत किया है से शरदधेय सनत सवामी परणवाननद जी महाराज, आरयजगत के उचच कोटि के विदवान डा. रघवीर जी, डा. जवलनत कमार शासतरी जी, माननीय शरी वेदपरकाश शरोतरिय जी, आचारय डा. सोमदेव शासतरी जी, कलसचिव महोदय, उततराखणड संसकृत विशवविदयालय और मंच पर उपसथित सà¤à¥€ विदवतजन, देश के कोने-कोने से पधारे सà¤à¥€ सजजनों, मातृ शकति और परिय बरहमचारियों ! शरदधेय सवामी परणवाननद जी का साननिधय मे परापत होता रहता है। सबसे बड़ी आपकी विशेषता आपने सौमयता के गण को धारण किया हआ है। क छोटा बालक à¤à¥€ आपके सामने आता है तो उसे आप परमारथ के à¤à¤¾à¤µ से देखते हैं। बड़े से बड़ा विदवान आपके पास आता है तो शरदधापूरवक उसे नमन करते हैं। परतयेक आरयबनध के साथ आप सनेह का à¤à¤¾à¤µ रखते हैं। उसी का परिणाम है कि पूरे देश में और विदेश तक, दनिया में जहां कहीं आप जाते हैं वहीं पर वैदिक वांगमय का परचार होता हआ दिखता है, वैदिक धरम की जयजयकार करता हआ मिलता है। पूरे विशव के अनदर जिस वयकति ने अपनी आà¤à¤¾ को फैलया है से लोग बहत कम मिलते हैं। आज का यह सममेलन विदयावरत सममेलन के नाम से आयोजित किया गया है। क सामानय विदयालय से लेकर विशवविदयालय के कारयकरमों में जाने का मे अवसर परापत होता है। देश के अनेक उतसवों में à¤à¥€ मे जाने का अवसर परापत होता है। आज मैंने करीब डेढ़़ से दो घंटे यहां बैठकर कारयकरम देखा है। इस पूरे कारयकरम में इस मंच के माधयम से बहमचारियों ने अनेक विषयों पर अपने विचार रखे हैं जिन विषयों को परसतत करने के लि बड़े-बड़े विदवानों को सवाधयाय करना पड़ता है, तब वह तथय व परमाणों सहित अपने विचारों को परसतत कर पाते हैं। इस गरूकल के बरहमचारी वेदी के ऊपर बैठकर कर वैदिक वांगमय के माधयम से अपने विचार परसतत कर रहे थे। अपने विचारों को परमाणित करने के लि परमाण दे रहे थे। इससे आपको यह आà¤à¤¾à¤¸ हो गया होगा कि इन पहाडि़यों की कनदराओं में बैठकर यह बरहमचारी अपनी बदधियों को किस परकार से सफल कर रहे हैं। किस परकार से उसका सृजन कर रहे हैं व उसे परिमारजित कर रहे हैं। इसका साकषात दृशय आपने अपने सामने देखा है।
मैं आप सबसे क बात कहना चाहूंगा। कल ही विशव परयावरण दिवस था। आपने देखा कि किस तरह लोगों ने अपनी चिनतायें रखीं। हम चिनता तो वयकत करते हैं, रोग को मिटाने का परयास तो करते हैं, परनत रोग किन कारणों से हआ है, उसके निदान के बारे में परयास नहीं करते। आज हम जिन परिवारों में जाते हैं वहां 90 परतिशत परिवारों से सनने को मिल जाता है कि सवामी जी, बचचे बिगड़ गये। समय खराब आ गया है। मैं आपसे क बात कहता हूं कि समय तो जड़ है। आप उसको जैसा बनाना चाहेंगे वैसा वह बनेगा। परिवार का वातावरण आपके ऊपर निरà¤à¤° करता है तथा साथ हि हमारी शिकषा पदधति पर निरà¤à¤° करता है। विगत 67 वरषों में हमें जो शिकषा परापत करनी चाहिये थी, देश आजाद होने के बाद जिस परकार की शिकषा पदधति का निरमाण होना चाहिये था, उसका बहत अà¤à¤¾à¤µ रहा। हम उसी धारा के पीछे बहते रहे जिसे मैकाले जैसे लोगों ने खड़ा किया था। उसका परà¤à¤¾à¤µ हमारे ऊपर पड़ा। परिणाम यह निकला कि उसी के नीचे हम छटपटाते रहे, बाहर नहीं निकल पाये। अब समय आया है कि हम चिनतन करें, मनन करें, बैठकर महरषि दयाननद पर सोचें, तयागमूरति ऋषिवर ने जो बात कही थीं, वह गलत नहीं हो सकती। कयोंकि ऋषि हृदय जो होते हैं, वह यग-यगानतर के बारे में सोचते हैं और उनका क-क वाकय इस परकार का होता है जो मानव का निरमाण करता है। महरषि दयाननद ने जिस आरष पाठविधि की बात की और उनहोंने उसे सतयारथ परकाश में लिखा कि इस पदधति से यदि वयकति विदया परापत करे तो पूरण विदया परापत कर सकता है। परनत आज सारे देश व विदेशों में जो हालात देखते हैं, वह सनतोषपरद नहीं है। अà¤à¥€ हमारे क परिचित मितर का बेटा जो दिलली विशवविदयालय में पढ़ता है, उसने क घटना सनाई।
