Mathura

मथुरा - दण्डी स्वामी विरजानन्द की कुटी
: India, Uttar Pradesh

मथुरा - दण्डी स्वामी विरजानन्द की कुटी

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स्वामी दयानन्द ने अपने गुरु विरजानन्द से व्याकरण और वेदों के विषय में जानकारी प्राप्त की। कार्तिक सुदी 2 सम्वत्-1917-14 नवम्बर 1860 का स्वामी जी मथुरा पहुचें। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज लगभग 40-42 वर्ष की आयु में गुरु विरजानन्द दण्डी के द्वार पर पहुचें और दरवाजे को खटखटाया, अन्दर से आवाज आयी कौन? जबाब मिला यही जानने आया हूँ कि कौन हूँ?

आज गुरु को जिस योग्य शिष्य की तलाश थी वह मिल गया और शिष्य-दयानन्द को जिस आचार्य की तलाश थी उन्हें भी योग्य आचार्य-गुरु मिल गये। गुरु विरजानन्द ने ऋषि दयानन्द को कहा, पढ़ाने हेतु मैं तैयार हूँ लेकिन एक बार पढ़ाने के बाद दुबारा उसी पाठ को नहीं पढ़ाऊंगा, हमारे पास संन्यासियों हेतु निवास व्यवस्था नहीं है, तुमे स्वयं ही अपने भोजन, निवास और अन्य व्यवस्थायें करनी होगी। ऋषिवर देव दयानन्द ने सहर्ष गुरु के आदेश को स्वीकार किया और निवेदन किया कि बस आप विद्या का दान प्रदान करे।

ऋषिवर देव दयानन्द लगभग ढ़ाई वर्ष तक कठोर तप, परिश्रम, ब्रह्मचर्यपालन और श्रद्धाभक्ति से गुरुसेवा करते हुए व्याकरण-अष्टाध्यायी-महाभाव्य, निरुक्त और अन्य कई सैद्धान्तिक जानकारी प्राप्त की। गुरु ने गुरुदक्षिणा में दयानन्द का जीवन देश-धर्म, वेदप्रचार करने हेतु और अन्याय-अत्याचार, पाखण्ड-ढ़ोंग को समाप्त करने हेतु मांगा।

ऋषिवर ने सहर्ष गुरु का आदेश शिरोधार्य किया और सम्पूर्ण जीवन पर्यन्त इस वचन का पालन किया तथा अन्त में जीवन को समाप्त (बलिदान) भी देश धर्म हित किया।