krukchhetar

राव कर्णसिंह की तलवार के टुकड़े-टुकड़े कर दिये-स्वामी जी ने।
: India, Haryana, Ambala

राव कर्णसिंह की तलवार के टुकड़े-टुकड़े कर दिये-स्वामी जी ने।

===================================

ज्येष्ठ संवत् 1925 में स्वामी जी फिर कर्णवास पधारे और जिस कुटी में पहले ठहरे थे, उसी में ठहरे। स्वामी जी के आगमन का समाचार सुनकर आपके भक्त, सेवा में उपस्थित होकर आतिथ्य में प्रवृत्त हुए। महाराज पूर्व की भाँति लोगों को सत्य सनातन वैदिक धर्म के तत्त्व समझाने और अवैदिक रूढ़ियों का खण्डन करने लगे। ज्येष्ठ शुक्ला 10 को कर्णवास में गंगास्नान का मेला होता है और आस-पास के प्रदेश से हजारों नर-नारी मेले में स्नान करने आते है।

उन दिनों वहां पर राव कर्णसिंह बड़गूजर क्षत्रिय, जो रंगचार्य के शिष्य थे तथा उनका ससुराल भी कर्णवास में ही था। वे भी वहां अपने अनुचरों सहित गंगास्नान करने आये थे। एक दिन स्वामी जी उपदेश और शंकाओं का समाधान कर रहे थे, राव कर्णसिंह भी अपने शस्त्रधारी अनुचरों के साथ सभा स्थल में आये और प्रणाम करके बोले हम कहां बैठे?

स्वामी जी - जहां आपकी इच्छा। कर्णसिंह घमण्ड से बोला हम तो जहाँ आप बैठे हैं, वहाँ बैठेगे। स्वामी जी, आईये, बैठिए।

कर्णसिंह - आप गंगा को नहीं मानते? स्वामी जी जितनी है, उतनी मानते है। कर्णसिंह कितनी? स्वामी जी हम संन्यासियों हेतु तो कमण्डल भर हैं। कर्णसिंह-हमारे यहां रामलीला होती है चलिए, स्वामी जी तुम कैसे क्षत्रिय हो? महापुरुषों का सवांग बनाकर नचाते हो।

इस प्रकार स्वामी ने तिलकादि का खण्डन किया, जिससे आग-बबुला होकर म्यान से तलवार निकाल कर और महाराज को गालियां देने लगा, स्वामी जी शान्त गम्भीर बैठे रहे और हँसते रहे। तब उसने अचानक स्वामी जी पर तलवार चला दी, लेकिन महाराज ने तुरन्त गरज कर, उसके हाथ से तलवार छीन ली और पृथ्वी पर रखकर तोड़ दी। कर्णसिंह वहां से लज्जित होकर अपने डेरे पर गया।

स्वामी जी ने कहा, हम ब्राह्मणत्व से पतित नहीं होना चाहते। भक्तों ने कहा कि थाने में रिपोर्ट करनी चाहिए। स्वामी जी ने ऐसा करना अस्वीकार किया। यह महान् क्षमाशीलता थी स्वामी जी की