क बजरग वयकति विशवविदयालय में आ रहे थे। आपकी दृषटि बचचों की वेशà¤à¥‚षा पर पड़ी। सà¤à¥€ लड़कियों ने जीनस पहन रखी थी लेकिन क लड़की उनसे अलग दिखाई दी । उसने साड़ी पहन रखी थी। उस वयकति के मन में विचार आया कि मैं उस लड़की के पास जाकर उसको आरशीवाद दूं। उसका धनयवाद करूं। इस लड़की ने अपनी संसकृति को बचाने का परयास किया है। परनत इस वयकति को à¤à¤¯ था कि दिलली का वातावरण है, मैं बजरग हूं कोई गलत बात न निकल जाये। उस वयकति ने इस पर à¤à¥€ हिममत करके उस बचची के पास जाकर उससे कहा कि बेटी मैं ते आशीवाद देने को आया हूं। इस वातावरण में तू क ही है, जिसने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति को बचाया है। मैं तेरे को बहत-बहत आरशीवाद देता हूं। वह लड़की मसकाराई। थोड़ी दूर वह बजरग वयकति गया। उसके बाहर जाने से पहले उसने उस लड़की को पनः देखा। वो आगे-आगे चल रही थी। वह जैसे ही विशवविदयालय गेट से बाहर निकली, उसने बैग से सिगरेट निकाली और मह पर लगा ली। वह वयकति कहता है कि मैंने विचार किया कि तेरे से तो जीनस वाली लड़कियां ही अचछी थी।
आज सी परिसथितियां पैदा हो गई हैं कि हम जहां देखते हैं, वहीं दावानल सा दिखाई दे रहा है। परिवार या समाज, जहां कहीं à¤à¥€ है, कौन बचायेगा इसको। जब तक हम ऋषियों की परमपराओं और उनके पथ पर नहीं चलेगें तब तक दःख à¤à¥‹à¤—ने के अलावा हमारे पास कछ नहीं होगा। उन कालेजों के अनदर विदयारथियों की संखया अधिक है जहां आवासीय विदयालय हैं। आवासीय विदयालयों को हम सरकषित समते हैं परनत हम जैसी शिकषा परदान कर रहे हैं उस पर विचार होना चाहिये। राजसथान के मखयमंतरी हआ करते थे शरी à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ सिंह शेखावत। क बार हम बैठे थे तो उनहोंने कहा, हमें साकषरता का अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ चलाना चाहिये। मैंने उनहें कहा कि आप साकषर बनाना चाहते हैं। ये जितने उगरवादी है, इनमें कोई डाकटर है, कोई परोफेसर है, कोई इंजीनियर है, कया सी साकषरता देना चाहते हो। आवशयकता मनषय को साकषार बनाने की नहीं है, उस अकषर के पीछे जो विदया होनी चाहिये, उस अकषर के पीछे जो जञान होना चाहिये, वह सा हो जो मनषय की आतमा को परिषकृत कर सके। उसके मन व बदधि को परिषकृत कर सके। जब आचारय यजञोपवीत संसकार के समय बरहमचारी को अपने पास बैठाता है, उसकी मन, बदधि व आतमा का नाम लेकर कहता है कि मैं इनको पवितर करता हूं। यही सथिति वेदारमठसंसकार के समय में होती है। हम सनधया करते हैं, सनधया के समय में क-क अंग को सपरश करके à¤à¤—वान से यह परारथना करते हैं कि परठमेरी वाणी, मेरी आंखें, मेरे कान, मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा मन, मेरी आतमा, मेरी बदधि यह सब समपषट, शदध व पवितर हो जायें। यह शिकषा कहां मिलेगी। बचचा 21 वरष व अधिक आय का हो जाता है परनत उसको कछ सम में नहीं आता। अà¤à¥€ राजसथान सरकार ने आकड़े निकाले हैं। उसके अनसार क बचचे की पढ़ाई पर क महीने का तीन हजार रपये और क साल में छततीस हजार खरच आता है। इसके अतिरिकत à¤à¤µà¤¨, परयोगशाला आदि à¤à¥€ सरकार बनाकर देती है। खेल का मैदान बना कर à¤à¥€ देती है। यदि सà¤à¥€ खरचो को जोड़ा जाये तो राजसथान में क बचचे पर सरकार दवारा क लाख रपये खरच होते हैं। यहां गरूकल में आचारय जी नाम मातर का खरच लेते होंगे। उनमें 20-25 परतिशत निःशलक à¤à¥€ होंगे।
मैं बड़े दावे के साथ क बात कहा करता हूं कि बड़े-बड़े विशवविदयालयों, आईआईम जैसे बड़े-बड़े सकूल-कालेज हैं, उनमें पास करके बचचे जाते हैं पांच-पांच हजार रपयों की नौकरियां ढूंढते फिरते हैं। लेकिन शायद ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ का सा कोई गरूकल होगा जिसके सनातक बनने के बाद जो विदयारथी निकलते हैं उनमें 90 परतिशत तक को जाब या काम न मिला हो। à¤à¤¾à¤°à¤¤ का कोई आईआईटी या आईआईम सा नहीं है जिसने 90 परतिशत जाब का परिणाम दिया हो। केवल गरूकल पदधति ही सी है जिसमें पढ़ने वाला बचचा बेरोजगार नहीं मिलेगा। दूसरी बात, गरूकल में पढ़े विदयारथियों के चरितर की दृषटि से 99 परतिशत अचछे परिणाम आपको मिलेगें। केवल 1 परतिशत बचचे जनम-जनमानतर के संसकारों के कारण à¤à¤Ÿà¤•à¤¾à¤µ की सथिति में आ सकते हैं। उनका खान-पान à¤à¤°à¤·à¤Ÿ हो सकता है। गरूकल के 98-99 परतिशत बचचों का आचरण अचछा होता है। वह सà¤à¤¯ नागरिक बनते हैं। अचछे विदवान बनते हैं। इससे बड़ी उपलबधि और कया हो सकती है। इसलि मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि यदि हम देश के बचचों और मानवता को बचाना चाहते हैं तो उसका क ही तरीका है कि हम शिकषा पदधति को पषपित व पललिवित करें। हम इनके लि अचछे साधन जटायें। सवामी परणवाननद जी जैसा वयकति क जगह बैठजाये। वह इतना बड़ा निरमाण कर सकता है, परनत रात दिन उनहें यह चिनता रहती है कि गरूकल के लि à¤à¤µà¤¨ की वयवसथा कैसे होगी? à¤à¥‹à¤œà¤¨ की वयवसथा कैसे होगी? गरूकल को और बढ़ाने की वयवसथा कैसे होगी?
मैंने मानव संसाधन मंतरी और सरकार से à¤à¥€ यह बात कही है कि बिना संसकृत की रकषा के आप संसकृति को नहीं बचा सकते। जब तक संसकृति नहीं बचेगी तो मानवता नही बचेगी। मैं आपसे क बात कहना चाहूंगा कि जादू वह जो सर चढ़कर बोले। आगामी 21 जून को à¤à¤¾à¤°à¤¤ सारी दनिया को योग व इसके आसन करायेगा। पूरे देश के लोग à¤à¥€ योग और आसन करेंगे। योग संबंधी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति का डंका पूरी दनिया में बजेगा। (यह आयेाजन सफलतापूरवक समपनन हो चका है।) सबने इस बात को सवीकार कर लिया है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसकृति वा वैदिक संसकृति का मूल जो योग है, वेद है, यजञ है, जब तक इनको नहीं अपनाओंगे, तब कि दनिया बच नहीं पायेगी। सरवे à¤à¤µà¤¨à¤¤ सखिनः की यदि कहीं कामना की गई है, बताई जाती है व सिखाई जाती है, तो वह केवल वैदिक संसकृति में पढ़ाई व सिखाई जाती है। मे इस गरूकल की सथापना के 1 या 2 वरष बाद यहां आने का सौà¤à¤¾à¤—य मिला था। तब यहां 2 या 3 कमरों का ही निरमाण हआ था। आज मैं आया हूं तो यहां का वातावरण देख कर मे बहत परसननता हई है। मे सवामीजी का सनेह व आशीरवाद मिलता रहता है। यह मसे आय व जञान में à¤à¥€ बड़े हैं। मैं तो कहता हूं कि इन आरयसमाज के संनयासियों की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के फलीà¤à¥‚त होने पर, मैं आज जो हूं, वह बना हूं। मेरे पास तो कछ था ही नहीं। मैंने तो बैंक खाता à¤à¥€ उस दिन खलवाया था जिस दिन मैंने सांसद का परचा à¤à¤°à¤¾ था और यह सांसद के चनाव का नामांकन पतर à¤à¤°à¤¨à¥‡ की आवशयक शरत थी। मेरा जैसा वयकति जिस के पास अपना कछ à¤à¥€ न था वह क से वयकति के विरोध में चनाव लड़ा जिसने लगà¤à¤— 40 करोड़ रूपये खरच किये। मे यह अवसर आप सब मितरों व संनयासियों के सनेह à¤à¤¾à¤µ के कारण मिला। शरी बलराम जाखड़ ने चनाव लड़ा तो वह 3 लाख वोटों से जीते थे, चैधरी देवीलाल ने चनाव लड़ा तो वह सततर हजार मतों से जीते थे। आपके इस सहयोगी ने चनाव लड़ा तो व
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